लू श्याबाओ – ज्यादातर देशों में एक न एक शख्स हुए जिन्होंने देश के लिए अपने सभी अरमानों को त्याग ऐसे रास्ते पर चल पड़े जहां उन्हें सिर्फ कांटे की कांटे मिले।
हमारे देश में अहिंसा के रास्ते पर चलकर महात्मा गांधी ने आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभायी वहीं हमारे पड़ोस में भी एक ऐसा गांधी हुआ जिन्होंने देश में लोकतंत्र स्थापित करने के लिए अपनी सारी जिन्दगी लगा दी।
नोबल पुरस्कार विजेता लू श्याबाओ को चीन के लोग गांधी मानते हैं। श्याबाओ एक ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता थे जिन्होंने अपना ज्यादातर समय आंदोलनों, जेलों में गुजारा। उनकी बस एक ही इच्छा थी कि चीन में लोकतंत्र स्थापित हो। वो लोगों के लिए महिसा थे तो वहीं सरकार के लिए किसी अपराधी से कम नहीं थे जिसे सरकार जब चाहती तब जेल में बंद कर देती।
कौन थे लू श्याबाओ :-
चीन में मानवाधिकार के लिए लड़ने और चीन में लोकतंत्र को लेकर आंदोलन करने वाले नेता के रुप में पहचान बनाने वाले श्याबाओ मूल रुप से एक प्रोफेसर थे।
तियानमेन नरसंहार में निभाई थी मुख्य भूमिकाः
1989 में जब सरकार ने छात्र आंदोलन को खत्म करने के लिए सैनिकों को किसी भी तरीके को अपनाने का हुक्म दिया तब लू श्याबाओ ने सैनिक और छात्रों के बीच शांतिपूर्ण समझौता कराकर हजारों छात्रों को मरने से बचाया।
लू श्याबाओ ने स्वयं ही एक चीन का घोषणा पत्र बनाया जिसे चार्टर-08 कहा जाता है इस चार्टर-08 में चीन में सुधार करने की जरुरत पर बल दिया गया है। साथ ही इस घोषणापत्र में कह गया कि चीन जिस आधुनिकरण के रास्ते पर चल रहा है उससे विनाश के अलावा कुछ नहीं मिलने वाला है। इन दस्तावेजों की चीन ने जब्त कर लिया और श्याबाओ को जेल में डाल दिया।
लू श्याबाओ अपने जीवन के आखरी समय में भी जेल में ही थे। श्याबाओ को लीवर कैंसर था जिसके लिए उन्हें कई बार जेल से बाहर भी लाया गया लेकिन परिवार वालों ने उन्हें कृत्रिम वेंटिलेशन पर रखने से मना कर दिया।
61 वर्ष की उम्र में उन्होंने प्राण त्याग दिये।
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