महा बम – 11 मई 1998, ये तारीख भारत के इतिहास में ऐसी तारीख के रूप में दर्ज हैं जिस पर प्रत्येक भारतवासी गर्व कर सकता है.
यही वह दिन है जब चीन को समझ में आ गया कि वह भारत को आंख दिखाकर अब अपनी दादागिरी नहीं चला पाएगा.
इस दिन भारत ने महा बम यानि हाइड्रोजन बम बनाकर दुनिया के शक्ति संतुलन को बदलकर रख दिया. आपको बता दें इसके पहले भारत परमाणु परीक्षण कर चुका था. लेकिन चीन को लग रहा था कि भारत दुनिया के दवाब में आ गया है और उसने अपना परमाणु कार्यक्रम रोक दिया है.
जबकि अमेरिका, ब्रिटेन फ्रांस और रूस के बाद चीन ने न केवल अपने परमाणु कार्यक्रम का विस्तार किया बल्कि उसने इन देशों की होड़ में हाइड्रोजन बम बनाया.
इसी के दम पर चीन ने एशिया में अपनी दादागिरी दिखानी शुरू कर दी.
चीन की इस दादागिरी का जवाब देने की भारत ने कई बार कोशिश की लेकिन हर बार उसकी योजना पर पानी फिर गया. प्रधानमंत्री राजीव गांधी से लेकर नरसिंह राव तक ने परमाणु परीक्षण करने के प्रयास किए लेकिन खबर लीक हो जाती. परमाणु संगठन बनाकर दुनिया दादागिरी करने वाले अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और चीन सभी एकजुट होकर भारत पर परीक्षण न करने का दवाब बनाते.
चीन नहीं चाहता था कि भारत किसी भी सूरत में हाइड्रोजन बम तो दूर परमाणु बम भी बनाए. क्योंकि इससे चीन दादागिरी पर लगाम लग जाती. एक ओर जहां चीन भारत पर परमाणु परीक्षण न करने के लिए अंतरराष्ट्रीय दवाब डालकर उसकी राह में अड़ंगा डाल रहा था तो वहीं दूसरी ओर वह भारत की समुंद्री मार्ग से घेरने में जुटा था.
चीन की इस घेराबंदी और बात बात पर ब्लैकमेल करने रणनीति को तोड़ने के लिए भारत ने भी हाइड्रोजन बम का परीक्षण करने का निर्णय किया. पूर्व की योजना से अलग इस बार भारत ने सीक्रेट मिशन के तहत परमाणु और हाइड्रोजन बम बनाने शुरू किए और 11 और 13 मई 1998 को अटल विहारी वाजपयी की सरकार में एक के बाद एक 5 सफल परीक्षण किए.
भारत सरकार ने किसी भी देश को इस परीक्षण की खबर तक नहीं लगने दी और जैसे ही महा बम का परीक्षण किया गया, पूरी दुनिया में कोहराम मच गया. इस महा बम के परिक्षण से चीन के पैरों तले की जमीन खिसक गई. उसने सपने भी में कल्पना नहीं की थी कि भारत दुनिया के दादाओं को नजरअंदाज कर ऐसा साहसिक निर्णय भी ले सकता है.
आप को बता दें कि महा बम यानि हाइड्रोजन बम परमाणु बम की तरह का ही एक परमाणु हथियार है लेकिन थर्मोन्युक्लियर प्रक्रिया के कारण इसकी स्पीड और मारक क्षमता परमाणु बम से दोगुनी हो जाती है.
हालांकि भारत के बाद पाकिस्तान ने भी परमाणु परीक्षण किए लेकिन उसके परीक्षण उस स्तर के नहीं थे जिस स्तर के भारत ने किए. वहीं पाकिस्तान के बमों को लेकर यह भी कहा जाता है कि इनके पीछे चीन का ही सहयोग था.
बहरहाल, उस समय यूनाइटेड नेशन ने भारत पर सभी तरह के आर्थिक प्रतिबन्ध लगा दिए जिसका खामियाजा भारत को भुगतना पड़ा और भारत के आर्थिक विकास को काफी नुकसान हुआ. लेकिन उसके बाद चीन ने दादागिरी दिखानी बंद कर दिया. आजकल वह बदंर की तरह घुड़की तो देता है, लेकिन भारत के आंख दिखाने पर पीछे भी हट जाता है.
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