बाल यौन-शोषण पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कई दिल दहलाने देने वाले आंकड़े सामने आए हैं.
बीबीसी के प्रसिद्ध प्रस्तोता जिमी सेविल का मामला कुछ सालों पहले सुर्खियों में था. जिसके अपराध तो दानवीयता की देहरी पार कर चुके हैं. सरकारी रिपोर्ट के अनुसार इस व्यक्ति ने पिछले चार दशकों में पांच साल के बच्चों-बच्चियों से लेकर 75 साल के व्यक्तियों और यहां तक कि शवों के साथ भी दुष्कर्म किया है. इस अपराधी को महारानी ने नाईटहुड से सम्मानित किया था. इन अपराधों से इंग्लैंड की सरकार अपने आपको आसानी से अलग नहीं कर सकती. सरकारी उपेक्षा के बिना चार दशक तक ऐसे दुष्कर्म कर सकना संभव नहीं है.
ब्रिटिश सरकार को संदेह का लाभ दे पाना इसलिए भी कठिन है क्योंकि गोवा में बाल यौन-शोषण के अंतर्राष्ट्रीय गिरोह के सरगना रेमंड वार्ली को भी उसने ही शरण दे रखी है.
आज बाल यौन-शोषण के मामलों में पश्चिमी दुनिया के पापों का घड़ा फूट चुका है.
किसी भारतीय के लिए इसकी भयावहता का अंदाज़ा लगा पाना भी अब आसान नहीं रह गया है. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार इन अपराधी पादरियों के शिकार बच्चों की संख्या ‘दसियों हज़ार’ है. रिपोर्ट के अनुसार चर्च के भीतर ऐसे अपराध बरसों से और बहुत ही ‘व्यवस्थित तरीके’ से चल रहे हैं. आयरलैंड की सरकार ने चार जांचों के बाद इन धर्म-गुरुओं के शिकार बच्चों की संख्या 15 हज़ार से भी अधिक बताई है. इस मामले में अमेरिका भी पीछे नहीं है. अकेले बोस्टन के एक पादरी ने 130 बच्चों से और विस्कांसिन के एक पादरी ने केवल एक स्कूल में ही 200 मूक-बधिर बच्चों से दुष्कर्म किया. बोस्टन के इस पादरी को बचाने के लिए चर्च ने एक करोड़ डॉलर का हर्जाना दिया. वहीं, वर्ष 2002 में इन गतिविधियों में चर्च को दस करोड़ डॉलर खर्च करने पड़े थे.
अदालती कार्रवाइयों और संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट से ये बात बार-बार सामने आई है कि चर्च के अपराधियों ने इन अपराधों को दबाने के लिए नए अपराध करने में भी हिचक नहीं दिखाई. पिछले पोप ने तो वर्ष 2001 में बिशपों को बाकायदा एक पत्र लिखकर आदेश दिया कि वे ऐसे मामलों को दबाने के लिए शिकायतकर्ताओं को पंथ से बाहर निकालने की धमकी दें. चर्च ने ये तर्क भी दिया कि ये मामले चर्च के आतंरिक मामले हैं व इन मामलों में सरकारी कार्रवाई पंथिक स्वतंत्रता का हनन है. कई बार तो पोप ने यहां तक कहना शुरू कर दिया कि वास्तव में हमारा चर्च अपराधी नहीं है बल्कि वो तो नास्तिकों, लालची वकीलों और सनसनी पैदा करने वाले मीडिया का शिकार है.
इन गंभीर आपराधिक मामलों में पश्चिमी मीडिया के मौन रहने से संदेह होता है.
पश्चिमी मीडिया मानव जाति के इतिहास के इस जघन्यतम अपराध पर अक्सर खामोश रहता है. दूसरी ओर यही पश्चिमी मीडिया निर्भया जैसे मामलों पर पूरे भारत पर कीचड़ उछालने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ती. तब अमेरिका के दस डेमोक्रेटिक सांसद भारत के प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर दुष्कर्म की रोकथाम करने की अपील करते हैं. आज हर भारतवासी को उनसे ये सवाल पूछना चाहिए कि इन पश्चिमी मानवतावादियों को अपने देश के असंख्य दुष्कर्मी क्यों नहीं दिखाई देते जिन्होंने पवित्रता के परदे के पीछे से दसियों हज़ार बच्चों की ज़िन्दिगियों के साथ खेला है.
भारत में अपराध कम नहीं लेकिन निर्भया जैसे मामलों में हमारे यहां जनाक्रोश भी था जिससे दुष्कर्म विरोधी कानून भी बना. इसके बावजूद भी पूरे पश्चिमी तंत्र की दृष्टि में भारत बर्बर दुष्कर्मियों का अभ्यारण्य है.
हमें सचेत रहना होगा कि पश्चिम हमारा आदर्श नहीं हो सकता. पश्चिमी तंत्र ने बहुत सफलतापूर्वक अपने अपराधों और विकारों को छिपा लिया है. लेकिन वे हमारे बारे में कुप्रचार करके हमारे स्वाभिमान को रौंदने और घरेलू मामलों में अड़ंगा डालने की नीति पर चलना नहीं भूलते.
बाल यौन-शोषण – ऐसे में हमारे लिए आवश्यक है कि कभी-कभी हम भी उसे आईना दिखाकर उसे उसकी बदशक्ल असलियत से परिचित कराएं.