विज्ञान और टेक्नोलॉजी

विकास की दौड़ में आगे बढ़ रहे भारत के लिए यूएन की ये रिपोर्ट है तगड़ा झटका

शिशु मृत्यु दर – भारत की अर्थव्यस्था दुनिया की तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है और पिछले कुछ सालों में वैश्विक स्तर पर भारत की छवि भी विकसित और मजबूत देश की बनी है, मगर हाल ही में यूएन की एक रिपोर्ट आई है और यकीनन ये रिपोर्ट भारत को शर्मिंदा करेगी.

हम संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की जिस रिपोर्ट की बात कर रहे हैं, वह रिपोर्ट है नवजात बच्चों की मौत से जुड़ा.

दरअसल, यूएन से जुड़ी एक संस्था के अनुसार भारत में औसतन हर दो मिनट में 3 नवजातों की मौत हो जाती है और रिपोर्ट में इसकी वजह बताई गई है पानी, सफाई, पौष्टिक खाना और बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं की कमी.

रिपोर्ट के अनुसार, भारत में साल 2017 में 8,02,000 शिशुओं की मौत हुई थी और ये आंकड़ा पांच साल में सबसे कम है, लेकिन दुनियाभर में यह आंकड़ा अब भी सबसे ज्यादा है. यानी अर्थव्यवस्था का विकास तो हुआ, लेकिन स्वास्थय और बुनियादी सुविधाओं के मोर्चे पर भारत अब भी बहुत पीछ है.

शिशु मृत्यु दर में भारत अव्वल है इसके बाद बाद नाइजीरिया का नंबर है.

नाइजीरिया में एक साल में 4,66,000 शिशुओं की मृत्यु हुई. इसके बाद पाकिस्तान आता है, जहां साल भर में 3,30,000 शिशुओं की मृत्यु हुई. रिपोर्ट के अनुसार, भारत में साल 2017 में 6,05,000 नवजात शिशुओं की मौत के मामले दर्ज किए गए, जबकि पांच से 14 साल तक की उम्र के 1,52,000 बच्चों की मृत्यु हुई. यूनिसेफ इंडिया की प्रतिनिधि यास्मीन अली हक के मुताबिक, शिशु मृत्यु दर के मामले में भारत में काफी सुधार हो रहा है. भारत भले ही शिशु मृत्यु दर में दुनिया में अव्वल है, लेकिन बीते सालों के आकड़ों को देखा जाए तो इसमें थोड़ा सुधार ज़रूर हुआ है, लेकिन अभी और सुधार की ज़रूरत है.

हालांकि अच्छी बात ये है कि भारत में पिछले पांच सालों में लिंगानुपात में सुधार हुआ है और लड़कियों की जन्म दर बढ़ी है. रिपोर्ट के मुताबिक, देश में ‘पोषण’ अभियान के तहत जरूरी पोषक तत्व लोगों तक पहुंचाने और देश को 2019 तक खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) कराने के लिए बड़े पैमाने पर चलाये जा रहे अभियानों से इसमें फर्क पड़ा है.

यूनिसेफ, विश्व स्वास्थ्य संगठन, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या विभाग और विश्व बैंक समूह की ओर से जारी मृत्यु दर के नये अनुमानों के मुताबिक 2017 में 15 साल से कम उम्र के 63 लाख बच्चों की मौत हो गयी जिनमें ज्यादातर की मौतों को रोका जा सकता था यानी यदि देश में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं तक हर व्यक्ति की पहुंच होती तो इतनी मौतें नहीं होती.

भारत भले ही विकास की दौड़ में आगे बढ़ रहा हो, लेकिन एक कड़वी सच्चाई ये है कि हमारे देश में स्वास्थय सुविधाएं बहुत महंगी है और गांव-कस्बों में रहने वालों के लिए बुनियादी सुविधाओं की भी व्यवस्था नहीं है. अर्थव्यवस्था के साथ ही स्वास्थय क्षेत्र में भी विकास की ज़रूरत है.

Kanchan Singh

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