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75 पैसे के शैंपू पाउच से शुरु की थी कंपनी, आज है करोड़ों के मालिक

रंगनाथन – पहले जमाने में लोग अपने बालों को धोने के लिये मुल्तानी मिट्टी या कपड़े धोने वाले साबुन का इस्तेमाल करते थे. लेकिन पश्चिमी देशों में उन दिनों भी बालों को साफ करने के लिये शैंपू का इस्तेमाल किया जाता था.

आमतौर  पर लोगों की अवधारणा थी कि भारत के लोग हर दिन बाल नहीं धोते हैं न ही हर दिन शैंपू खरीद सकते हैं. फिर एक मार्केट रिसर्च हुई और पता चला कि भारत में लोग सप्ताह में दो दिन शैंपू का इस्तेमाल करते हैं और विदेशों में लोग हर दिन शैंपू लगाते हैं. खासतौर पर भारत की महिलाएं जिनके बाल बड़े होते है वे 2 मिली एक्स्ट्रा शैंपू का यूज करती हैं.

शैंपू बोतल की अपेक्षा शैशे में बिकता है ज्यादा

पहले जमाने में लोग सोचते थे कि अमीर लोग ही केवल शैंपू का इस्तेमाल कर सकते हैं क्योंकि पहले शैंपू बोतल में आता था शैशे या पाउच का कोई प्रचलन नहीं था. लेकिन एक सर्वे से यह भी पता चला कि शहरों की अपेक्षा गांव के लोग शैंपू का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं. लेकिन उनके लिये बोतल खरीदना मुश्किल था क्योंकि उनकी आमदनी इतनी नहीं थी. ऐसे में दक्षिण भारत में औरतें के बाल काफी लंबे और घने होते हैं वहां तक अपनी पहुंच बनाने के लिये एक शख्स ने शैंपू की बोतल की जगह शैंपू के पाउच बेचने शुरु किये. और पाउच की कीमत थी केवल 75 पैसे, जिसे खरीदना आसान था. उस ब्रैंड का नाम था ‘चिक’ शैंपू जिसका आज 200 करोड़ का सालाना टर्नओवर है. तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि कैसे तमिलनाडु राज्य के एक छोटे से कस्बे में रहने वाला एक 22 साल का नौजवान सिर्फ 15,000 रुपये लेकर अपने घर से निकला था. जिसका सपना था कि वह अपना खुद का व्यापार शुरु करें. आज अपनी मेहनत और मजबूत इरादों की बदौलत वह करोड़ों के मलिक हैं.

15 हजार रुपये से शुरु की कंपनी

आंध्रप्रदेश के तमिनलाडु के एक छोटे से कस्बे संबंध रखने वाले सी.के रंगनाथन 22 साल की उम्र में पिता के निधन और भाइयों के बीच अनबन के बाद घर से केवल 15 हजार रुपये लेकर अपने सपने को पूरा करने के लिये निकल पड़े थे. उन्होंने सबसे पहले अपने रहना का इंतजाम किया.

75 पैसे में बेचा शैंपू का शैशे

रंगनाथन अपने शुरुआती दिनों में एक छोटे से किराए के कमरे में रहते थे. जिसका किराया ढाई सौ रुपये था. वहां रंगनाथन ने एक कोरोसिन स्टोव खरीदा और साइकिल खऱीदी. इस तरह दिल में कुछ कर गुजरने की ठान चुके रंगनाथन को लाख स्ट्रगल के बावजूद कोई मन की नौकरी तो मिली नहीं, आखिरकार उन्होंने अपने पुश्तैनी व्यापार को ही आगे बढ़ाया उनके पिता जी शैंपू बेचने का काम करते थे. वहीं काम रंगनाथन ने भी किया. सन् 1983 में उन्होंने पैसे जुटाकर ‘चिक’ ब्रैंड के नाम से 7 मिली का शैशे सिर्फ 75 पैसे वाला शैंपू बनाने लगे. सस्ते शैंपू ने लोगों को आकर्षित किया. धीरे-धीरे ‘चिक’ शैंपू ब्रॉन्ड काफी पॉपुलर हो गया. साउथ इंडिया में लोग उन्हें जानने लगे तो शैंपू नार्थ इंडिया में भी बिकने लगा. सिर्फ एक साल के भीतर ही उन्होंने 6 लाख की सेल कर ली थी.

करुणानिधि की पोती से रचाया विवाह

सन् 1987 में उनकी शादी आर तनीमोझी से हो गई. ये लड़की आम लड़की नहीं थी यह  तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि की पोती थीं. हालांकि दोनों के घर वालों की रजामंदी के बिना ही दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया और विवाह बंधंन में बंध गए. उस वक्त उनकी कंपनी हर महीने लगभग 3.5 लाख रुपये का सेल करती थी. साल 1988 में एक मार्केटिंग स्ट्रेटजी बनाई गई कि यदि आप 5 खाली शैशे लौटाएंगे तो एक शैशे मुफ्त मिलेगा. इस स्ट्रेटजी ने शैंपू की सेल में काफी उछाल ला दिया. साल 1989 में ‘चिक’ कंपनी ने 1 करोड़ रुपये सालाना का टर्नओवर हासिल कर लिया था. उस वक्त तमिल फिल्म इंडस्ट्री की एक्ट्रेस ‘चिक’ ब्रैंड का प्रमोशन करती थी. कुछ ही सालों में उनका टर्नओवर बढ़कर 4.5 करोड़ हो गया. इसके बाद ‘चिक’ कंपनी ने कई तरह के वैरियंट्स वाले शैंपू मार्केट में उतारे.

आज कंपना का टर्नओवर है 16 सौ करोड़ रुपये सालाना

आज रंगनाथन की कंपनी का नाम है केविनकेयर. जो ‘चिक’ शैंपू, नाइल पाउडर, फेयरएवर फेयरनेस क्रीम और स्पिन्ज डियोडरेंट बनाती है. साल 2017-18 में कंपनी ने 16 सौ करोड़ का टर्नओवर किया है. वहीं 2018-19 में कंपनी का लक्ष्य 2000 करोड़ रुपए से ज्यादा टर्नओवर का है.भारत में हर साल बिकने वाले 8000 करोड़ रुपये के शैंपू में से लगभग 54% शैंपू सैशे यानी प्लास्टिक की पुड़िया में बिकता है.

आज ‘चिक’ शैंपू भारत ही नहीं, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल, मलेशिया, सिंगापुर में भी सप्लाई किया जाता है.

Deeksha Mishra

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