इस्कंदर मिर्जा – 18वीं सदी की बात करें तो उस दौर में अंग्रेजों की जीत के बीच नवाब सिराजुद्दौला आ गए थे।
उस समय अंग्रेजों के सेनापति रॉबर्ट क्लाइव को समझ आया कि अगर जीत पानी है तो वो जंग के मैदान के बाहर तलाशनी होगी। क्लाइव की ये तलाश मीर जाफर पर जाकर खत्म हुई। मीर जाफर कोई और नहीं बल्कि हिंदुस्तान के नवाब सिराजुद्दौला का जनरल था।
दोनों के बीच डील हो गई और डील के कागज़ मीर के हरम में पहुंचाए गए। 23 जून, 1757 को मीर ने एग्रीमेंट पर ठप्पा लगा दिया।
प्लासी के मैदान में मीर की गद्दारी की वजह से नवाब जंग हार गए। वो नवाब की नहीं बल्कि हिंदुस्तान की हार थी। इतिहास में मीर का नाम धूमिल हो गया और उसे मुल्क का गद्दार कहा गया। पाकिस्तान की तबाही में भी मीर के वंशज का जिक्र मिलता है। उसने भी खुद पर यकीन करने वाले को धोखा दिया और आगे जाकर उसे खुद भी धोखा मिला। मीर के वंशज थे इस्कंदर मिर्जा।
क्या है इस्कंदर मिर्जा की कहानी
पाक के पीएम फिरोज शान नून और मिर्जा के बीच मतभेद था। बहुत कोशिशों के बाद भी दोनों की दुश्मनी का कोई हल ना निकल सका। ऐसे में फिरोज ने ऐलान कर दिया कि फरवरी 1959 में चुनाव होंगें। सभी नेता इस जुगाड़ में लग गए कि किसी तरह उन्हें भी कार्यकारी कैबिनेट में जगह मिल जाए। फिरोज चाहते थे कि नई कैबिनेट की शपथ से पहले पुरानी कैबिनेट के सारे लोग इस्तीफा दें। सबके इस्तीफा देने के बाद 7 अक्टूबर को फिरोज ने नई कैबिनेट का ऐलान कर दिया।
कौन थे इस्कंदर मिर्जा
इस्कंदर मिर्जा बड़े लायक अफसर थे और काबिल प्रशासक भी। वह ब्रिटिश सेना के पहले भारतीय थे जिन्हें सैंडरहर्स्ट मिलट्रिी अकादमी से किंग कमीशन मिला था। बाद में ब्रितानिया हुकूमत ने उनळें मिलिट्री से रानजीतिक सर्विस में भेज दिया। पाकिस्तान बनने पर जिन्ना ने कहा कि मुल्क के डिफेंस सेकेट्री बनने के लायक कोई है तो वो बस इस्कंदर मिजा हैं।
इस्कंदर मिर्जा के एक खास थे अयूब खान। वो अयूब पर जरूरत से ज्यादा भरोसा किया करते थे। 1956 में मिर्जा ने पाक में तानाशाही लागू कर दी। लेकिन मिर्जा ने यहां मार्शल लॉ लगा दी यानि की सेना का राज और सेना की बागडोर अयूब खान के हाथ में थी। इस दौरान अयूब मन बना चुके थे कि वो मिर्जा को अपने रास्ते से परे हटाना चाहते हैं। अयूब ने अपनी कैबिनेट बनाई। 27 अक्टूबर को अयूब ने मिर्जा को रास्ते से हटा दिया। मिर्जा को अपनी पत्नी के साथ मुल्क छोड़कर जाने का फरमान सुना दिया गया। उनके पास और कोई रास्ता नहीं था। पाकिस्तान में मिर्जा की जितनी भी जायदाद थी उसे अयूब ने हड़प ली।
अयूब को लगता था कि मिर्जा को कोर्ट मार्शल से बचाकर देश से सुरक्षित भेजकर उसने उसका सारा अहसान चुका दिया है। लंदन में मिर्जा के दिन बड़े अभाव में गुज़रे। मिर्जा की पहली बीवी और बच्चे पाक में ही रहते थे इसलिए उन्हें हमेशा अयूब से डर लगा रहता था कि कहीं वो उनके परिवार को नुकसान ना पहुंचा दें।
इस तरह भारत को धोखा देने वाले मीर जाफर के वंशज को पाकिस्तान जाकर धोखा मिला और उसका भी तख्तापलट हो गया।