भारत के 5वें प्रधानमत्री थे चौधरी चरण सिंह जिनका जन्म 23 दिसंबर, 1902 को यूनाइटेड प्रोविंस के नूरपुर गांव में हुआ था।
1937 में वो विधानसभा के सदस्य चुने गए थे। चरण सिंह का जन्म जाट परिवार में हुआ था और उनके पिता किसान थे। वह एक बेहद गरीब परिवार से थे।
चौधरी साहब बहुत गरीब परिवार से थे लेकिन इसके बावजूद उन्होंने पढाई को पहला दर्जा दिया। 1857 की लड़ाई में हिस्सा लेने वाले नाहर सिंह से उनका ताल्लुक था।
संसद में कभी बोलने का मौका नहीं मिला
1975 में इंदिरा गांधी ने एक बड़ा ही विवादास्पद निर्णय लिया और देशभर में एमेरजेंसी लगा दी। उस समय चरण सिंह को भी जेल में डाल दिया गया। जेल में विरोधी पक्ष लामबंद हो गया। 1977 में चुनाव हुए लोकसभा के जिसमें इंदिरा गांधी हार गईं। देश में पहली बार गैर कांग्रेसी पार्टियों ने मिलकर सरकार बनाई। उस समय किसी और पार्टी की सरकार बनना नामुमकिन सा लग रहा था। जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरार जी देसाई प्रधानमंत्री बने। इस समय चरण सिंह इस सरकार में उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री रहे।
सरकार बनते ही जनता पार्टी में कलह हो गई और मोरारजी की सरकार गिर गई। बाद में कांग्रेस के ही सपोर्ट से चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बने। 20 अगस्त 1979 को उन्हें बहुमत साबित करने का आदेश दिया गया लेकिन इंदिरा ने 19 अगस्त को समर्थन वापिस ले लिया। सरकार गिर गई और संसद का बगैर एक दिन सामना किए चौधरी चरण सिंह को रिजाइन देना पड़ा। कहा जाता है कि इस प्रधानमंत्री ने संसद में एक बार भी बोला होता तो आज किसानों की दशा कुछ और ही होती।
चरण सिंह को किसान नेता कहा जाता था और इससे उनकी छवि में मॉडर्न नेताओं की झलक नहीं आती थी पर चरण सिंह अंग्रेजी में बात करना खूब जानते थे। उन्होंने अबॉलिशन ऑफ जमींदारी और इंडियाज़ पॉवर्टी एंड इट्स सोल्यूशंस किताबें लिखी थीं। 29 मई, 1987 को चरण सिंह का निधन हो गया।
इस तरह भारत के 5वें प्रधानमंत्री ने अपने कार्यकाल में संसद के अंदर एक भी शब्द नहीं बोला और उनका कार्यकाल भी इतना छोटा था कि वो कुछ बोल ही ना पाए। शायद मनमोहन सिंह को आप समझते होंगें कि उन्होंने प्रधानमंत्री होने के दौरान अपने कार्यकाल में कुछ नहीं बोला और पांच-दस साल तक चुप्पी साधे रहे लेकिन इस मामले में चरण सिंह जी तो उनसे भी आगे निकल गए।
वैसे राजनीति के गलियारों में कब क्या हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। किसानों के हित में चरण सिंह ने 1954 में उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून को पारित करवाया था और 3 अप्रैल 1967 के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने जिसके बाद 17 अप्रैल, 1968 को उन्होंने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया।
तो कुछ ऐसा रहा था किसानों के हित में काम करने वाले चौधरी चरण सिंह का राजनीतिक सफर। अगर वो प्रधानमंत्री के पद पर अपना कार्यकाल पूरा कर पाते तो आज किसान आत्महत्या करने पर मजबूर नहीं होते। उनके बाद किसी भी नेता ने किसानों के हित के लिए कभी कुछ करने की नहीं सोची और आगे पता नही कब तक ऐसा ही चलता रहेगा।
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