चंगेज़ की कब्र – दुनियाभर में हर शख्स खुद को फेमस बनाने के साथ-साथ लोगों के जहन में एक याद बनाने के लिए अपनी पूरी जिंदगी जद्दोजहद करता है।
हर कोई चाहता है कि उसके मरने के बाद लोग उसे याद करें। अब अगर बात इतिहास की करें तो दुनियाभर में जितने भी बड़ें से बड़ें सुल्तान, महाराज, बादशाह रहें उनके मरने के बाद उनके ऐतिहासिक स्मारक, मकबरें आदि यादगार के तौर पर उनकी बहादुरी के किस्सें और कहानियां सुनाने के लिए बनाये गए।
लेकिन आज हम जिस शहंशाह की बात करने जा रहे है उसकी आखरी इच्छा थी कि लोग उसे कभी याद ना करे और इसके लिए उसने अपने मरने से पहले ही तैयारी भी कर ली थी।
इतिहास में दिलचस्पी रखने वाले लोगों में शायद ही कोई ऐसा शख्स हो जो चंगेज़ खान के नाम, उसके जुल्म की दास्तान और उसके बहादुरी के किस्सों से अंजान हो। चंगेज़ खान इतिहास के पन्नों में दर्ज एक ऐसा नाम है जिसने जहां एक ओर मरने से पहले इतिहास के कई पन्नें लिखे थे, वहीं दूसरी ओर उसने अपने मरने के बाद भी इतिहास लिखा। कहते है उसकी फौज जिस भी इलाके से गुजर जाती थी वह अपने पीछे बर्बादी की दास्तान छोड़ जाती थी। कहने को तो चंगेज़ खान मुगल शासक था, लेकिन उसने अपनी तलवार की ताकत से एशिया के एक बड़े हिस्से पर कब्ज़ा कर रखा था। इतिहास में इतने बड़े हिस्से पर आज तक किसी ने कब्ज़ा नहीं किया है।
चंगेज़ खान की मौत को लेकर बेहद दिलचस्प बात तो ये रही है कि चंगेज़ की कब्र तलाशने में सिर्फ देशवासियों की ही नहीं, बल्कि विदेशियों की भी खासा रूची रही थी। चंगेज़ खान की कब्र को खोजने के लिए अब तक कई बड़े-बड़े मिशन चलाये जा चुके हैं। यहां तक कि नेशनल जियोग्राफी ने तो सैटेलाइट के जरिए भी चंगेज़ की कब्र तलाशने की कोशिश की थी, लेकिन परिणाम स्वरूप कुछ हासिल नहीं हुआ। नेशनल जियोग्राफी के इस प्रॉजेक्ट को ‘वैली ऑफ़ खान प्रॉजेक्ट’ का नाम दिया गया।
पूरी दुनिया में एक मंगोलिया समाज ही था जो चंगेज़ की कब्र का पता नहीं लगाना चाहता था, और ऐसा इसलिए चुकि मंगोलिया लोग अपने बुजुर्गों की बात का सम्मान उनके मरने के बाद भी रखते है। ये बेहद हैरत की बात है कि चंगेज़ खान ने अपने मरने से पहले अपने लिए एक बेहद अजीब वसीयत की थी। वसीयत के मुताबिक वो नहीं चाहता था कि उसके मरने के बाद उसका कोई भी निशान बाकी रहे। इसके लिए उसने अपने कुछ साथियों और सिपाहियों को अपनी वसीयत में आदेश दिया था कि उसके मरने के बाद उसे किसी गुमनाम जगह पर दफनाया जाए। इतना ही नहीं उसने अपनी वसीयत में यह भी कहा था कि उसे दफ़नाने के बाद उसकी कब्र पर करीब एक हजार घोड़ों पर दौड़ाकर ज़मीन को इस तरह बराबर कर दिया जाए। ताकि उसकी कब्र का कोई भी निशान बाकी ना रह जाए।
जिंगनू में राजाओं की कब्रें जमीन से करीब 20 मीटर गहराई में एक कमरेनुमा बड़े से खंडर को बनाकर दफनाई जाती है। इतना ही उस कमरे में उनके द्वारा इकठ्ठा की कई कीमती चीजों को भी उनके साथ उस कमरे में दफ़ना दिया जाता था। माना जाता है कि चंगेज को भी इसी तरह के कमरेनुमा कब्र में दफनाया गया होगा।
मंगोलिया लोगों के चंगेज़ की कब्र को ना खोदने के पीछे एक वहम और डर की भी कहानी भी है। कहते है कि अगर चंगेज़ खान की कब्र खुदेगी, तो दुनियाभर में तबाही आ जायेगी। उनके पास अपने इस वाक्य को सार्थक करने के पीछे कई मिसाले भी है।
हालांकि 90 के दशक में जापान और मंगोलिया ने मिलकर चंगेज़ की कब्र को तलाशने के लिए एक जवांइट प्रोजेक्ट शुरू किया, जिसका नाम था ‘गुरवान गोल’। दोनों के बीच शुरू हुए इस प्रोजेक्ट के तहत चंगेज़ खान की जन्म भूमि ‘खेनती’ में रिसर्च शुरू की गई, लेकिन इसी दौरान मंगोलिया में लोकतांत्रिक क्रांति शुरू हो गई। जिसके बाद कम्युनिस्ट शासन खत्म हो गया और नई सरकार ने इस प्रोजेक्ट पर पूरी तरह रोक लगा दी।
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