इतिहास

हँस के लिया पाकिस्तान – लड़ के लेंगे हिन्दुस्तान

पाकिस्तान के वह लोग जिनको कभी भी शान्ति पसंद नहीं है या फिर पाकिस्तान के राजनैतिक लोग जो हमेशा से मजे में रहे हैं उनको युद्ध से बहुत प्यार है.

ऐसे लोगों को लगता है कि हमने पाकिस्तान तो हँस के भारत से ले लिया है और हिन्दुस्तान को हम लड़कर ले लेंगे.

लेकिन वहीँ दूसरी ओर पाकिस्तान यह भूल जाता है भारत देश में यहाँ का बच्चा-बच्चा पाकिस्तान को उसके नापाक मंसूबों में कभी भी सफल नहीं होने देगा.

भारतीय स्वयंसेवक संघ जिसे आज भारत में भगवा बोला जाता है उसके कई बलिदानी स्वयंसेवकों ने समय-समय पर भारत माता की रक्षा के लिए अपने प्राणों की कुर्बानी तक की है. यह कहानी सन 1947-48 की है. पाकिस्तानी की ओर से भारत पर जबरदस्त और एक बड़ा हमला किया गया था. भारतीय वायुसेना ने कश्मीर में जहाजों से कई जगह सेना के लिए हथियार गिराए थे लेकिन कुछ हथियार पाक सेना के पास जाकर गिरे थे. सेना के अधिकारी अपने सैनिकों को खोना नहीं चाहते थे और तब पंजाब नैशनल बैंक के प्रबंधक श्री चंद्रप्रकाश कोटली में नगर कार्यवाह थे. उन्होंने कमांडर से पूछा कि कितने जवान चाहिए? कमांडर ने कहा – आठ से काम चल जाएगा. चंद्रप्रकाश जी ने कहा – एक तो मैं हूं, बाकी सात को लेकर आधे घंटे में आता हूं.

देश के अधिकतर लोगों ने यह कहानी निश्चित रूप से नहीं पढ़ी होगी.

कहानी कुछ लोगों को झूठी लगेगी लेकिन कसम खाकर बोला जा सकता है कि कहानी पूरी तरह से सच्ची है.

तो आइये आज हम आपको बताते हैं कि किस तरह से आठ संघ के स्वयंसेवकों ने भारतीय सेना के लिए अपने प्राणों को भी न्योछावर कर दिया था-

तब श्री चंद्रप्रकाश कोटली ने खोजे स्वयंसेवक

भारतीय सेना कमांडर को हथियारों की विशेष आवश्यकता थी.

भारत की सेना के पास पहले ही हथियार कम थे. कश्मीर के राजा हरिसिंह पहले ही अपनी सेना के साथ सरेंडर कर चुके थे. कुल मिलाकर अब भारतीय सेना को ही कबालियों से कश्मीर की रक्षा करनी थी. तब श्री चंद्रप्रकाश कोटली ने 7 स्वयंसेवकों की खोज चालू की क्योकि आठवे स्वयंसेवक वह खुद थे. जब कोटली जी ने अपने लोगों को ऐसा बताया तो इस कार्य के लिए कुछ 30 जवान तैयार हो गये थे. किन्तु चंद्रप्रकाश कोटली जी ने साफ़-साफ बताया कि इस कार्य के लिए बस आठ की लोग चाहिए इसलिए बाकी लोग आने वाले समय के लिए खुद को सुरक्षित रखें. ना जाने कब भारत माता की रक्षा के लिए अन्य युवाओं की आवश्यकता पड़ जाये कोई नहीं जानता है.

इसलिए आठ स्वयंसेवकों के साथ श्री चंद्रप्रकाश कोटली उस स्थान की ओर निकल लेते हैं जहाँ भारतीय विमान से हथियारों को गिराया था.

पाकिस्तान सेना थी सामने 

इन आठ स्वयंसेवकों के सामने दो चीज थीं.

एक नाला सामने था जिसे पार करके हथियार उठाने थे और दूसरी तरफ पाकिस्तान की सेना भी थी.

उस समय इन स्वयंसेवकों को कवर फायरिंग देने के लिए भी ज्यादा गोलियां नहीं थीं. इसलिए यह काम स्वयंसेवकों को बड़ी शान्ति से करना था. यह घटना कोटली की बताई जाती है जो आज पाक के अधिकृत है. यह आठ स्वयंसेवक शान्ति से नाला पारकर हथियारों की पेटियां उठाते हैं और वापस चल देते हैं. लेकिन तभी चंद्रप्रकाश कोटली और वेद प्रकाश जी को गोलियां लग जाती हैं. बाकी स्वयंसेवकों को श्री चंद्रप्रकाश कोटली आदेश देते हैं कि पहले सेना तक हथियार पहुंचा दो तब हो सके तो हमें लेने आ जाना. 6 स्वयंसेवक सेना तक हथियार पंहुचा देते हैं.

बाद में यही 6 लोग अपने बुजुर्गों को लेने आते हैं किन्तु तब तक यह लोग शहीद हो चुके थे. इन दोनों वरिष्ट स्वयंसेवकों को ले जाते समय दो और जवान शहीद हुए थे. इस तरह से 4 स्वयंसेवक जो संघ से जुड़े हुए थे उन्होंने देश की रक्षा और प्रतिष्ठा के लिए अपने प्राणों को भी न्योछावर कर दिया था.

इस कहानी को इतिहास की कई पुस्तकों में जगह दी गयी है ना जाने क्यों इस गाथा का जिक्र आज युवाओं के सामने नहीं किया जाता है.

Chandra Kant S

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Chandra Kant S

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