चन्द्रशेखर आज़ाद भरतीय ऐतिहासिक जीत का वो नाम जिसके बिना भारत की आज़ादी का इतिहास अधुरा है। आज जहां एक ओर युवा पीढ़ी के ज्यादातर लोग गांधी की सोच को गलत मानते है, वही लोग चन्द्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह की हर सोच को सही ठहराते है।
26 जुलाई 1906 को मंध्यप्रदेश के भाबरा में जन्में चंद्रशेखर तिवारी का नाम चन्द्रशेखर कैसे पड़ा… इसके पीछे एक कहानी है। आज़ाद की मां उन्हें संस्कृत का विद्वान बनाना चाहती थी, पर आज़ाद का दिल-दिमाग तो देश की आज़दी के पीछे भागता था। बस फिर क्या अपने सपने को आखों में जुनून की तरह लिए आज़द जलियांवाला बाग कांड के बाद बड़े क्रांतिकारियों के साथ प्रोटेस्ट पर उतर गए। जिसमें अंग्रेजों ने उसे गिरफ्तार कर लिया।
उस वक्त चन्द्रशेखर महज 16 साल के थे। जब गिरफ्तार हुए तो कोर्ट में पेशी हुई और पेशी के दौरान जब उनसे नाम, पता, पिता का नाम पूछा गया, तो उन्होंने कहा – “मेरा नाम आज़ाद है, पिता का नाम स्वतंत्र और पता जेल है”। इस बात पर मजिस्ट्रेट भड़क भी गया और उसने उन्हें 15 दिन जेल की सजा भी सुनाई। बस यही वो पल था जब चन्द्रशेखर तिवारी का नाम चन्दरशेखर आज़ाद में बदल गया।
चन्द्रशेखर आज़ाद की मृत्यु 27 फरवरी 1931, इलाहाबाद में हुई थी। चन्द्रशेखर आज़ाद बचपन से ही बेहद गुस्सेल थे। हमने बचपन से ही किताबो में चन्द्र शेखर आजाद जी के बारे में काफी कुछ पढ़ा है। पर इन किताबो में आजाद जी के बारे में वो जानकारी नही दी गयी है जो हम आज आपके साथ सांझा करने वाले है। आपने हमेशा एख गुस्सैल, अडियल और आज़ादी के दिवाने आज़ाद के किस्से सुने होंगे। आइये आज हम आपको आजाद के बारे में कुछ रोचक तथ्य दिखाते है।
संस्कृत विद्वान बनने काशी विद्यापीठ गए
चन्द्रशेखर आज़ाद के माता-पिता उन्हें संस्कृत का विद्वान बनाना चाहते थे, इसलिए उन्हें संस्कृत पढ़ने के लिए बनारस के काशी संस्कृत विद्यापीठ भेजा था, लेकिन आज़ाद के मन में तो देश की आज़ादी की लौ जल रही थी।
सादा नहीं, फक्कड़पन जीवन था पसंद
आजाद को फक्कड़ जीवन पसंद था। वह अंग्रेज़ो से बचने के लिए भी साधू का रूप धारण करते थे। उन्होंने एक बार गाज़ीपुर में एक साधू के चेले के रूप में भी शरण ली थी। कहा जाता है कि वे ओरछा में सतार नदी के किनारे कुटिया बनाकर रहते थे।
ब्रम्हचारी थे चन्द्रशेखर आजाद
चंद्रशेखर आजाद ब्रम्हचारी थे। एक बार सुखदेव ने एक स्त्री की फोटो अपने कमरे में लगाई तो आजाद ने वो फोटो फाड़ते हुए कहा कि मोहकता में फंसते हुए हमें अपना ध्यान नहीं भटकाना है।
चन्द्रशेखर आज़ाद बेहद धैर्यवान थे
चंद्र शेखर धैर्यवान और चतुर व्यक्ति थे। वह हर स्थिति का समाधान धैर्यपूर्वक निकलते थे। चंद्रशेखर के बारे में कहा जाता है कि, जब एक व्यवसायी के यहाँ समारोह में शामिल आजाद को मालूम चला कि वहां पुलिस आ गई है, तब बिना घबराये उन्होंने गमछा सिर पर डाला, मिठाई की टोकनी सिर पर रखी और वहां से निकल गए।
महिलाओं का बहुत सम्मान करते थे
आजाद महिलाओं बहुत आदर करते थे। एक बार जब आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल सहित अपने दोस्तों के साथ अमीरों को लूटने के उद्देश्य से एक घर में घुसे, तो उस घर की महिला ने आजाद की पिस्तौल छीन ली, इसके बावजूद आजाद ने महिला पर हाथ नहीं उठाया। तब बिस्मिल ने आजाद को वहां से बचाया था।
बेहद अडियल थे चन्द्रशेखर आज़ाद, उन्होंने कसम खाई थी कि कभी किसी अंग्रेज की गोली से नहीं मरेंगे। इसलिए जब अंतिम समय में अग्रेजों ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया और उनकी पिसतौल में भी ज्यादा गोलिया नहीं बची, तो उन्होंने खुद को गोली मार ली और खुद ही अपनी जान ले ली। जाते-जाते कह भी गए…
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