सीबीआई एजेंसी यानी सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन इन दिनों सुर्खियों मे छाई हुई है और वजह है उसके आला अफसरों का घूसखोरी कांड में शामिल होना.
सीबीआई एजेंसी देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी है. जब कोई केस पुलिस नहीं सुलझा पाती तो इसे सीबीआई को भेज दिया जाता है, क्योंकि इसके अफसर ज़्यादा तेज तर्रार माने जाते हैं.
इन दिनों सीबीआई के दो तेजतर्रार अफसरों की वजह से सीबीआई की साख गिरती हुई नज़र आ रही है. ये अफसर हैं सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना. दोनों पर गलत तरीके से पैसे लेने का आरोप लगने के बाद दोनों को छुट्टी पर भेज दिया गया है. चलिए आपको बताते हैं देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी की ताकत के बारे में.
सीबीआई एजेंसी 1963 में अस्तित्व में आई. सीबीआई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले अपराधों जैसे हत्या, घोटालों और भ्रष्टाचार के मामलों की सरकार की तरफ से जांच करती है. सीबीआई बनने के बाद उसे कई हिस्सों में बांटा गया- एंटी करप्शन डिवीजन, इकोनॉमिक्स ऑफेंस डिवीजन, स्पेशल क्राइम डिवीजन, डायरेक्टरेट ऑफ प्रॉसिक्यूशन, एडमिनिस्ट्रेटिव डिवीजन, पॉलिसी एंड कॉर्डिनेट डिवीजन और सेट्रल फॉरिसिक साइंस लेब्रोरिटी.
बात अगर सीबीआई एजेंसी के अधिकारों की करें, तो करप्शन समेत अन्य मामलों को लेकर भ्रष्टाचार निरोधी अधिनियम की धारा 17 के तहत किसी अफसर के खिलाफ जांच करने के लिए सरकार की इजाजत लेने की जरूरत नहीं है. हालांकि कोर्ट ने कहा है कि सीबीआई जांच के आदेश देते वक्त कोर्ट को खास एहतियात बरतना होगा.
सीबीआई एजेंसी में दो तरह के विंग होते हैं. पहला- सामान्य अपराध विंग, दूसरा- आर्थिक अपराध विंग. सामान्य अपराध विंग समान्य अपराध की जांच करता है. वहीं आर्थिक अपराध विंग आर्थिक अपराध की जांच करता है. आपको बता दें, सीबीआई की जांच से जुड़ी सुनवाई विशेष सीबीआई अदालत में ही होती है. पहले सीबीआई केवल घूसखोरी और भ्रष्टाचार की जांच तक सीमित थी, लेकिन 1965 से वह हत्या, किडनैपिंग, आतंकवाद, वित्तीय अपराध, आदि मामलों की भी जांच करती है.
देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी होने के बावजूद सीबीआई की जांच आसान नहीं होती है. इसमें काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. भारत सरकार की तरफ से मिले आदेश के बाद ही सीबीआई अपनी जांच प्रक्रिया शुरू करती है. भ्रष्टाचार से संबंधित कोई मामला दिखे तो आप सीबीआई को इस मामले में सीधे शिकायत कर सकते हैं और ऐसे केस की जांच के लिए सीबीआई को राज्य या केंद्र सरकारर की इजाजत की जरूरत नहीं होती है.
सरकार से आदेश मिलने के बाद ही अधिकतर मामलों में सीबीआई अपना काम करती है इसलिए इस पर अक्सर उंगलियां भी उठती रही है. सुप्रीम कोर्ट भी सीबीआई के काम के तरीकों पर आपत्ति जता चुका है और इसे ‘पिंजरे में बंद तोता’ करार दिया था.
ये बात सच है कि सीबीआई एजेंसी सरकारी एजेंसी है तो वह सत्ता में मौजूद सरकार के खिलाफ जाकर कोई जांच नहीं करेगी, ऐसे में उसकी निष्पक्षता पर सवाल उठना लाजमी ही है.