साल दर साल दुनिया में कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर बढ़ रहा है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग में बढ़ोतरी हो रही है और दुनिया का तापमान बढ़ रहा है। इस बढ़ते हुए तापमान को रोकने के लिए पूरी दुनिया कई मीटिंग करती है और बड़े-बड़े प्रण लेती है कि अगले पांच साल… दस साल… आदि सालों में वे कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन कम करेंगे। लेकिन अगले सालों में परिणाम ढाक के पात होते हैं।
भारत इन परिणामों को पूरा करने में सबसे पीछे है जिसका उसे बुरा परिणाम भुगनता पड़ रहा है। मतलब कि कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन से हर साल भारत को 210 अरब डॉलर का नुकसान हो रहा है।
भारती अर्थव्यवस्था को हो रहा नुकसान
210 अरब डॉलर… मतलब की 15239700000.00… लगभग 1 खरब रुपये का नुकसान हो रहा है। इतने पैसों से पूरे देश की गरीबी जा सकती है। कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन से भारतीय अर्थव्यवस्था को हर साल 210 अरब डॉलर का नुकसान होता है। यह आंकड़े हाल ही में एक वैश्विक शोध की रिपोर्ट में जारी की गई है।
शोध में आई रिपोर्ट
शोध में आई इस रिपोर्ट के अनुसार कार्बन उत्सर्जन से हर साल भारत को सबसे ज्यादा नुकसान हो रहा है। इसमें बताया गया है कि अमेरिका के बाद जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा आर्थिक नुकसान भारत को ही झेलना पड़ा है और इसमें आर्थिक और सामाजिक (स्वास्थ्य इत्यादि संबंधी) नुकसान शामिल हैं। पिछले शोध में सारा ध्यान इस बात पर था कि जीवाश्म ईंधन आधारित अर्थव्यवस्थाओं से अमीर देशों को किस तरह लाभ पहुंचा जबकि इसका नुकसान विकासशील देशों को उठाना पड़ा है।
सबसे ज्यादा अमेरिका को नुकसान
हर किसी को जानकर हैरानी होगी कि कार्बन उत्सर्जन से सबसे ज्यादा नुकसान अमेरिका को हो रहा है। यह शोध कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शोधार्थियों ने किया है। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शोधार्थियों ने पाया कि जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा नुकसान उठाने वाले देशों में अमेरिका शीर्ष पर है, जबकि इनके बाद क्रमश: भारत और सऊदी अरब हैं।
शोधार्थियों ने पता लगाई सामाजिक लागत
शोधार्थियों ने अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान के अलावा उत्सर्जन की सामाजिक लागत भी निकाली है। सामाजिक लागत का मतलब होता है कार्बन उत्सर्जन से लोगों के स्वास्थ्य एवं अन्य चीजों पर पड़ने वाला असर जिससे लोगों की जीवनशैली प्रभावित होती है। भारत में प्रति टन कार्बन उत्सर्जन की सामाजिक लागत 86 डॉलर है।
तापमान वृद्दि के साथ धीमी होगी भारत की आर्थिक वृद्धि
विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर और इस रिपोर्ट की सह-लेखक कैथरीन रिकी ने कहा कि जैसे-जैसे दुनिया के तापमान में वृद्धि होगी वैसे-वैसे भारत की वृद्धि दर कम होते जाएगी। आर्थिक नुकसान का मॉडल संकेत देता है कि जैसे-जैसे तापमान बढ़ेगा, भारत की आर्थिक वृद्धि धीमी होगी। यह रिपोर्ट नेचर क्लाइमेट चेंज जर्नल में प्रकाशित हुई है।
इस रिपोर्ट से अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत को अब सतर्क हो जाने की जरूरत है और अपने कार्बन उत्सर्जन में कमी करने की जरूरत है। जिससे की भारत का विकास हो सके और वह विकसित देशों की श्रेणी में आ सके।
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