नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ के बस्तर में तैनात रहे आईजी कल्लूरी वह शख्स है जिसका नाम सुनते ही नक्सलियों को मौत का डर सताने लगता है.
कल्लूरी जब बस्तर में आई जी थे वहां नक्सलियों का नहीं बल्कि कल्लूरी का आंतक था. उनके दो साल के कार्यकाल में नक्सली पुलिस या सुरक्षा बलों पर हमला करना तो दूर अपने घर से निकलने से भी डरते थे.
नक्सलियों के सफाए के लिए नक्सली विरोधी अभियान छेड़े आई जी कल्लूरी ने कई नक्सलियों का सफाया किया.
जब ये अधिकारी छत्तीसगढ़ दौरे पर आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिला तो उस वक्त उन्होंने प्रधानमंत्री से वादा किया था कि एक साल के अंदर वे राज्य से नक्सलवाद को खत्म कर देंगे.
लेकिन ये विडंबना ही है कि उसके कुछ महीने बाद ही उनका तबादला कर दिया गया.
कल्लूरी का नक्सलवादियों के बीच किस कदर भय था इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि हाल में नक्सलियों से मिले सामान की तलाशी के दौरान मिले पत्र में बताया गया है कि आई जी कल्लूरी नक्सलियों का सबसे बड़ा दुश्मन है.
गौरतलब है कि एरिया कमेटी मेम्बर वर्गिश ने यह पत्र जगदीश नाम के अपने एक बड़े लीडर को लिखा है. मार्च महीने की तारीख वाले इस पत्र में इलाके में नक्सलवाद को बचाने के लिए आईजी का खात्मा जरूरी बताया गया है.
क्योंकि यदि कल्लूरी को मार दिया जाता है तो नक्सलियों के पुलिस के सामने आत्मसमर्पण की नीति बंद हो जाएगी. उल्लेखनीय है कि बस्तर रेंज में करीब दो वर्ष तैनात आईजी एसआरपी कल्लूरी ने बस्तर में कई नक्सली विरोधी अभियान चलाए हैं, जिसके फलस्वरूप कई नक्सलियों ने आत्मसमर्पण भी किया है.
कल्लूरी के बारे में बताया जाता है कि वे बेहद सक्रिय अधिकारी हैं. नक्सली विरोधी अभियान में खुद रात-रात भर पैदल चलकर हिस्सेदारी करते हैं और उत्तर छत्तीसगढ़ से नक्सल आंदोलन को खत्म करने में उनकी मुख्य भूमिका रही है.
लेकिन उनके इस नक्सली विरोधी अभियान को रोकने के लिए नक्सलियों ने देश में बैठे अपने बुद्धिजीवियों और मानवाधिकारवादियों को उनके पीछे लगा दिया. मीडिया में बैठे अपने सहयोगियों के माध्यम से उन पर मानवाधिकार हनन के आरोप लगाए जाने लगे.
उनको बदनाम करने और नक्सल ऑपरेशन को रोकने के लिए उनपर नक्सल ऑपरेशन के दौरान आदिवासियों के घरों को जलाने और फर्जी एनकाउंटर में मासूम आदिवासियों को मारने के आरोप लगाए जाने लग.
दिल्ली में बैठे में नक्सल समर्थक सामाजिक कार्यकर्ताओं, प्रोफेसरों और पत्रकारों ने उनकी कार्यशैली का जमकर विरोध किया.
नक्सलियों के समर्थन और कल्लूरी के विरोध में खूब प्रचार किया गया. इसके विरोध में सहायक पुलिस कर्मियों ने भी रैलियां निकालकर मानवाधिकारवादियों के पुतले जलाए थे. राज्य में नक्सल विरोधी लोगों ने वहां की नक्सल समर्थक सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया के घर पर हमला कर दिया.
इसको लेकर नक्सल समर्थकों ने कल्लूरी को जिम्मेंवार ठहराकर उनके खिलाफ एक मुहिम छेड़ दी. इस मामले में मुख्यमंत्री रमनसिंह को हस्तक्षेप करना पड़ा. कहा जाता है कि रमन सिंह यहां कमजोर साबित हुए और उन्होंन मानवाधिकारवादियों के दवाब में कल्लूरी का तबादला कर दिया.
इसके बाद से राज्य में नक्सलियों के हौसंले बुलंद हो गए है और जो नक्सली पुलिस और सुरक्षा बलों के डर से छिपे हुए थे वे बाहर निकलकर अब उन पर हमले करने लगे हैं.
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