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टॉयलेट के लिए पेंटिंग, सुनने में अजीब लगता हैं ना !

टॉयलेट के लिए पेंटिंग – इस टाइटल पर मत जाईयें क्योकि, जब आप इसके अंदर की स्टोरी पढ़ेंगे तो आप का दिल खुश हो जायेगा.

जहाँ 13-14 साल की उम्र में बाकी बच्चों को अपने खेल-खिलौनें के इतर कुछ सूझता भी नहीं हैं वही धुलिया जिले के एक गाँव में आठवीं क्लास के कुछ छात्रों ने अपनी गाँव में शौचालय की सुविधा न होने की वजह से एक ऐसा काम कर दिया जिसे शायद किसी ने सोचा भी नहीं होगा.

देश भर में ज्यादातर नौजवान जहां सामूहिक और सामजिक ज़िम्मेदारियों निभाने से कतराते हैं, वही इतनी कम उम्र में धुलिया जिले के एक गाँव में रहने वाले महिद हरियाणावाला, कुणाल जोशी, रोहित कामथ, अमन वीरानी और हुसैन मोतीवाला नाम के यह सभी छात्र अपने गाँव में मुलभुत समस्याओं को देखकर खुद ही इसमें सुधार लाने की ओर कदम बढ़ाने का सोचा.

इन पाँचों छात्र की सोच यह थी कि अपने गाँव में सबसे पहले महिलाओं के लिए शौचालय होना बहुत ज़रूरी हैं. सरकार और प्रशासन भले ही इस ज़रूरत की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दे रही लेकिन हम प्रशासन के जगाने का इंतज़ार नहीं कर सकते हैं इसलिए हम सब ने खुद ही तय किया की इस कदम की ओर हम स्वयं ही काम करना शुरू करेंगे.

अपनी इस सोच को साथ लेकर इन छात्रों ने अपने पिछले शैक्षणिक सत्र की दूसरी छिमाही पर पेंटिंग्स बनाना शुरू किया. इन छात्रों की सोच यह थी कि अपने द्वारा बनायीं गयी यह सारी पेंटिंग्स की प्रदर्शनी लगाकर बेचेंगे और इस प्रदर्शनी से जितनी राशि इकट्टा होगी उसका इस्तेमाल गाँव में महिला शौचालय बनाने में करेंगे.

धुलिया के गाँव में रहने वाले इन छात्रों द्वारा बनायीं गयी पेंटिंग्स की प्रदर्शनी पिछले मंगलवार को भुलाभाई देसाई रोड में स्थित क्रेमोरोजा आर्ट गैलरी में लगी हैं. इन बच्चों द्वारा बनायीं गयी पेंटिंग्स की प्रदर्शनी को 29अगस्त तक सभी लोगों के लिए खुला रखा गया हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसे देख सके और मदद की राशि अधिक इकट्टी हो सके.

आठवी कक्षा के इन बच्चों ने बताया कि उन्हें ऐसा करने की प्रेरणा उनके आर्ट टीचर ‘एस रविन्द्रनाथ’ से मिली जब वह एक बार उनके गाँव धुलिया आये हुए थे और महिलाओं को शौच के लिए बाहर जाते देखकर इस बारे में हमसे कहा कि  प्रशासन के भरोसे रहना सही नहीं हैं आप सब को खुद ही कुछ करना होगा.

इन बच्चों की माओं से बात करने पर पता चला कि जब इनके टीचर एस रविन्द्रनाथ ने बच्चों से यह कहा उसके बाद से ही सभी बच्चे पेंटिंग को प्रोफेशनली बनाना शुरू किया नहीं तो ये सब शौकिया तौर पर ही पेंटिंग्स करते थे.

हम सभी को इतनी कम उम्र में इस तरह की सोच को सलाम करना चाहिए जो हमें सोचने पर मजबूर करती हैं कि हम अपने देश को क्या दे रहे हैं और दे भी रहे हैं या नहीं?

अब यह बात हमें इन बच्चों से सीखनी पड़ेगी.

Sagar Shri Gupta

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Sagar Shri Gupta

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