बोध कथा – भगवान बुद्ध ने देश भ्रमण करते हुए एक बार किसी नदी के तट पर डेरा डाला. वहां, बुद्ध जीवन के विभिन्न आयामों पर प्रतिदिन व्याख्यान देने लगे, बोध कथा सुनाने लगे, जिन्हें सुनने दूर-दूर के गाँवों के लोग आने लगे.
बुद्ध के प्रवचनों में एक तरह का प्रवाह था, तत्व ज्ञान था तथा उन प्रवचनों में जीवन का सार छिपा हुआ था. कहा जाता है कि उनकी वाणी से श्रोतागण मंत्रमुग्ध हो जाया करते थे.
वहीं, भक्तों में समीप के एक गाँव का निवासी भी आया हुआ था.
वो व्यक्ति बिना नागा किए हुए उनके व्याख्यान सुनता था. यह क्रम महीनों तक यूहीं चलता रहा. पर इतने समय बीत जाने पर भी उसने अपने अंदर कोई बदलाव नहीं पाया. वो इससे बहुत परेशान हो गया.
एक दिन प्रवचन के बाद जब सब लोग चले गए तो वह व्यक्ति बुद्ध के पास जाकर बोला कि भगवान, मैं लम्बे समय से लोभ इत्यादि छोड़कर एक अच्छा इंसान बनने के आपके प्रवचनों को सुनता आया हूँ. उन्हें सुनकर मैं उत्साह से ओत-प्रोत हो जाता हूँ. परंतु इन बातों से मुझमें किसी तरह का बदलाव नहीं महसूस हो रहा. उसकी ये बातें सुनकर बुद्ध मुस्कुराए. उन्होंने स्नेह से उस व्यक्ति के सिर पर हाथ फेरा और बोले कि वत्स, तुम कौन से गाँव से आए हो? उस व्यक्ति ने जवाब दिया कि वो पीपली गाँव से आया है. फिर बुद्ध ने पूछा कि उसका गाँव इस स्थान से कितना दूर है? उसने जवाब दिया कि करीब दस कोस. बुद्ध ने पुनः प्रश्न किया कि तुम यहां से अपने गाँव कैसे जाते हो? इसपर वो व्यक्ति बोला कि गुरुदेव, मैं पैदल ही जाता हूँ, परंतु आप भला मुझसे ऐसा क्यों पूछ रहें हैं? बुद्ध ने उसकी इस बात को अनसुना कर फिर पूछा कि क्या ऐसा संभव है कि तुम यहां बैठे-बैठे अपने गाँव पहुंच जाओ? उस व्यक्ति ने झुंझलाकर उत्तर दिया कि ऐसा तो बिलकुल भी संभव नहीं. मुझे वहां तक पहुंचने के लिए पैदल चलकर जाना ही होगा तभी मैं वहां पहुंच पाऊंगा.
बुद्ध ने कहा कि अब तुम्हें तुम्हारे प्रश्न का उत्तर मिल गया है. यदि तुम्हें अपने गाँव का रास्ता पता है, उसकी जानकारी भी है परंतु इस जानकारी को व्यवहार में लाए बिना, प्रयत्न किए बिना, पैदल चले बिना तुम वहां कैसे पहुंच पाओगे? उसी प्रकार यदि तुम्हारे पास ज्ञान है और तुम इसको अपने जीवन में अमल में नहीं लाते हो तो तुम अपने आप को एक बेहतर इंसान नहीं बना सकते. ज्ञान को अपने व्यवहार में लाना आवश्यक है. इसके लिए तुम्हें स्वयं दृढ़ निश्चय के साथ निरंतर प्रयास करने होंगे तथा सीखी गई बातों को जीवन की विभिन्न स्थितियों में निरंतरता के साथ प्रयोग में लाना होगा. ये थी बुद्ध की बोध कथा.
देखा जाए तो वास्तव में हम अपने जीवन में तभी एक तरह का परिवर्तन महसूस कर पाते हैं जब हम अपने गुरुओं या अच्छी किताबों से सीखी गई पद्धतियों को अपने व्यवहार में, अपने जीवन में शामिल करते हैं.
बिना प्रयास के केवल सुन भर लेने से भला कैसे किसी में बदलाव आ सकता है. आज के युग में ज़रूरी यही है की जो भी सुना,पढ़ा या फिर देखा जाए उसके सच को ज्यों-का-त्यों मानने से पहले अपने स्तर तक सच की पड़ताल करनी चाहिए. क्योंकि सच सभी के लिए अलग-अलग होता है.
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