कुशासन – हिंदुस्तान का इतिहास बड़ा ही सम्रद्ध रहा है। यहाँ की विविधता, आर्थिक हालात, संस्कृतिक और परंपरागत व्यवसाय इतने सम्रद्ध थे कि भारत को सोने की चिड़िया कह कर बुलाया जाता था।
लेकिन जैसे ही पहली बार 1651 में अग्रेजों का आगमन हुआ तभी से भारत की सम्रद्धता पर ग्रहण लगता गया और आखिरकार 300 सालों बाद यानी 1947 को यह ग्रहण ख़त्म हुआ।
लेकिन अब तक भारत की उस सम्रद्धता को पूरी तरह से लूटा जा चूका था, जिसके लिए हम पूरे विश्व में जाने जाते थे।
आज हम भारत की नहीं बल्कि भारत में शासन करने आये उन ब्रिटिश अधिकारियों की बात करने जा रहे हैं, जिन्होंने भारत से धन तो लूटा लेकिन उसे संभाल नहीं पाए, और उन्हें कुशासन की कीमत भी चुकानी पड़ी।
१ – राबर्ट क्लाइव:
यह बात 18वी सदी की है जब औरंगजेब की म्रत्यु हो चुकी थी, मुग़ल साम्राज्य से जुड़े छोटे-छोटे राज्यों ने खुद का अस्तित्व बना लिया था। ऐसा ही एक राज्य था “बंगाल”। बंगाल में नवाब सिराजुद्दौला का शासन चल रहा था।ईस्ट इंडिया कंपनी अपना व्यापार तो फैला रही थी लेकिन उसने नवाब को व्यापार कर देने से मना कर दिया ऐसे में नवाब ने कंपनी के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया और उसने अंग्रेजो के किले और गौदमो को कब्जे में ले लिया। बदले में राबर्ट क्लाईव के नेतृत्व में कंपनी की सेना और सिराजुदौला की सेना के बीच में युद्ध होता है, जिसमें नवाब की हार होती है और आखिरकार कंपनी का बंगाल का शासन मिल जाता है और यहीं से शुरुआत होती है, ब्रिटिश शासन की।
यहाँ आपको एक बात बता दें कि नवाब सिराजुद्दौला के सेनापति मीर कासिम ने नवाब को धोखा दिया था, जिसके कारण ही नवाब की हार हुई थी।
दो बार गवर्नर के पद पर रहने के बाद राबर्ट ने ब्रिटेन पहुँच कर खुद कबूला कि उसके पास 4 लाख पौंड के बराबर दौलत है जो उसने भारत में कमाई थी । आखिरकार ब्रिटिश संसद में उसके ऊपर भ्रस्टाचार के आरोप लगे जिसके कारण सन 1774 में उसने आत्महत्या कर ली।
२ – गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग (1773 -1785):
इस गवर्नर ने भारत में कंपनी की ताकत फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत के जिलों में कलेक्टर की व्यवस्था सन 1772 में इसी गवर्नर जनरल की देन है। इसके अलावा इस गवर्नर ने कई सारे प्रशासनिक सुधार भी किये। लेकिन जब 1785 में वारेन वापस इंग्लैंड लौटा तो एडमंड बर्के ने उस पर कुशासन का आरोप जड़ दिया, इस दौरान बर्के का स्टेटमेंट था… “मैं भारत के शत्रु और उत्पीड़क पर महाभियोग चला रहा हूँ” और आख़िरकार इस आरोप के चलते वारेन पर ब्रिटिश संसद में महाभियोग का मुकदमा चलाया गया जो सात साल तक चला।
अब तक जिन दो लोगों की हमने बात की इनमे से दोनों बड़े ब्रिटिश अधिकारी (गवर्नर यानी किसी राज्य का मुखिया और गवर्नर जनरल यानी पूरे भारत का मुखिया) थे। शायद ही हमने सुना हो कि किसी देश पर कुशासन करने के आरोप में किसी को सजा हुई हो, लेकिन ऐसा ब्रिटिश संसद में हुआ है।अतः कह सकते हैं कि कुशासन और अन्याय का खेल सभी लोगों ने नहीं बल्कि कुछ लालची उपनिवेशिक लोगों ने ही खेला है, और उन्हें इसकी पर्याप्त कीमत भी चुकानी पड़ी थी।
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