राव तुलाराम का जन्म 9 दिसंबर 1825 में हरियाणा प्रान्त के रेवाड़ी जिले में एक यादव राज-घराने में हुआ था.
जब तुलाराम मात्र 14 वर्ष के थे तभी इनके पिता का देहांत हो गया था. पिता क मृत्यु के बाद राज्य का सारा भार इनकी माता जी पर आ गया था.
उस समय देश पर अंग्रेजों का कब्ज़ा था और जब एक 14 साल का बच्चा राज गद्दी पर बैठा हो तो इस बात को अंग्रेज एक मौके रूप में देखते थे.
अंग्रेज चाहते थे कि वह इस प्रांत को अपनी सीमा के अन्दर ले लें और राज्य के लोगों से कर लेकर इनका शोषण करें.
इतिहास की पुस्तक भारतीय जनसमाज और अंग्रेज इस बारें में बताती है कि राव तुलाराम के पूर्वजों के पास 87 गावों पर आधारित जागीर थी जिसकी उस समय की कीमत 20 लाख रूपये रही होगी.
देश भक्ति का परिचय देते हुए राव राज-वंश ने मराठा-ब्रिटिश संघर्ष के समय मराठों का साथ दिया था. इससे नाराज होकर फिरंगियों ने उनकी जागीर को धीरे-धीरे घटाकर इतना छोटा कर दिया था कि उसकी कीमत मात्र एक लाख रूपये रह गई थी. अतएव फिरंगी सरकार से रेवाड़ी के राजवंश का नाराज होना स्वाभाविक था.
जब 1857 की क्रांति शुरू हुई
जब 1857 की क्रांति की शुरुआत हुई तो राव तुलाराम भी इस आग में कूद पड़े. पुस्तकें बताती हैं कि मेरठ से शुरू हुई इस लड़ाई में राव तुलाराम और उनके भाई दोनों शामिल थे.
एक तरफ अंग्रेजी हुकूमत भारतीय सिपाहियों को मार रही थी क्योकि वह कारतूस का प्रयोग नहीं कर रहे थे तो वहीँ दूसरी तरफ राव जी जैसे वीर योद्धा अंग्रेजों की नाक में दम कर रहे थे.
मेरठ में इन क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को दम चखाकर, दिल्ली की और रास्ता लिया. जहाँ बीच में कुछ 600 लोगों को भी जेल से छुड़ा लिया गया था. दिल्ली में जो लड़ाई लड़ी गयी थी उस जगह अंग्रेजी सेना में भगदड़ की भी ख़बरें लिखी हुई हैं.
इस के बाद राव तुलाराम को लगा कि अब अपने प्रांत में चलकर अंग्रेजों को वहां से भगाया जाये. 17 मई, 1857 को 500 यदावों की फ़ौज ने तहसील मुख्यालय पर धावा बोल दिया. तहसीदार तथा थानेदार को बाहर निकल कर तहसील के खजाने और सरकारी दफ्तरों आदि पर पूर्ण रूप से कब्ज़ा कर लिया. राम तुलाराम ने स्वयं को रेवाड़ी, भोरा और शाहजहानपुर के 421 गावों का शासक घोषित कर दिया.
इंग्लैंड में गूंजा योद्धा का नाम
इस बात की खबर जब अंग्रेजों को हुई तो सभी हैरान रह गये.
यहाँ जो हुआ था उसकी खबर इंग्लैंड तक गयी और बड़े अधिकारियों को बोला गया कि जल्द से जल्द तुलाराम को गिरफ्तार किया जाए अन्यथा यह आग जल्दी ही देश के अन्य हिस्सों मैं भी फैल जाएगी.
इसके बाद राव तुलाराम जी पर दो बार और हमला किया गया लेकिन उनके सामने कोई नहीं टिक पाया. जितनी भी बार अंग्रेजों ने इसके साथ लड़ाई लड़ी थी सभी जगह अंग्रेजों को जाना बचाकर भागना पड़ा था.
किन्तु जल्द ही राव तुलाराम का स्वास्थ्य खराब रहने लगा और जब रानी लक्ष्मी बाई की मृत्यु का समाचार इनको मिला उसके बाद से इनकी हिम्मत खत्म हो गयी. 23 सितम्बर 1863 को राव तुलाराम जैसे योद्धा ने अंतिम सांस ली और भारत माता का सपूत हमेशा के लिए हमें छोड़कर चला गया.
आज हममें से बहुत ही कम लोग इनके बारें में जानते हैं.
यह एक शर्म की बात है कि एक योद्धा जो देश के लिए लड़ा और उसकी जीवनी हम अपने बच्चों को नहीं पढ़ा पा रहे हैं.