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आखिर पास होने के लिए 33% मार्क्स ही क्यों चाहिए होते हैं?

परीक्षा में मार्क्स

परीक्षा में मार्क्स जब तक हम स्कूल या कॉलेज में पढ़ रहे होते हैं तब तक यह वाक्य हमारे लिए किसी प्रताड़ना से कम नहीं था।

ये ताने कभी पप्पा के द्वारा बड़ी बहिन की पढाई देख कर मिलेतो कभी बगल वाले शर्मा जी से। लेकिन हम भी 33 % का आंकड़ा हांसिल करने का लक्ष्य बनाकर  ही पड़ते थे और इसीलिए आज हम बात करने वाले हैं इसी मजेदार टॉपिक पर। परीक्षा में मार्क्स – क्या आप जानते हैं परीक्षा में मिनिमम पासिंग आउट मार्क्स का कांसेप्ट कहाँ से आया??

नहीं ना !! हम बताते हैं…

परीक्षा में मार्क्स

जब हमारे देश में ब्रिटिश रुल लागू हुआ तो इसके साथ ही हमारी प्राचीन गुरुकुल व्यवस्था को भी लगभग समाप्त कर दिया इसका कारण था लार्ड मैकाले, लार्ड विलियम बेंटिक जैसे इंग्लिश शिक्षा समर्थकों का उन उदारवादी चिंतकों जैसे- बिलियम जोन्स इत्यादि  पर भारी पड़ जाना जो अब तक भारतीय पुरा शिक्षा पद्धति का पक्ष ले रहे थे। चूँकि लार्ड विलियम बेंटिक भारत का गवर्नर जनरल भी बन चूका था अतः मैकाले का सपना पूरा होना लाजमी ही था।

मैकाले ने तो भारतीय शिक्षा पद्धति पर ताना गढ़ते हुए इतना तक कहा था कि “हिन्दुस्तान और पूरे अरब का साहित्य भी मिला दिया जाए तो यह पूरा यूरोप की लाइब्रेरी में रखी एक पुस्तक के बराबर भी नहीं।”

परीक्षा में मार्क्स

अब आप मैकाले के इसी कथन से समझ सकते हैं कि आखिर अंग्रेज हमारी शिक्षा को कितनी हीन दृष्टि से देखते थे. खैर हमारे देश में इसाई मिशनरीज के सहयोग से अंग्रेजी शिक्षा को प्रोत्साहन मिला, आज के इंग्लिश स्कूल इन्ही इसाई मिशनरीज के प्रोत्साहन का परिणाम है कि पूरा देश हिंदी और इंग्लिश से झुलस रहा है। खैर इंग्लिश होने का कुछ परिणाम  सकारात्मक भी रहा जैसे 1990 के दशक में भारत का सॉफ्टवेयर इंडस्ट्रीज के मामले में विश्व व्यापी बन जाना इत्यादि।

एक इंट्रेस्टिंग फैक्ट यह भी है कि जब भारतीय शिक्षण संस्थानों में अंग्रेजी शिक्षा लागू की गई तो अंग्रेजों के सामने समस्या आई कि मिनिमम पासिंग मार्क्स का आंकड़ा क्या रखा जाए और घोर विचार विमर्श के बाद ब्रिटेन की शिक्षा पद्धति के आधार पर निर्णय लिया गया।

उस समय ब्रिटेन में बच्चों को पास होने के लिए परीक्षा में मार्क्स मिनिमम 66 % हांसिल करने होते थे लेकिन जब भारत की बात आई तो अंग्रेजों ने सोचा कि वैसे भी भारतियों की बुद्धि अंग्रेजों से तो आधी है ही इसलिए भारतीय बच्चों के मिनिमम पासिंग आउट का आंकड़ा 33 % यानी ब्रिटेन की तुलना में आधा कर दिया।

मेरे ख्याल से आपको ये जरूर हास्यापद लगी होगी लेकिन यह सच है और ऐसा हुआ भी। अंग्रेजों ने अक्सर हम पर अपने कानून और नियम थोपे हैं फिर चाहे वो भारतीय न्याय व्यवस्था वो, या पुलिस प्रणाली या फिर इन सब से ऊपर राष्ट्रवाद की परिभाषा। सब कुछ अंग्रेजो ने हम पर अपनी इच्छा अनुसार थोपा है।

परीक्षा में मार्क्स –  इसी सन्दर्भ में अपने स्वार्थ की पूर्ती के लिए हजारो सालों से विकसित हमारे गुरुकुलों, आश्रमों को नष्ट कर दिया तथा हजारो साल पुरानी गुरु-शिष्य परंपरा को भी एक प्रोफेशनल टीचर और एक उपभोगी स्टूडेंट में तब्दील कर दिया।