सुनकर शायद आपको विश्वास ना हो लेकिन ये सच है कि भारत देश के उत्तर प्रदेश राज्य में ऐसे कई गांव है जहां पर शादी के लिए लड़कियों की नीलामी की जाती है या आप यूं कह सकते हैं कि लड़कियों की बोली लगाई जाती है. बात एक ही है.
आज जबकि दुनिया चांद पर पहुंच चुका है. साइंस के इस दौर में कुछ भी नामुमकिन नहीं लगता है.
हर किसी की सोच हाई क्लास की हो गई है. महिलाओं के अधिकार को लेकर काफी बातें होती हैं. और महिलाएं आज के समय में काफी सशक्त हो भी गई है बावजूद इसके शादी के लिए लड़कियों की नीलामी की जाती है. ऐसी परंपरा हैरान करने के सिवा और कर भी क्या सकती है.
आज तक हम सबने ये सुना था कि दहेज के रूप में लड़कों की बोली लगाई जाती है.
आपको थोड़ा अटपटा लगे लेकिन सच तो यही है कि जिस तरह दहेज के लिए लड़की वालों से खुलेआम मांग की जाती है उसे बोली लगाना ही कहना उचित है. इसके बारे में ज्यादा कुछ बोलने की जरूरत नहीं है क्योंकि दहेज जैसी परंपरा से तो हर कोई भलीभांति वाकिफ है. लेकिन इस बात को हममें से ज्यादातर लोग शायद पहली बार जान रहे हैं कि जिस तरह सामानों की नीलामी की जाती है ठीक उसी तरह यूपी के दर्जनों गांवों में मंगता जाति की लड़कियों की सार्वजनिक तौर पर बोली लगाई जाती है उसके बाद ही शादी संभव होता है.
यूपी के जौनपुर जिले की ये सच्ची कहानी है जहां के लगभग आधा दर्जन गांव में सैकड़ों परिवार रहते हैं जो कि मंगता जाति के हैं. इस जाति के लोग अपनी लड़कियों की शादी करने के लिए बेफिक्र रहते हैं क्योंकि इनके परिवार में जैसे हीं किसी भी लड़की की उम्र शादी के लायक हो जाती है तो सार्वजनिक तौर पर शादी के लिए लड़कियों की नीलामी की जाती है. उसके लिए लड़के और लड़के वालों की कोई कमी नहीं रहती आसानी से लड़की की शादी बिना किसी परेशानी के हो जाती है.
बता दें कि जब कभी भी शादी के लिए लड़कियों की नीलामी की जाती है तो उसमें सिर्फ उसी समाज के लोगों को हिस्सा लेने का अधिकार होता है जो अधिक से अधिक बोली लगाता हो. जो सबसे अधिक बोली लगाता है उस लड़की को वही दुल्हन बना सकता है. अब इसके बाद जिसके साथ लड़की की शादी तय होती है पूरे रस्मो-रिवाज के साथ शादी कर दी जाती है.
आराजी सवंसा, घरवासपुर, लाल बाग, चांदपुर, सराय विभार, और विकासखंड बख्शा के रसिकापुर में मंगता जाति के सैकड़ों परिवार रहते हैं. आपको शायद इस बात को जानकर हैरानी हो की मंगता जाति के लोग दिवाली, होली और अन्य त्योहार बड़े धूम-धाम से मनाते हैं और अपने आप को हिंदू धर्म से जोड़ कर रखे हुए है.
मंगता जनजाति का हर परिवार अपने आप को शिक्षा से काफी दूर रखे हुए है जिसकी वजह से इनकी सोच भी काफी पिछड़ी हुई है.
लगभग 85 फ़ीसदी आबादी झोपड़ी में ही रह रहे हैं. जब से स्कूल अभियान की शुरुआत हुई है तबसे इस जनजाति के लोगों के लगभग 60 फ़ीसदी बच्चों का दाखिला तो स्कूल में किया गया लेकिन कुछ समय स्कूल जाने के बाद ये बच्चे स्कूल जाना बंद कर देते हैं. इनके बच्चे दिनभर गांव में इधर-उधर घूमते रहते हैं या फिर अपने घर में ही रहते हैं. इसी जनजाति के एक परिवार में दो लड़के हैं जिनका नाम अनिल और मनोज है इन दोनों ने स्नातक तक की पढ़ाई पूरी की है लेकिन काम की बात करें तो ये बैंड पार्टी के साथ बाजा बजाया करते हैं.
मंगता जनजाति के लोग लड़कियों को समृद्धि का पर्याय मानते हैं. लड़कियों की शादी की उन्हें कोई चिंता नहीं होती. जब भी नीलामी की जाती है लड़कों का जमावड़ा लग जाता है. लड़की को देखने के बाद उसकी बोली लगती है. जो युवक सबसे अधिक बोली लगाता है उसके साथ लड़की का ब्याह कर दिया जाता है.
कई बार लड़की की बोली लगने के दौरान काफी विवाद और हंगामा भी होने लगता है और बात यहां तक पहुंच जाती है कि पुलिस तक को भी बुलाना पड़ता है. जो लड़की वाले होते हैं वे लड़के वालों से शादी के सारे खर्चे वसूलते हैं ये खर्चे 25,000 से लेकर डेढ़ लाख तक की रहती है.
वाकई यकीन करना मुश्किल होता है कि ये कोई मनगढ़ंत कहानी नहीं बल्कि इस समाज की सच्चाई है.
हमारा देश जहां इतनी प्रगति कर रहा है. भारत देश के हर समाज की सोच जहां इतनी बदल चुकी है उसी भारत देश के एक कोने में इस तरह की कुप्रथा धड़ल्ले से बिना किसी रोक-टोक के निरंतर चली जा रही है.
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