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जब महिलाओं को स्तन ढकने पर देना पड़ता था टेक्स – इस तरह मिली कुप्रथा से आजादी !

ब्रेस्ट टैक्स – हमारे इस पुरुष प्रधान समाज में हमेशा से हीं महिलाओं को कई तरह की कुप्रथाओं का शिकार होना पड़ता रहा है.

आज भी विज्ञान ने कितनी भी तरक्की क्यों ना कर ली हो, हमारा देश भी कितना भी क्यों न बदल गया हो, लेकिन कहीं ना कहीं महिलाओं के प्रति अत्याचार के मामले आए दिन सामने आते हींं रहते हैं.

लेकिन आज हम यहां महिलाओं से जुड़े जिस हिंसा के विषय में बात करने जा रहे हैं, वो 19वीं सदी के दौर में था. उस दौरान दक्षिण भारत में महिलाओं के स्तन ढकने पर पाबंदी थी.

इसे जानकर आप हैरान हो जाएंगे. हमें भी जब इस बात की जानकारी हुई, तो एक पल के लिए हमारा दिमाग व्यथित हो गया. किस तरह महिलाओं को इस प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता होगा. इस प्रथा से बाहर निकलने के लिए स्त्रियों को काफी कड़े संघर्ष से गुजरना पड़ा था.

आथ के समय में जो केरल शिक्षा के पैमाने पर सबसे आगे माना जाता है. यहां की महिलाएं भी काफी शिक्षित होती हैं. बता दें कि आजादी से कुछ समय पहले तक यहाँ की सामाजिक स्थिति काफी बेकार थी.

यहां की महिलाओं को कई तरह की कुप्रथाओं का सामना करना पड़ता था.

भरना पड़ता था ब्रेस्ट टैक्स

बता दें कि उस दौरान गौर करने वाली बात थी, कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, नम्बोदिरी और नैय्यर जाति की औरतों को घर से बाहर निकलने पर अपने शरीर के ऊपर के हिस्से को ढक कर चलने की इजाजत थी. ये जातिगत विभेद था. लेकिन दलित महिलाओं की बात करें, तो वे महिलाएं अगर अपने शरीर के ऊपरी हिस्से को ढक कर चलती थीं तो उन्हें यहां ‘Mulakkaram’ नाम का ब्रेस्ट टैक्स भरना पड़ता था. बता दें कि ये ब्रेस्ट टैक्स त्रावणकोर के राजा के द्वारा लगाया गया था और इसे काफी शख्ति के साथ लागू कराया गया था.

लेकिन दोस्तों, एक बात और है जिसे जानकर आप हैरान हो जाएंगे कि पुरुष प्रधान समाज ने इस बदलाव को स्वीकार करने से मना कर दिया था. शुरुआती दिनों में जब भी उच्च जाति पुरुषों के सामने अगर कोई भी नीची जाति की औरत अपने शरीर के ऊपरी हिस्से को ढक कर जाती दिख जाती, तो वे निर्दयी पुरुष उन महिलाओं के कपड़े फाड़ दिया करते थे. इतनी घिनौनी करतूत की हम सोच भी नहीं सकते.

एक महिला को तन ढकने की मिली थी ऐसी सजा

नांगोली, केरल के त्रावणकोर की एक नीची जाति की औरत थी. उन्होंने उन्नीसवीं सदी में वहां के मौजूदा राजा के खिलाफ जंग का आगाज़ किया था. ये जंग उन्होंने दलित महिलाओं की खातिर किया था. ताकि महिलाएं अपने स्तन ढक कर चल पाए. उन्होंने राजा के खिलाफ लड़ाई कर इस बात का विरोध किया था, कि तन ढकने पर लगने वाले अमानवीय ब्रेस्ट टैक्स को खत्म किया जाए और उस नांगोली महिला ने अपने स्तन ढकने के बदले ब्रेस्ट टैक्स की भरपाई नहीं की थी. जिसकी सजा के तौर पर त्रावणकोर के राजा ने उस महिला के स्तन को हीं कटवा दिया था. जिस वजह से महिला की मृत्यु हो गई थी.

जन क्रांति से आया बदलाव

उस नांगोली महिला की मौत के बाद समाज में जैसे आंदोलन की चिंगारी भड़क गई. सभी नीची जाति के लोग इस अपमान का बदला लेने को उतावले हो गए. और बगावत कर दिया.

इसी का परिणाम हुआ कि दलित महिलाओं के लिए भी इस कानून को खत्म करने का ऐलान किया गया.

ये वो समय था जब समाज में कई तरह के बदलाव हो रहे थे. जिसकी वजह से भी इस प्रथा का अंत होना संभव हो पाया. उन्नीसवीं सदी के शुरुआती दौर में समाज में काफी चीजें बदलने लगी थी. लोग कामकाज के सिलसिले में देश विदेश जाने लगे थे. और दूसरी जगहों की सामाजिक परिस्थितियों को देखने के बाद लोगों की मानसिकता में भी काफी बदलाव आया. और धीरे-धीरे महिलाओं की समाज में स्थिति भी बदलने लगी. धीरे-धीरे जब अंग्रेजों का दबदबा बढ़ने लगा, तो अंग्रेजों ने दीवान को इस परंपरा को पूरी तरह से और तुरंत खत्म करने का आदेश दिया. जिसके बाद 26 जुलाई 1859 को महिलाओं को अपने तन ढकने की पूरी आजादी मिल गई.

इस तरह महिलाओं की स्थिति में सुधार आया और अंग्रेजो ने महिलाओं के लिए आते हीं ऐसा काम किया जिससे उन्हें आजादी की सांस लेने की छूट मिली. इसका ये मतलब नहीं कि हम अंग्रेजों की तारीफ कर रहे हैं. उन्होंने हमारे सोने की चिड़ियां भारत का चैन छीन लिया.

आज भी हमारे देश में महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. इस मॉडर्न युग में भी महिलाएं अकेले आजादी के साथ बाहर नहीं घूम सकती हैं. आए दिन उनके साथ होने वाले अमानवीय व्यवहार, उनकी इज्जत के साथ खिलवाड़ और ना जाने कैसी-कैसी घटनाएं घटित होती रहती हैं. जिसका अंत ना जाने कब होगा. दोस्तों, समाज में इस तरह की परिस्थितियों को बदलने के लिए आवश्यक है कि हम अपने आप में बदलाव लाएं.  देश का हर व्यक्ति अपनेआप से ये कसम खाए कि किसी भी महिलाओं को किसी तरीके से प्रताड़ित नहीं करेंगे और ना हीं किसी के द्वारा होते देखेंगे. तभी संभव है कि हमारे देश में महिलाओं के हालात सुधर पाए.

Khushbu Singh

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