महिलाओं के कारनामे – महिलाएं अबला या कमज़ोर नहीं हैं, वो तो वक़्त, हालात और रिश्ते निभाने का बोझ उन्हें थोड़ा मजबूर बना देता है, बावजूद इसके इतिहास में कई ऐसे महिलाएं हुई हैं जिन्होंने अपने हक और अधिकार के लिए आवाज़ बुलंद करते अपने ताकत दिखाई है.
आज हम आपको कुछ ऐसी ही महिलाओं के बारे में बताने जा रहे हैं जो हैं तो बहुत आम, लेकिन इन्होंने महिलाओं के हक में आवाज़ उठाकर बहुत खास काम किया है.
ये महिलाएं महिला सशक्तिकरण की असली मिसाल हैं. इनकी कहानी से यकीनन आपको भी प्रेरणा मिलेगी.
महिलाओं के कारनामे –
१ – चेतना गाला सिन्हा
चेतना गाला बचपन से ही शहर में पली-बढ़ी, लेकिन हमेशा उनके दिमाग में गांव की महिलाओं की स्थिति सुधारने की बात रही. इसलिए तो गांव की महिलाओं की ज़िन्दगी बदलने के लिए उन्होंने शहर छोड़ दिया और 1997 में ‘माण देशी बैंक’ खोला’. ये बैंक महिलाओं का, महिलाओं द्वारा और महिलाओं के लिये आज भी काम करता है.
२ – घिसी देवा
राजस्थान एक ऐसा राज्य जहां आज भी चोरी-छिपे बाल विवाह हो रहा है और जहां की महिलाएं परदे में रहने के लिए मज़बूर हैं. राजस्थान में अपने गांव की महिलाओं पर पुरुषों द्वारा किए जा रहे अत्याचार से तंग आकर घिसी देवा ने इसके खिलाफ़ आवाज़ उठाई. घिसी ‘दूं जमाता’ की लीडर हैं. उन्होंने 11 अन्य महिलाओं के साथ मिलकर इस संस्था की शुरुआत की. ये संस्था पत्नी पर अत्याचार करने वाले पतियों की खबर लेती है, पहले समझाती हैं और अगर उससे बात न बनें फिर डंडे से पीटकर उन्हें सीधा करती हैं.
३ – इरोम शर्मिला
मणीपुर की आयरल लेडी इरोम ने AFSPA क़ानून के खिलाफ़ एक अरसे तक भूख हड़ताल की. आत्महत्या की कोशिश के इल्ज़ाम में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया, लेकिन उन्होंने अपनी ज़िद नहीं छोड़ी. 2016 में उन्होंने 16 साल बाद अपनी भूख हड़ताल ख़त्म की थी.
४ – हर्षिनी कान्हेकर
बहुत से लोगों को इनका नाम पता नहीं होगा. हर्षिनी कान्हेकर भारत की पहली महिला फायर फाइटर हैं. आज से तकरीबन 10 साल पहले हर्षिनी ने ये करिश्मा कर दिखाया था. महिलाएं चांद तक पहुंच सकती हैं, तो आग से लोगों को क्यों नहीं बचा सकती? बस इसी सोच के साथ हर्षिनी पुरुषों के वर्चस्व वाले इस पेशे में आ गईं.
५ – सपना तिग्गा
अब तो भारतीय सेना में ढेर सारी महिलाए हैं, मगर क्या आप जानते हैं कि वो पहली महिला कौन थी जिसने सेना जॉइन की. सपना तिग्गा भारतीय सेना की पहली महिला जवान. जब सपना ने ये मुकाम हासिल किया तब उनकी उम्र 35 की थी और वो दो बच्चों की मां बन चुकी थीं. बावजूद इसके सेना की तमाम परिक्षाओं में वो पास हुईं.
६ – दुर्गा शक्ति नागपाल
इनका नाम तो आपने सुना ही होगा. भ्रष्टाचार के खिलाफ़ मोर्चा खोलने वाली दुर्गा शक्ति नागपाल को कई मुसीबतों का सामना करना पड़ा, लेकिन वो अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटीं. आईएएस अधिकारी दुर्गा ने सबको गौतम बुद्ध नगर में भ्रष्टाचार के खिलाफ़ आवाज़ उठाकर सबको चौंका दिया था. ग्रेटर नोएडा में एक मस्जिद की दीवार गिराने के इल्ज़ाम में उन्हें सस्पेंड कर दिया गया. जिस फैसले का आम जनता ने कड़ा विरोध भी किया था.
७ – रूपा देवी
आपने शायद इनका नाम नहीं सुना होगा. रूपा देवी, भारत की पहली महिला रेफ़्री हैं जिन्हें फीफा (FIFA) में मैच करवाने के लिए चुना गया. तमिलनाडु की रूपा ने बहुत सी चुनौतियों का सामना कर इस मुकाम को हासिल किया है, लेकिन विडंबना ये है कि फीफा द्वारा चुने जाने के बावजूद उनके पास कोई सरकारी नौकरी नहीं है.
८ – संपत पाल देवी
गुलाबी गैंग के बारे में तो आप जानते ही होंगे. संपत इसकी मुखिया हैं. औरतों को उनका हक दिलाने और पुरुषों के अत्याचार का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए संपत और उनकी साथियों ने डंडा उठाया. बॉलीवुड फिल्म गुलाबी गैंग इनकी ज़िंदगी पर ही बनी है.
ये है महिलाओं के कारनामे – इन महिलाओं के कारनामे जानने के बाद आप आगे से किसी भी महिला को कमज़ोर नहीं समझेंगे और महिलाएं खुद भी अपने आपको अबला नहीं समझेंगी.
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