बप्पा रावल – राजस्थान का इतिहास एक तरफ़ तराजू में रख दिया जाए और बाकी देश का इतिहास दूसरी तरफ़ तो भी राजपूताने का पलड़ा ही भारी नज़र आएगा.
इसी राजस्थान की वीरभूमि पर इतिहास में एक ऐसे वीर योद्धा पैदा हुए थे, जिन्होंने भारत में घुसने की कोशिश करने वाली मुस्लिम सेनाओं को हरा कर अरब तक खदेड़ दिया था. मुस्लिम योद्धाओं में उनका कहर इस क़दर था कि अगले 400 सालों तक मुस्लिम सेनाओं ने खुल कर भारत पर कभी कोई संगठित हमला करने की कोशिश नहीं की.
इस महान योद्धा का नाम था, बप्पा रावल. पाकिस्तान के ‘रावलपिंडी’ शहर का नाम इन्हीं बप्पा रावल के नाम पर रक्खा गया है.
बप्पा रावल का शुरुआती जीवन
बप्पा रावल का जन्म 8वीं सदी में हुआ था, हालाकि कुछ इतिहासकारों में इसे लेकर मतभेद भी है. बप्पा के पिता नागादित्य ईडर के गुहिल वंशी राजा थे. उनकी मृत्यु के बाद बप्पा की माता बप्पा को लेकर नागर जाति के कमलावती वंशजों के पास शरण के लिए चली गई. कहा जाता है, कमलावती वंशज गुहिल राजवंश के कुल पुरोहित थे.
कुछ समय बाद भील जाति के भय से कमलावती के ब्राह्मण बप्पा को लेकर भांडेर नामक स्थान पर चले गए. यहां बप्पा गायें चराने का काम करने लगे. कुछ समय बाद यहां से वो नागदा चले गए.
कहते हैं, बप्पा रावल को हुए थे शिव के दर्शन
बप्पा जब गायें चराते थे, तो उन्होंने देखा कि एक गाय के थन में रोज शाम को दूध नहीं रहता था. जब उन्होंने इस रहस्य का पता लगाने के लिए निगरानी करना शुरू किया तो पाया कि जंगल में एक निर्जन सी जगह पर जा कर गाय हारीत ऋषि के यहां स्थापित शिवलिंग के ऊपर खड़ी हो गई. गाय के थन से अपने आप ही दुग्धाभिषेक होने लगा. इस घटना के बाद बप्पा हारीत ऋषि की सेवा और भक्ति में लीन रहने लगे. कुछ लोगों की मान्यता है कि हारीत ऋषि के आश्रम में बप्पा को महादेव के दर्शन हुए थे.
हारीत ऋषि और शिव के वरदान से ही बप्पा आगे चल कर मेवाड़ रियासत के महाराजा बन पाए.
मेवाड़ के महाराणा कैसे बने बप्पा रावल
कहते हैं, हारीत ऋषि ने बप्पा को एक खजाने के बारे में बताया था. उस खजाने को हासिल कर बप्पा ने एक विशाल सेना का गठन किया. अपनी सूझबूझ और साहस के दम पर चित्तौड़गढ़ को मोरियो को हरा कर जीत लिया. इसी घटना के बाद मेवाड़ राजवंश की नींव रक्खी गई.
बप्पा ने सिसोदिया राजवंश की स्थापना की. इसी राजवंश में आगे चल कर राणा कुम्भा, महाराणा सांगा और महाराणा प्रताप जैसे वीर और कालजयी योद्धा पैदा हुए.
बप्पा रावल का सैन्य ठिकाना आगे चल कर बना रावलपिंडी
बप्पा ने कराची शहर तक जाकर अरब आक्रमणकारियों को खदेड़ा था. उस दौरान हमेशा यह ख़तरा बना रहता था कि अरब की तरफ़ से मुस्लिम सेनाएं हमला न कर दें, इसलिए सिंधु क्षेत्र में बप्पा ने एक स्थायी सैन्य ठिकाना स्थापित कर दिया था जो आगे चल कर ‘रावलपिंडी’ के नाम से जाना जाने लगा.
बप्पा रावल के विजय अभियान
बप्पा ने मुहम्मद कासिम को हरा कर सिंधु प्रान्त को अपने कब्जे में लिया था. मारवाड़, मालवा, गुजरात, मेवाड़ के पूरे भूभाग पर बप्पा का अधिकार था. विदेशी आक्रमणकारियों से भी बप्पा ने हमेशा हिंदुस्तान की रक्षा की.
कालभोज के नाम से मशहूर हुए बप्पा रावल ने उदयपुर में एकलिंग जी के मंदिर का निर्माण करवाया था.
उनके यश का इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि हरियाणा के पानीपत के एक क्षेत्र का नाम आज भी उनके नाम से प्रभावित होकर बापौली रखा हुआ है.
अपने जीवित रहते हुए बप्पा रावल ने हमेशा विदेशी आक्रमणकारियों से भारत की रक्षा की. उन्होंने मेवाड़ की स्थापना करके इतिहास को एक अमर राजवंश भी प्रदान किया. 39 वर्ष की आयु में बप्पा ने सन्यास धारण कर लिया था. बहुत ही कम समय में बप्पा इतने महान काम कर गए कि आज भी आने वाली पीढियां बप्पा के जीवन से ईश्वरीय भक्ति, मातृभूमि के प्रति प्रेम और वीरता के पाठ सीखती चली आ रही हैं.
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