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दुनिया से छुपाकर रखा हुआ था भारत ने इस मिसाइल को क्योंकि…

भारत ने हाल ही में 450 मिलोमीटर तक मार करने में सक्षम ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल का सफल परीक्षण किया है.

कहा जाता है कि भारत ने मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रेजिम का सदस्य बनने के मात्र 8 माह के अंदर ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल का सफल परीक्षण कर दिया.

जबकि कुछ जानकारों का दावा है कि भारत ने रूस के साथ मिलकर पहले ही इस मिसाइल को तैयार कर लिया था और इसके सफल परीक्षण भी कर लिए थे.

चूंकि भारत मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रेजिम यानी एमटीसीआर का सदस्य देश नहीं था इसलिए वह 290 किलोमीटर से ज्यादा दूरी की सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल का परीक्षण नहीं कर सकता था.

लेकिन भारत के लिए अपनी सुपरसोनिक क्रूज के विकास और उसकी घोषणा करना बहुत जरूरी था. ताकि चीन और पाकिस्तान पर बढ़त बनाई जा सके.

बता दें जून 2016 में एमटीसीआर में एंट्री के बाद भारत ने अब इस मिसाइल का परीक्षण किया है. जो देश एमटीसीआर के सदस्य नहीं है उनपर रोक है कि वे 290 किलोमीटर से ज्यादा दूरी की मिसाइल बनाएं.

भारत को एमटीसीआर का सदस्य बनने से राकने के लिए चीन ने पुरजोर कोशिश की. लेकिन वो सफल नहीं हो सका.

गौरतलब है कि ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल को लेकर चीन की घबराहट की सबसे बड़ी वजह इसका न्यूक्लियर वॉर हेड तकनीक से लैस होने के साथ अब यह 450 किलोमीटर दूरी तक के लक्ष्य को भेद सकती है.

चीनी रक्षा जानकारों का कहना है कि अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर इनकी तैनाती के बाद उनके तिब्बत और युन्नान प्रांत पर खतरा मंडराने लगा है.

वहीं दूसरी ओर रक्षा मंत्रालय की ओर से जो संकेत मिले हैं उसके अनुसार जल्द ही इस मिसाइल को भारतीय सेना में शामिल किया जाएगा.

बतातें चले कि मोदी सरकार द्वारा अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल की तैनाती पर चीन बौखलाया हुआ है, क्योंकि जहां भारतीय सेना के दो रेजिमेंट में ब्रह्मोस पूरी तरह से संचालनात्मक स्थिति में है वहीं ब्रह्मोस मिसाइल के वायु प्रक्षेपण और पनडुब्बी प्रक्षेपण संस्करण पर काम चल रहा है.

चाइनीज पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने अपने माउथ पीस ‘पीएलए डेली’ में यहां तक लिख दिया है कि इससे सीमा खतरे में पड़ जाएगी.

दरअसल, यह दुनिया की सबसे तेज क्रूज मिसाइल है. दुनिया का कोई भी मिसाइल तेज गति से आक्रमण के मामले में ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल की बराबरी नहीं कर सकती. यहां तक की अमेरिका की टॉम हॉक मिसाइल भी इस मामले में इससे बहुत पीछे है.

Vivek Tyagi

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