बोस्निया के मुस्लमानों के लिए उस दौर की हर याद आज भी रोंगटे खड़े कर देने वाली हैं।
इस लड़ाई को दुसरे विश्व युद्ध के बाद की सबसे जघन्य और दर्दनाक लड़ाई कहा जाता है। लोग इस युद्ध को नस्लीय नरसंहार भी कहते है, जिसमें करीब 8000 मुस्लिम आदमियों और बच्चों को मौत के घाट सुलाया गया था।
आज से करीब 22 साल पहले यानि साल 1995 में ‘रैट्को म्लाडिच’ नामक एक व्यक्ति ने युरोप के सार्बिया में मुस्लमानों का नरसंहार किया था। ‘रैट्को म्लाडिच’ एक आर्मी जनरल थे जिन्हें दुनिया ‘बोस्निया का कसाई’ और ‘बोस्निया का कसाब’ के नाम से बुलाती है। बोस्निया के इतिहास में दर्ज 1995 की लड़ाई के दौरान इन्होंने हैवानियत और बर्बर अभियान चलाया था। इतिहास के पन्नों में दर्ज बोस्निया के युद्ध की कहानी के मुताबिक 1992 में बोस्नियाई मुस्लमानों और क्रोएशियाई लोगों ने आजादी के लिए कराये गए जनमत संग्रह के पक्ष में वोट दिया था, जबकि सर्बिया के लोगों ने इसका बहिष्कार किया। इस विरोध के बाद पूरे यूरोप के तीनों समाजों में लड़ाई की आग भड़क गई और सब एक दूसरें पर जंगी वार प्रतिवार का खेल खेलने लगे।
इस लड़ाई में बोस्नियाई मुस्लमानों और क्रोएट्स लोग एक तरफ हो गए और बोस्निया सर्ब। इस लड़ाई को लेकर दर्ज आकड़ों के मुताबिक इसमें जहां एक ओर करीब 1 लाख लोगों ने अपनी जान गवाई, तो वहीं दूसरी ओर 22 लाख लोग बेघर भी हो गए थे। रिपोर्टस के मुताबिक इस नस्लीय नरसंहार के दौरान महिलाओं और बच्चियों को वहां से बचकर निकलने के लिए सुरक्षित रास्ता दे दिया गया था, लेकिन लड़को और आदमियों पर बेरहमी और बर्बरता दिखाते हुए उन्हें वहीं मौत के नींद सुला दिया गया।
हेग स्थित ‘यूनाइटेड नेशन ट्राइब्यूनल’ ने ‘रैक्को म्लाडिच’ पर लगाए 11 आरोपों में से 10 के लिए उन्हे कसूरवार ठहराते हुए उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। जिस वक्त उन्हें सजा सुनाई गई उस दौरान वह कोर्ट में मौजूद नहीं थे। क्योकि कोर्ट ने उन्हें कोर्ट परिसर में खड़े होकर चिलाने के लिए सजा सुनाते हुए कोर्ट से बाहर निकाल दिया था।
कई साल से लगातार पुलिस से भाग रहा था ‘बोस्निया का कसाई’
युरोप में स्थित सार्बिया की राजधानी कहे जाने वाले बेलग्रेड की उत्तरी दिशा में बसे अलसाता का लैज़ारेवो गांव एकाएक चुस्त और चौकना दिखाई देने लगा। वहां रहने वाले कई व्यक्तियों ने काले कपड़े और मुंह पर काला नकाब पहना हुआ था। साथ ही उन सभी ने मिलकर एक पीली ईंटों से बने घर को चारों तरफ से घेर रखा था। एकाएक वो घर के घरवाजों को धड़धड़ाते हुए अंदर घुस गए और गार्डन में टहलते हुए एक बुजुर्ग को गिरफ्तार कर लिया। यहां बेहद चौका देने वाली बात तो ये थी कि वो बुजुर्ग बिना किसी जोर जबरदस्ती के उन लोगों के साथ जाने के ले तैयार भी हो गया। ये था छह साल, पांच महीने और छब्बीस दिन से पुलिस की गिरफ़्त से भाग रहा ‘बोस्निया का कसाई’ यानि रैट्को म्लाडिच।
आखिर क्यो थी उसे मुस्लमानों से उतनी नफ़रत
कहते है बोस्निया का कसाई कहा जाने वाले रैट्को म्लाडिच को मुसल्मानों से नफरत थी और इसकी दो बड़ी वज़हे थी, जिसमें पहली वज़ह उनके बचपन से जुड़ी थी। साल 1945 में जब रैट्को म्लाडिच 2 साल के थे उस दौरान उनके पिता नाज़ी समर्थक फौज से लड़ते हुए मारे गए थे। इसके अलावा दूसरी वजह यह रही कि साल 1995 में उनकी 23 साल की बेटी अन्ना को बेलग्रेड में गोली मार दी गई। इन दोनों घटनाओं ने उनके दिमाग में बोस्निया के मुस्लिमानों के लिए नफरत पैदा कर दी थी।
साल 1995 में 8000 मुस्लमानों को मौत की नींद सुलाने के बाद भी वह कई सालों तक छुपते-छुपाते बचते रहे। लेकिन साल 2011 तक में वे सार्बिया में पकड़ लिए गए, जिसके बाद ‘यूनाइटेड नेशन ट्राइब्यूनल’ ने उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
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