हर फ़िल्म को पहले सेंसर बोर्ड की कसौटी से होकर गुजरना पड़ता है.
कभी अत्याधिक बोल्ड सीन, तो कभी अश्लील डॉयलॉग, तो कभी आपत्तीजनक या समाजिक सौहार्द को बिगाड़ने का हवाला देकर कई मूवीज को भारत में बैन किया गया.
कभी कभी ये फ़िल्में सेंसर बोर्ड की कसौटी पर खरी नहीं उतरती है ऐसे में इन पर बैन लगा दिया जाता है.
साथ ही पॉलीटिकल प्रेशर की वजह से भी ऐसा हुआ है.
1. कामसूत्र-
हालांकी वात्सायन की कामसूत्र भारत भूमि पर ही लिखी गई. इस पर जब फ़िल्म बनी तब इसे वैश्विक स्तर पर सराहा गया. साथ ही कई अवार्ड्स भी मिले. भारत में कभी भी न्यूडिटी को कभी भी हरी झंडी नहीं मिली है इसलिए मीरा नायर निर्देशित इस फ़िल्म पर भी बैन लगाया गया.
2. बैंडिट क्वीन-
ये फ़िल्म डकैत से पॉलीटिशियन बनीं फूलन देवी की आत्मकथा पर बनीं फ़िल्म थी. शेखर कपूर निर्देशित इस फ़िल्म को न्यूडिटी, अत्याधिक हिंसा, और अश्लील भाषा के प्रयोग की वजह से बैन किया गया. ये फ़िल्म कॉन्स फिल्म फेस्टीवल में प्रदर्शित की गई. बाद में जब ये भारत में रीलिज हुई तो नेशनल अवार्ड जीतने में कामयाब रही.
3. फायर-
दीपा मेहता ज्यादातर बोल्ड विषयों पर फिल्म बनाने के लिए जानी जाती है. जब उन्होंने दो महिला रिश्तेदारों जो कि अपने वैवाहिक जीवन से अंसतुष्ट होती है के बीच समलैंगिक संबंधो पर आधारित फ़िल्म फायर बनाई तो कई धार्मिक संगठनों ने इसका विरोध किया ऐसे में सेंसर बोर्ड ने इस पर बैन लगाना ही ठीक समझा.
4. ब्लैक फ्राईडे-
साल 1993 का शुक्रवार सचमुच काला साबित हुआ जब मुंबई में बम धमाके हुए थे. इसी थीम को आधार बनाकर फ़िल्म ब्लैक फ्राईडे बनाई गई. डायरेक्टर अनुराग कश्यप ने हुसैन जैदी की किताब “ब्लैक फ्राईडे द ट्रू स्टोरी ऑफ बॉम्बे ब्लॉस्ट” पर के के मेनन जैसे मंझे हुए कलाकारों को लेकर एक फ़िल्म बनाई. इस फ़िल्म पर बाम्बे हाई कोर्ट ने स्टे लगा दिया था. इसकी वजह 1993 के ब्लॉस्ट की सुनवाई का पूरा ना होना बताया गया. साथ आंशका जाहिर की गई कि फ़िल्म के कुछ संवाद सांप्रदायिक सौहार्द के हिसाब से ठीक नहीं है. हालांकी बरसो बाद जब ये फ़िल्म रिलीज हुई तो इसे काफी सराहना मिली.
5. परजानिया-
गुजरात दंगो के बैकड्राप पर बनीं इस फ़िल्म में सारिका ने मुख्य भूमिका निभाई थी. इस फ़िल्म को नेशनल अवार्ड भी मिला था. गुजरात के ईर्द गिर्द घुमती कहानी के बावजूद इस फ़िल्म पर गुजरात में ही बैन लगा दिया गया.
6. पिंक मिरर-
इस फ़िल्म को भी अवार्ड मिल चुका है. इसके बावजूद ये बैन का शिकार हुई. ये कहानी जेंडर चेंज करवा चुके और एक गे युवक की कहानी के ईर्द गिर्द घुमती है. इस फ़िल्म को सेंसर बोर्ड ने ऑफेंसिव और वल्गर कंटेट की वजह से बैन किया था.
7. वाटर-
ये साल 1940 के बनारस की बैकड्राप बनीं फिल्म थी. जिसमें बनारस के आश्रम में दिन काट रही विधवाओं की जिंदगी को चित्रित किया गया था. विधवाओं की दुर्दशा पर बनीं इस फ़िल्म को लेकर कई विरोध प्रदर्शन हुए. हालांकी बाद में सेंसर बोर्ड ने इसे यू सर्टीफिकेट के साथ रिलीज का निर्देश दिया.
8. फिराक-
ये फ़िल्म भी परजानियां की तरह गुजरात दंगो के ईर्द गिर्द घुमती थी. कहा गया कि ये फिल्म सत्यकथा पर आधारित थी. नंदिता दास के बेहतरीन अभिनय से सजी इस फ़िल्म को शुरुआत में दो संप्रादायों की भावनाओं को आहत करनी वाली बताकर आलोचना का शिकार भी होना पड़ा. आखिरकार इस फ़िल्म को बैन कर दिया गया. हालांकी बाद में ये फिल्म जब रिलीज हुई तो क्रिटिक्स की सराहना इसे मिली.
9. इन्शाअल्लाह–
ये फ़िल्म एक फुटबॉल डाक्यूमेंट्री थी ये फ़िल्म एक ऐसे एस्पायरिंग फुटबॉलर की कहानी थी जो कि विदेश यात्रा करना चाहता है लेकिन उसके पिता के आतंकवादी होने की बात को आधार बनाकर उसे ऐसा करने से रोका जाता है. कश्मीर में इंडियन आर्मी के पहलुओं के ईर्द गिर्द घुमने के वजह से इस फ़िल्म को संवेदनशील माना गया.
10.अनफ्रीडम–
लेस्बीयन के लवमेंकिंग सीन और एक धर्म विशेष के पहलू को छूती इस फ़िल्म को विवादास्पद माना गया.
11. सिन्स-
ये केरल के एक प्रिस्ट की कहानी है जो कि एक युवती की तरफ आकर्षित होकर उसके साथ संबंध बना लेता है. इस फ़िल्म का विरोध ये कहकर किया गया कि ये किसी धर्म विशेष की गलत छवि पेश कर रही है. इस फ़िल्म में दिखाए गए न्यूड सीन की भी कांट छांट की गई. ये फ़िल्म भी थियेटर्स का मुंह नहीं देख पाई.
फ़िल्मों पर बैन का इतिहास पुराना है. साल 1973 में बलराज सहानी के अभिनय से सजी फिल्म गरम हवा भारत पाक के विभाजन पर बनीं थी शुरु में माना गया कि ये फ़िल्म सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ सकती है.
लेकिन बाद ये फ़िल्म सरकारी अधिकारियों को दिखाई दी गई.
सेंसर बोर्ड ने इस फ़िल्म को कई दिनों तक रोक रखा था बाद में इसे रिलीज होने दिया गया और इस फ़िल्म ने व्यावसायिक सफलता हासिल की, साथ ही आलोचकों की सराहना भी मिली.
कुछ ऐसा ही सुचित्रा सेन अभिनीत आंधी के साथ भी हुआ जो कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के जीवन से प्रेरित बताई गई. इस फ़िल्म को राजनैतिक दलों के विरोध का समाना करना पड़ा और 20 हफ्तों तक ये फिल्म लटकी रही.
इंदिरा गांधी ने जब ये फिल्म देखी तो कुछ भी आपत्तीजनक नहीं पाया और इस फ़िल्म पर से बैन हट गया. इस तरह भारत में कभी सेंसर बोर्ड, तो कभी राजनैतिक दलों, तो कभी धार्मिक संगठनों के विरोध की वजह से फ़िल्में बैन होती आई है.
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