5. इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हज़ारों हैं, इन आँखों से वाबस्ता अफ़साने हज़ारों हैं. इक तुम ही नहीं तन्हा, उलफ़त में मेरी रुसवा, इस शहर में तुम जैसे दीवाने हज़ारों हैं.
6. ये आँखें बिना शब्दों के काफी कुछ बोलती हैं. अब समझने के लिए जरुरी नहीं है कि शब्दों का सहारा लिया जाये.