चाँद को उड़ाने की योजना – दुनिया के सर्वाधिक शक्तिशाली देश संयुक्त राज्य अमेरिका ने कभी चांद को भी न्यूक्लियर यानी परमाणु बम से उड़ाने की योजना बनाई थी। यह बात भले ही बड़ी अजीब सी लगे, लेकिन यह एक सच है।
बात सन 1958 की है, जब अमेरिका ने एक अजीब-ओ-गरीब प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया।
जी हाँ… A 119प्रोजेक्ट, जिसे “ए स्टडी ऑफ़ लूनर रिसर्च फ्लाइट्स” के नाम से भी जाना जाता है, अमेरिकन वायु सेना द्वारा 1958 में विकसित एक बहुत बड़ी गुप्त योजना थी।
चाँद को उड़ाने की योजना – इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य चंद्रमा पर परमाणु बम का विस्फोट करना था, उनका मानना था कि यह बिस्फोट ग्रहों, खगोल विज्ञान और ज्योतिषशास्त्र के कुछ रहस्यों का जवाब देने में मदद करेगा। इसके साथ ही लोगों द्वारा खुली आँखों से चन्द्रमा पर यह बिस्फोट देखा जा सकेगा। जो अपने आप में एक बहुत अनोखा, शानदार और रोमांचक नज़ारा होगा, इसके साथ अमेरिकी लोगों का अमेरिकन टेक्नोलॉजी, वायु सेना और उसकी शक्ति पर गर्व होगा तथा सेना के प्रति विश्वास बढ़ेगा।
इस योजना के तहत पहले चाँद पर हाइड्रोजन बम ले जाने की प्लैनिंग की गई थी , लेकिन अमेरिकन एयर फ़ोर्स द्वारा सुझाव दिया गया किया कि ‘हाइड्रोजन बम का वजन ज्यादा होगा, इसलिए कम वजन का कोई हल्का बम चुनना चाहिए ताकि मिसाइल पर आसानी से ले जाया जा सके’ इस सुझाव के बाद तय किया गया कि W 25 नाम का लाइट वेट बम जो 1.7 किलोटन यील्ड का है। (जबकि 1945 में हिरोशिमा में छोड़े गए लिटिल बॉय बम की स्ट्रेंथ 13-18 किलोटन यील्ड थी) आगे की योजना के अनुसारइस बम को एक राकेट द्वारा चन्द्रमा के छिपे हुए हिस्से की तरफ ले जायाजाएगा,और वहां इस बम को बिस्फोट कराया जाएगा। बिस्फोट के बाद धुल के कण से बादल बनेगा वह सूर्य की तेज़ रौशनी से जलेगा और इसलिए यह जलती हुई धुल का बादल प्रथ्वी पर चमकते हुए दिखाई देगा। जो अपने आप में बहुत सुन्दर और रोमांचक नज़ारा होगा।
लेकिन आखिरकार लोगों के नकारात्मक रवैये और दुसरे वैज्ञानिकों के अपने अनुमान वा सुझाव के चलते जनबरी 1959 को यह प्रोजेक्ट रद्द कर दिया गया। क्योंकि चाँद, पृथ्वी का प्राक्रतिक उपग्रह था और इसका अक्सर संवंध भी पृथ्वी से देखने को मिलता था। इसलिए लोगों को डर था कि कहीं चाँद पर बिस्फोट के फलस्वरूप पृथ्वी किसी खतरे में ना पड़ जाए।
इस अमेरिकी प्रोजेक्ट का पता चला जब सन 2000 में राष्ट्रीय एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा), के लियोनार्ड रेफेल के द्वारा खुलासा हुआ। इन्होने ही 1958 में इस परियोजना का नेतृत्व किया था।
इस प्रोजेक्ट के दस्तावेज लगभग 45 वर्षों तक गुप्त रहे, और साथ रेफेल के खुलासे के बावजूद, संयुक्त राज्य सरकार ने इस अध्ययन में अपनी भागीदारी को कभी आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी मतलब अमेरिकी सरकार इस प्रोजेक्ट को लेकर हमेशा से ही अपना पल्ला झाड़ते आई है।
ये थी चाँद को उड़ाने की योजना – लेकिन सच तो ये है कि अपनी शक्ति की धौंस जमाने के लिए अमेरिका ने हमेशा प्रक्रति को नज़रअंदाज़ किया है, फिर चाहे वो कार्बन उत्सर्जन की बात हो या जापान परमाणु बम के उपयोग की।