डॉ भीमराव अम्बेडकर जी को हम सभी भारत के संविधान निर्माता के रूप में जानते हैं.
आज जिन अधिकारों, कर्तव्य और स्वतंत्रता की बातें हम करते हैं वह अम्बेडकर जी की मेहनत और प्रयास का नतीजा है.
आज इनके नाम पर एक पूरे वर्ग का वोट बैंक बना हुआ है. यह वोट बैंक ही मुख्य कारण है कि देश की सभी राजनैतिक पार्टियाँ इस नाम को अपना बनाना चाहती हैं. सभी को इस बात का इल्म है कि अगर इनके साथ इस वर्ग की भावनायें जुड़ जाती हैं तो आगामी चुनावों में यह एक बड़ी जीत का कारण हो सकता है.
यही कारण है कि अभी बीजेपी और कांग्रेस अम्बेडकर जी को लेकर आमने सामने बने हुए हैं. इस मुद्दे पर और बात करने से पहले हम थोड़ा इतिहास की ओर चलते हैं-
जाति व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष में बिता दिया अम्बेडकर जी ने अपना जीवन
डॉ भीमराव अम्बेडकर बहुजन राजनीतिक नेता और भारत के संविधान के मुख्य शिल्पकार थे. आज भी यह दलित लोगों के मसीहा के रूप में जाने जाते हैं. इनका जन्म एक गरीब अस्पृश्य परिवार मे हुआ था. इनका जन्म एक अस्पृश्य परिवार में हुआ था, कहते हैं कि इनका जीवन नारकीय कष्टों में बिता.
छुआछूत के विरुद्ध संघर्ष
देश में दलितों को लेकर उन दिनों जो व्यवहार हो रहा था उस प्रथा के खिलाफ अम्बेडकर ने आवाज उठाई और सभी को समान अधिकारों की बात इन्होनें समाज में रखी थी.
दलित वोट बैंक
दलित शब्द हजारों वर्षों से ‘अस्पृश्य’ समझी जाने वाली तमाम जातियों के लिए सामूहिक रूप से प्रयुक्त होता है. यह जातियां हिंदू समाज व्यवस्था में सबसे नीचे वाले पायदान पर बैठी है. संवैधानिक भाषा में इन्हें ही अनुसूचित जाति कहा गया है. भारत की जनसंख्या में लगभग 18 प्रतिशत आबादी दलितों की है.
अम्बेडकर नाम पर बीजेपी और कांग्रेस की राजनीति क्यों ?
अब तक अम्बेडकर जयन्ती पर साधारण कार्यक्रमों का आयोजन ही देश में किया जाता था. गली और मोहल्ले में छोटे-छोटे आयोजन किये जाते थे. किन्तु पहले बीजेपी ने अम्बेडकर जयंती पटना में एक बड़ी रैली का आयोजन रखा और इसके तुरंत बाद कांगेस ने अम्बेडकर जयंती के दिन ने भी राजस्थान में बड़े आयोजन की घोषणा कर दी.
इन सबसे अलग चौकाने वाली बात यह है कि आरएसएस ने इस बार अम्बेडकर जयंती में दिलचस्पी ली है.
अब सत्य यह है कि जहाँ कांग्रेस, अपने बीमार स्वास्थ्य के लिए जीवनी खोज रही है तो ऐसे में अभी अगर वह दलित वोट को देख रही है तो यह स्वाभाविक भी है.
बीजेपी अभी अपनी स्थिति को और ज्यादा मजबूत करना चाहती है, सभी को लेकर चलने वाली पार्टी अगर बीजेपी को बनना है तो दलित वोट भी अपनी और बुलाने का यह एक अच्छा मौका है.
उत्तर प्रदेश और बिहार में चुनावी वातावरण
उत्तर प्रदेश और बिहार में दलित वर्ग की संख्या, चुनाव में किसी भी पार्टी की जीत में एक बड़ी भूमिका निभाती है. पूरे देश में जितने दलित नहीं हैं उतने अकेले उत्तर प्रदेश में ही हैं. अब बिहार की आबादी में भी यह वर्ग अच्छी संख्या में है.
बहुत ही जल्द बिहार में चुनाव होने हैं और फिर उत्तर प्रदेश का नंबर आना है. इन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जहाँ वजूद की लड़ाई लड़ने वाली है वहीँ भाजपा अपनी वापसी इन राज्यों में चाहती है ताकि दोनों राज्यों की जीत से राज्यसभा में भी पार्टी बहुमत की लड़ाई खत्म कर सके. ज्ञात हो कि अभी लोकसभा में तो भारतीय जनता पार्टी बहुमत में है परन्तु राज्यसभा में पार्टी अभी भी संख्या के आधार पर काफी नहीं है.
अब जहाँ समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पहले से ही इसी वोट बैंक का प्रयोग करते हुए सत्ता में आ चुके हैं तो इस बार बीजेपी और कांग्रेस इस वोट बैंक पर अपनी नज़र लगाये हुए हैं.
और यही वोट बैंक मुख्य कारण है जिस वजह से दोनों पार्टी अम्बेडकर को अपना बनाना चाहते हैं क्योंकि अम्बेडकर इस वर्ग के मसीहा हैं, भगवान हैं, अगर अम्बेडकर जी को एक बार अपना बनाकर साथ कर लिया जाता है तो यह वोट बैंक खुद से पार्टी के साथ हो जायेगा, जो उत्तर प्रदेश और बिहार चुनाव को निश्चत रूप से प्रभावित करने वाला है.
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