हमारे इस ब्रह्मांड में न जाने कितने राज छुपे हैं.
इसकी कल्पना कर पाना संभव ही नहीं बल्कि असंभव है.
विद्वानों ने बहुत खोज किए, रिसर्च किए लेकिन फिर भी अब तक इसकी गहराइयों तक पहुंच पाना संभव नहीं हो पाया. पृथ्वी के जन्म की बात करें तो इसकी कहानी अद्भुत है. भौगोलिक शास्त्रीय और अलग – अलग विद्वानों ने पृथ्वी के जन्म की कहानी को अपने – अपने तरीके से बताया है.
पुराणों में भी पृथ्वी के शुरुआत होने के बारे में काफी कुछ बताया गया है. लेकिन अब तक कोई भी एक निष्कर्ष तक नहीं पहुंच पाया है.
पृथ्वी के जन्म की कहानी –
फ्रांस के वैज्ञानिक बफ्तन का कथन –
फ्रांस के जाने-माने वैज्ञानिक बफ्तन की बात करें तो उन्होंने कहा कि एक बहुत बड़ा ज्योति पिंड एक दिन सूर्य से टकरा गया, जिसके परिणाम स्वरुप सूर्य के बड़े-बड़े टुकड़े उछलकर अलग हो गए और सूर्य के यही टुकड़े ठंडे हो कर ग्रह और उपग्रह बने.
और इन्हीं में से एक टुकड़ा पृथ्वी का भी था.
प्रसिद्ध विद्वान कान्ट और गणितज्ञ लाप्लास –
सन् 1755 में जर्मनी के प्रसिद्ध विद्वान कान्ट और सन् 1796 में प्रसिद्ध गणितज्ञ लाप्लास ने भी यही सिद्ध किया कि पृथ्वी का जन्म सूर्य में होने वाले भीषण विस्फोट के कारण हीं हुआ था.
जेरार्ड पीकूपर –
सन् 1951 में विश्व प्रसिद्ध विद्वान जेरार्ड पीकूपर ने एक नया सिद्धांत दीया.
उनके अनुसार संपूर्ण पिंड शून्य में फैला हुआ है. सभी तारों में धूल और गैस भरी हुई है. पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण की शक्ति के कारण घनत्व प्राप्त करके ये सारे पिंड अंतरिक्ष में चक्कर लगा रहे हैं. चक्कर काटने के कारण उनमें इतनी उष्मा एकत्रित हो गई है कि वह चमकते हुए तारों के रूप में दिखाई देते हैं. जेरार्ड पीकूपर का मानना है कि सूर्य भी इसी स्थिति में था और वो भी अंतरिक्ष में बड़ी तेजी से चक्कर लगा रहा था. उसके चारों और वाष्पीय धूल का एक घेरा पड़ा हुआ था और वो घेरा जब धीरे-धीरे घनत्व प्राप्त करने लगा, तो उसमें से अनेक समूह बाहर निकल कर उसके चारों ओर घूमने लगे, जो हमारे ग्रह और उपग्रह हैं. और इन्हीं में से एक हमारी पृथ्वी है, जो सूर्य से अलग होकर ठंडी हो गई और उसका यह स्वरूप हमें दिखाई देता है.
कहते हैं करोड़ों वर्षों तक पृथ्वी जल रही थी. जिसके कारण उसके भाप के बादल वायुमंडल में फैले थे. और यही वजह थी कि सूर्य की किरणें पृथ्वी तक पहुंच नहीं पा रही थी.
जब बारिश होती तो उन बादलों का पानी पृथ्वी तक आने की बजाय पुणः भाप बनकर वायु मंडल तक पहुंच जाता था. क्योंकि उस समय पृथ्वी का धरातल काफ़ी गर्म था. या यूं कह सकते हैं कि हमारी पृथ्वी जल रही थी. इसलिए पृथ्वी पर ज्वालामुखियों और भूकंपों का प्रभाव लगातार बना रहता था.
धीरे-धीरे समय के साथ बारिश होती रही. लगातार बारिश होती रही. और पृथ्वी ठंडी पड़ने लगी. जिसके बाद बारिश का पानी पृथ्वी पर जमा होने लगा. और उस पानी ने समुंद्र का रूप ले लिया. और इसी वजह से आज हमारी पृथ्वी के तीन चौथाई भाग में जल है. लगातार मूसलाधार बारिश के बाद पृथ्वी के चारों ओर से बादल छठी और तब जाकर सूर्य की किरणें पृथ्वी तक पहुंची. सूर्य की किरणों के पहुंचने के बाद हीं पृथ्वी पर जीवों के उत्पन्न होने की प्रक्रिया शुरु हुई.
इस तरह से पृथ्वी के जन्म की कहानी बड़ी अदभुत है !
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