विदेश

द. अफीक्रा के छात्रों ने इंसानी मूत्र से बनाई ईंटें !

इंसानी मूत्र – आप अपने मूत्र का क्या करते हैं? मतलब कि आप अपने मूत्र का किस तरह से यूज़ कर सकते हैं? कुछ नहीं करते हैं। कोई यूज़ नहीं होता है मूत्र का।

अगर आपको भी ऐसा लगता है कि इंसानी मूत्र का कोई यूज़ नहीं होता है तो आप गलत हैं। दक्षिण अफ्रीका के छात्रों ने इंसान के मूत्र का इस्तेमाल कर ईंटे बनाई हैं। अब वहां इंसान, इंसानी मूत्र से बने ईंटों के घर में रहेगा।

केपटाउन यूनिवर्सिटी के छात्रों ने किया यह कमाल

यह कमाल केपटाउन यूनिवर्सिटी (दक्षिण अफ्रीका) के छात्रों ने कर के दिखाया है। इस यूनिवर्सिटी के छात्रों ने दुनिया में पहली बार इंसानी मूत्र, रेत और जीवाणु के इस्तेमाल से ईंट बनाने का दावा किया है। हालांकि, इनसे अमोनिया की गंध आती है जो 48 घंटे बाद खत्म हो जाती है। वहीं, ये ईंटें सामान्य तापमान पर बन जाती हैं जबकि साधारण ईंटों को 1,400ºC तापमान पर तैयार किया जाता है।

पर्यावरण को सुरक्षा पहुंचाने के लिए किया ऐसा

दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन यूनिवर्सिटी के छात्रों ने पर्यावरण की सुरक्षा के लिए ऐसा किया है। पर्यावरण को फायदा पहुंचाने के लिए ये छात्र इंसानी मूत्र पर रिसर्च कर रहे थे जिसके बाद ही इन्होंने ये नया प्रयोग किया है। तीन छात्रों में से एक छात्र ने ईंट बनाने के लिए इंसानी मूत्र का इस्तेमाल किया।

इन छात्रों ने इंसानी पेशाब के साथ रेत और बैक्टीरिया को मिलाया जिससे वे सामान्य तापमान में भी मजबूत ईंट बना सकें। जिस तरह से ईंट बनाने के लिए रेत को गिट्टी को पानी से मिक्स किया जाता है। उसी तरह से इन छात्रों ने रेट और गिट्टियों को मिलाने के लिए इंसानी मूत्र और बैक्टीरिया के साथ मिक्स किया।

समुद्र में कोरल बनाने की प्रकिया से बनी यह ईंट

छात्रों ने इंसानी मूत्र से ईंट बनाने में उसी तरह की प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जिस तरह की प्रक्रिया से समुद्र में कोरल(मूंगा) बनते हैं। पटाउन यूनिवर्सिटी में इन छात्रों के निरीक्षक डायलन रैंडल ने बीबीसी को बताया कि ईंट बनाने की यह प्रक्रिया ठीक वैसी ही है जैसे समुद्र में कोरल (मूंगा) बनता है। सामान्य ईंटों को भट्ठियों में उच्च तापमान में पकाया जाता है, जिसकी वजह से काफी मात्रा में कार्बन-डाईऑक्साइड बनती है और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती है।

बायो ब्रिक्स है इनका नाम

इंसानी मूत्र से बनी इन ईंटों को छात्रों ने ‘बायो ब्रिक्स’ नाम दिया है। ये ईंटें बनाने में पर्यावर्ण प्रदूषण कम होता है और ये सामान्य ईंटों की तुलना में काफी मजबूत बनते हैं। दरअसल समान्य ईंटों को भट्टियों में ज्यादा गर्मी में पकाया जाता है, जिसकी वजह से पर्यावरण में अधिक मात्रा में कार्बन-डाईऑक्साइट बनती है और पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है।

किस तरह से इंसानी मूत्र से बनती हैं ईंटें?

अब सवाल यह है कि इंसानी मूत्र से किस तरह से ईंटें बनती हैँ? इंसानी मूत्र से ईंट बनाने की प्रक्रिया को माइक्रोबायल कार्बोनेट प्रीसिपिटेशन कहते हैँ। इस प्रक्रिया में शामिल बैक्टीरिया एक एंजाइम पैदा करता है, जो पेशाब में यूरिया को अलग करता है। यह कैल्शियम कार्बोनेट बनाता है जिसके कारण रेत ठोस सिलेटी ईंट में बदल जाती है।
यह सामान्य बनी ईंटों से काफी मजबूत होती हैं।

एक ईंट बनाने में कितने इंसानी मूत्र की होती है जरूरत?

एक ईंट बनाने में 25 से 30 लीटर पेशाब की जरूरत होती है। मतलब, एक ईंट बनाने के लिए आपको करीब 100 बार पेशाब करना होगा!
जो भी अगर ईंटें मजबूत बन रही हैं और पर्यावरण प्रदूषण रुक रहा है तो इसे एक अच्छी पहल माना जा सकता है।

Tripti Verma

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