फैशन में बाइक और स्कूटी चलाना और बात है, लेकिन किसी विशेष काम के लिए ऐसा करना सच में हैरान कर देता है.
लड़कों की तरह आजकल की लड़कियां भी शहरों में बुलेट और बाइक चलाकर टशन मारती हैं, लेकिन आज भी देश में कुछ ऐसे गाँव हैं जहाँ की बेटियां बाइक चलाती हैं तो दूसरों के लिए.
उन्हीं बेटियों में से एक है मध्य प्रदेश की मेघा.
मेघा भी चाहती तो और लड़कियों की तरह फैशन डिजाईन का कोर्स करके कुछ और कर सकती थी, लेकिन उसने अपनी राह चुनी बिलकुल अलग.
आज लड़कियां किसी मायने में लड़कों से पीछे नहीं है,हर क्षेत्र वों अपने साहस और मेहनत के बूते मर्दों के कंधों से कंधा मिलाकर काम रही हैं.आज हम आपको प्रदेश की एक ऐसी ही बहादुर बेटी से मिलाने जा रहे हैं जिसने वाकई में ये साबित कर दिखाया है कि महिलाओं के लिए आज कोई भी काम मुश्किल नहीं है.
मेघा ने ऐसा काम कर दिखाया जो सच में हर लड़की को गर्व से भर देता है.
मेघा उन लड़कियों में से हैं जो अपने लिए कम और दूसरों एक लिए ज्यादा जीती हैं, मेघा की कहानी आज सैकड़ों नहीं बल्कि लाखों लड़कियों को प्रेरित कर रही है.
गांव की उबड़-खाबड़ सड़कों और वीरान रास्तों पर फर्राटे से मोटर साइकिल दौड़ाती ये हैं स्वास्थ्य विभाग की जांबाज कार्यकर्ता मेघा साहू,जो देहात के दूरस्थ इलाकों की तंग गलियों में भी बाइक ऐसे दौड़ाती हैं मानो एंबुलेंस गुजर रही हो. मेघा कोई डॉक्टर नहीं हैं, लेकिन वो उससे कम भी नहीं है.
जंगलों के रस्ते गरीब बस्तियों में जाकर लोगों को दवाइयां देना बहुत मुश्किल भरा होता है. मेघा दुर्गम इलाकों में समय पर पहुंचकर दवाईयां भी बाटती हैं और बच्चों का टीकाकरण भी करती हैं.
दरअसल राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के अंतर्गत संपूर्ण और शत प्रतिशत टीकाकरण की जिम्मेदारी महिला स्वास्थ्यकर्मियों की होती है.
लेकिन पहाड़ी और दूर दराज के आदिवासी क्षेत्रों में सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में टीकाकरण समेत कई तरह की जरूरी स्वास्थ्य सेवाएं आज भी दूर की कौड़ी बनी हुई हैं.
ऐसे में इन इलाकों में आदिवासी बच्चों की सेहत का ख्याल रखने का बीड़ा उठाया है मेघा साहू नाम की इस बहादुर हेल्थ वर्कर ने. इस लड़की ने न सिर्फ खुद ये काम लिया बल्कि अपने जैसी बहुत सी लड़कियों को उत्साहित भी कर रही है.
इतना ही नहीं जिन इलाकों में लोग इसके लिए जागरूक नहीं हैं वहां घर घर जाकर मेघा अपना काम कर रही हैं और उन्हें जागरूक कर रही हैं.
बीहड़ जंगलों के बीच बसे ऐसे गाँव में अकेले जाकर मेघा टीकाकरण अभियान को सफल बना रही हैं. मेघा हर दिन 50 किलोमीटर दूर धूलकोट क्षेत्र के दवाटिया उपस्वास्थ्य केंद्र में पदस्थ हैं.
एक लड़की होने के बाद भी मेघा हर दिन अपने काम को बखूबी निभाती हैं.
आज भी भारत में एस एकै गाँव हैं जहाँ पर ठीक तरह से पहुँचने का रास्ता तक नहीं है ऐसे में उन जगहों पर लोगों को दवाइयां पहुँचाना सच में काबिले तारीफ है.
इस तरह के जॉब में ज्यादा पैसा भी नहीं होता, लेकिन मेघा जैसे लोग अपने काम करते रहते हैं. मेघा का यही कहना है कि भारत के कोने कोने में लोगों को दवाई मिल सके भले ही उसके लिए उन्हें कितनी भी मेहनत क्यों न करनी पड़े.
देश की हर बेटी अगर इसी तरह से समझदार और अपने काम के प्रति जागरूक हो जाए तो उसे आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता.