पिछले कुछ दिनों से हर जगह बिहार चुनाव छाया हुआ है.
अख़बारों से लेकर समाचार चैनल और फेसबुक से लेकर ट्विटर. हर जगह कयास, हर जगह आकलन,विश्लेष्ण और बहस कि इस बार कौन जीतेगा बिहार में विधानसभा चुनाव?
अब चुनाव अपने आखिरी दौर में है. अंतिम 57 सीटों के लिए 5 नवम्बर को चुनाव है और उसके बाद 8 नवम्बर से वोटों की गिनती शुरू होगी.
विकास के नाम पर शुरु हुआ चुनाव प्रचार अब मोदी बनाम नितीश हो गया है. आरोप प्रत्यारोप और घटिया बयानों और छींटाकशी का दौर शुरू हो गया है.
कोई सांप्रदायिक भावनाएं भड़का रहा है तो कोई जातिवाद पर अपनी रोटी सेकने में लगा है. सीधा स मतलब है साम दाम दंड भेद किसी भी तरह सत्ता को हासिल करना.
सत्ता का लालच ही ऐसी चीज़ होती है कि इंसान का ईमान धरम कहा जाती है. अब देखिये ना जिस लालू के राज को जंगल राज बोल बोल कर नितीश कुमार ने बिहार की गद्दी हासिल की थी ,वही नितीश कुमार आज बीजेपी से गठबंधन टूटने के बाद लालू की गोद में जाकर बैठे है.
वहीँ दूसरी ओर बीजेपी भी जीतने के लिए पासवान से लेकर मांजी तक सबका इस्तेमाल कर रही है.
वैसे बहुत से लोग बीजेपी को सिर्फ इसलिए बिहार चुनाव हारता देखना चाहते है कि वो लोकसभा चुनाव में मिले घाव पर थोडा मलहम लगा सके. उन्हें ना बिहार से मतलब ना बिहार के विकास से. उनको मतलब है तो बस जहर उगलने से. तभी तो उन्हें लालू के काल किये काले कारनामे नहीं दीखते जिनकी बदौलत बिहार आज भी सबसे पिछड़े राज्यों में से एक है, उन लोगों को हर बात में नरेंद्र मोदी का ही हाथ दिखता है.
उनकी हालत ये है कि कल अगर सुबह उनका पेट साफ़ ना हो तो भी उसका दोष मोदी को दे देंगे.
वैसे बीजेपी की तरफ से भी मामला कुछ ठीक नहीं है. अमित शाह और कुछ अन्य नेता समय समय पर विवादित बयान देते है और सोशल मीडिया के स्वयंभू सर्वज्ञानी बुद्धिजीवी फिर हफ़्तों तक उस बयान की जुगाली करते है.
दिल चुनाव के समय भी सोशल मीडिया में ऐसा ही माहौल तैयार किया गया था और उससे बीजेपी विरोधियों को ऐसी सफलता मिली जिसकी उनको उम्मीद भी नहीं थी.
लेकिन एक बात है जो सोचने वाली है वो ये कि सरकार बनने के बाद दिल्ली को छोड़ हर राज्य के विधानसभा चुनावों में बीजेपी गठबंधन की जीत हुयी है.
दिल की आबादी शहरी ज्यादा है और उसे सोशल मीडिया के द्वारा बरगलाना आसान होता है लेकिन बिहार में ऐसा नहीं है.
बिहार चुनाव वही जीतेगा जो ज़मीन पर रहकर लोगों तक अपनी बात पहुंचाएगा.
अभी तक के चुनाव आकलन से तो स्थिति ठीक ठीक नहीं दिखाई देती. दोनों ही पक्षों के लोग अपनी अपनी पार्टी को जीता रहे है.
आखिरी दौर के बाद स्थिति थोड़ी साफ़ होगी और 8 नवम्बर को पता चल जायेगा कि बिहार में मोदी का जादू चला है या नितीश और लालू के महागठबंधन का.
तब तक के लिए हम सब बस कयास ही लगा सकते है क्योंकि जनता किसके हक़ में फैसला देती है ये तो आज तक कोई नहीं बता पाया है.