भीम आर्मी की ताक़त – मुजफ्फरनगर में दंगा हुआ मायावती नहीं गई. आजमगढ़ में दंगा हुआ वहां भी मायावती नहीं गई. आखिर ऐसा क्या हुआ जो मायावती 5 साल तक कहीं नहीं गई अचानक से उसको भागकर सहारनपुर जाना पड़ा.
इसके पीछे कोई ओर वजह नहीं बल्कि भीम आर्मी की ताक़त थी.
सहारनपुर जाना मायावती की सियासी मजबूरी थी. अगर मायावती वहां नहीं जाती तो बसपा के हाथ से दलित मतदाता वर्ग के खिसकने का डर था. दरअसल, सहारनपुर में दलितों और राजपूतों के बीच संघर्ष में दोनों पक्षों के न केवल लोग मारे गए बल्कि कई घरों को आग भी लगा दिया गया.
इसके बाद वहां के स्थानीय युवक चंद्रशेखर आजाद जिसने भीम आर्मी के नाम से एक कथित दलित सेना बना रखी है ने, शोसल नेटवर्किंग साइट के जरिए इसके विरोध में लोगों को लामबंद करना शुरू कर दिया.
देखते देखते ही भीम आर्मी की साइट पर एकाएक लोगों की भारी तादाद जुटने लगी. दलितों के नाम पर रातोंरात खड़े हुए नए संगठन ने सभी की ओर अपना ध्यान खींचा. इससे मायावती के भी कान खड़े हो गए. अभी तक ये बसपा के लिए कोई खतरा नहीं था.
लेकिन उस वक्त मायावती के पैरों तले की जमीन खिसक गई जब भीम आर्मी ने दिल्ली के जंतर मंतर पर एक बड़ी रैली की और भीम आर्मी की ताक़त दिखा दी. इस रैली में काफी बड़ी तादाद में लोग आए. रैली की भीड़ और आक्रोश देखकर मायावती को लगा कि यदि इस वक्त भी वो बाहर नहीं निकली तो फिर उनके जातिगत जनाधार के भी फिसलने का डर है.
वहीं दलितों के नाम मायावती और बसपा के अलावा उत्तर प्रदेश में कोई दूसरी ताकत उभरे ये मायावती के लिए एक प्रकार से चुनौती है. यही कारण था कि यूपी के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद जो मायावती चुनावों को छोड़कर कभी जनता के बीच नहीं गई वो भागकर सहारनपुर पीड़ित दलितों के बीच जा पहुंची.
बता दें कि इस बार विधान सभा चुनावों में जिस प्रकार करीब 86 सुरक्षित सीटों में 76 पर भाजपा ने जीत हासिल की है उसने मायावती के लिए खतरे की घंटी बजा दी है.
रही सही कसर भीम आर्मी की ताक़त ने पूरी कर दी. मायावती को लगने लगा कि इस प्रकार यदि वे निष्क्रिय बनी रही थी तो दलितों के बीच से छोटे छोटे राजनीति दल उभर सकते हैं.
यदि ऐसा हुआ तो पहले से ही नाराज दलित बसपा को छोड़कर भीम आर्मी जैसे संगठनों की ओर जा सकता है. इसको राकने के लिए न केवल मायावती ने एक बार फिर दलित राजनीति के अपने पुराने एजेंडे को पकड़ा है. मायावती का सहारनपुर में दलितों से मिलने जाने के पीछे उनकी यही मजबूरी थी.
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