पूरी ज़िन्दगी हम अपनी कमियों को गिनने और उनकी वजह से हो रही दिक्कतों की लिस्ट बनाने में निकाल देते हैं!
फिर कुछ ऐसे लोग होते हैं जो अपनी कमियों को अपना दोस्त बना लेते है और ऐसा कुछ कर जाते हैं जो आने वाली नस्लों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन जाएँ!
ऐसे ही एक व्यक्ति हैं महाबलेश्वर के भावेश भाटिया! इनके जीवन की कहानी आपको कुछ कर दिखाने पर मजबूर ना कर दे तो कहियेगा!
यह जब पैदा हुए तो आंशिक रूप से अंधे थे! जब स्कूल के बच्चे इनका मज़ाक उड़ाते तो इनकी माँ कहतीं कि वो तुमसे दोस्ती करना चाहते हैं इसलिए मज़ाक उड़ा रहे हैं| बस यही बात पकड़ ली भावेश ने और फिर सब बच्चों को अपना दोस्त बना लिया! चूंकि स्कूल में ठीक से पढ़ाई नहीं हो पाती थी और नेत्रहीन पाठशाला में जाने लायक पैसे नहीं थे, इनकी माँ ने ही इन्हें पढ़ाया| पर जानते हैं, इनकी माँ को कैंसर था और उस हालात में भी वो अपने बेटे को जीवन का सच्चा ज्ञान देने से नहीं चूकीं!
किसी तरह पोस्ट-ग्रेजुएशन तक भावेश ने पढ़ाई की लेकिन किस्मत ने इनपर फिर एक भारी मार की जब एक लगी-लगायी होटल की नौकरी तब छूट गयी जब यह पूरी तरह से अंधे हो गए और उसी दौरान उनकी माँ की भी मृत्यु हो गयी! तीन-तीन आघात एक साथ लगने पर किसी का भी ज़िन्दगी से भरोसा उठ सकता है लेकिन भावेश ने हार नहीं मानी!
बचपन से उन्हें पतंगें, मिट्टी के खिलौने बनाने का शौक़ था और उसी शौक़ के चलते उन्होंने मोमबत्तियाँ बनाने का फ़ैसला किया!
मुंबई में नेशनल एसोसिएशन ऑफ़ ब्लाइंड्स से इन्होने मोमबत्ती बनाने का काम सीखा और फिर महाबलेश्वर में ठेला लगा के मोमबत्तियाँ बेचने का काम शुरू किया! रात को बनाते और दिन में बेचते|
कहते हैं ना अच्छे लोगों के साथ अच्छा ही होता है, इनके साथ भी ऐसा ही हुआ| जीवन में एक ख़ूबसूरत मोड़ तब आया जब इनकी पत्नी नीता ने इनका हाथ थामा | इनके अच्छे स्वाभाव और मेहनती जीवन को देख नीता ने घरवालों की मर्ज़ी के बिना इनसे शादी की और इनकी सच्ची जीवन-संगिनी बन गयीं!
कुछ भी आसान नहीं हुआ लेकिन मुश्किलों से लड़ने की ताक़त दुगुनी हो गयी! और भी ठोकरें खायीं लेकिन फिर एक दिन सतारा बैंक ने इन्हें 15000 रुपये का लोन दे दिया अपने व्यापर को आगे बढ़ाने के लिए!
फिर क्या था, इसके बाद इन्होंने पीछे मुड़ के नहीं देखा! जल्दी ही एक टू वीलर ले लिया जिसे नीता चलातीं और दूर-दराज़ में जाकर भावेश की मोबत्तियाँ बेच के आतीं| इसके बाद आई एक वैन जिसे चलाना भी नीता ने सीख लिया जिस से ना सिर्फ़ व्यापर में उन्नति हुई बल्कि वो भावेश को दूसरे शहरों में भी ले जातीं ताकि वो वहाँ बिकने वाली महँगी मोमबत्तियों को अपनी उँगलियों से छू के समझ सकें और फिर वैसे ही बना भी सकें!
ये सब सुनने में आसान लगता है लेकिन हक़ीक़त में बहुत ही मुश्किल है, उनके लिए भी जिनकी आँखें बराबर काम करती हैं|
जिस व्यापार से भावेश एक समय केवल 25 रुपये दिन के बचाते थे, बढ़ते-बढ़ते अपने आप में एक इंडस्ट्री हो गया है! अब उनकी फैक्ट्री में 9000 तरह की मोमबत्तियाँ बनती हैं और बनाने वाले सभी 200 कारीगर अंधे हैं! उनके क्लाइंट्स की सूची में आते हैं देश के बड़े नाम जैसे रिलायंस इंडस्ट्रीज़, रैनबैक्सी, बिग बाज़ार वगैरह!
खुली रह गयी ना आपकी आँखें?
भावेश जो पैरालिम्पिक गेम्स में 109 मेडल्स जीत चुके हैं, रोज़ 8 किलोमीटर दौड़ते हैं अपने ऑफ़िस में बने जिम में और अगला सपना है एवेरेस्ट पर चढ़ने का!
सवाल ये नहीं है कि कैसे, पर कब?
इंसान के बस में सब कुछ है अगर वो चाहे तो और इसका सजीव उदहारण हैं भावेश भाटिया!
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