भानगढ़ का किला – आप लोगो ने प्राचीन किलो और महलों के बारे में बहुत सुना होगा लेकिन आज हम आपको जिस किले के बारे में बताने जा रहें है वह एक ऐसा किला है जो दिन में खँडहर होता है लेकिन जैसे जैसे रात होती जाती है किले के अंदर भूतों का मेला लगने लगता है.
हम जिस किले की बात कर रहे हैं वह कोई कहानी या मिथ्या नहीं बल्कि आज भी उस जगह रात होने के बाद जाना प्रतिबंधित किया गया है और तो और उस किले कि सुरक्षा और देखभाल के लिए जो सरकारी पुरातत्त्व विभाग का आफिस बनाया गया है. और वह भी उस किले से काफ़ी दूर बनाया गया है.
हम जिस किले कि बात कर रहे है वह किला राजस्थान के भानगढ़ का किला है.
भानगढ़ के किले को लोग भूतिया किला, Bhangarh Fort या “भूतो का भानगढ़” के नाम से भी जानते है.
इस किले की कहानी बड़ी ही रोचक है.
16 वीं शताब्दी में आमेर के राजा भगवंत दास ने भानगढ़ के किले को बनवाया था.
भगवंत दास मुग़ल शहंशाह अकबर के नवरत्नों में शामिल थे.
भानगढ़ के बसने के बाद लगभग 300 वर्षों तक यह आबाद रहा.
लेकिन कहते है कि भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती जिसकी उम्र सिर्फ 18 वर्ष ही थी बेहद खूबसूरती थी और राजकुमारी की खूबसूरती की चर्चा दूर दूर तक फैली हुई थी इसलिए देश के कोने कोने के राजकुमार उनसे विवाह करन चाहते थे.
राजकुमारी इतनी ज्यादा खूबसूरत थी कि जो भी राजकुमारी को एक नज़र देख लेता वो उस राजकुमारी का दीवाना हो जाता था.
एक बार एक तांत्रिक की नज़र उस राजकुमारी पर पड़ी और वह तांत्रिक भी राजकुमारी का दीवाना हो गया और राजकुमारी को हासिल करने के लिए उस तांत्रिक ने अपने काले जादू का प्रयोग करने का सोचा.
उसी समय एक बार राजकुमारी रत्नावती अपनी सखियों के साथ किले से बहार निकल कर बाजार गई और बाजार में एक इत्र की दुकान पर पहुंची. राजकुमारी इत्र खरीदने के लिए इत्रों को हाथों में लेकर उसकी खुशबू ले रही थी।
तांत्रिक ने राजकुमारी को हासिल करने के लिए उस दुकान के इत्र में एक काला जादू किया हुआ एक इत्र के बोतल रख दिया और वह तांत्रिक दुकान से कुछ ही दूरी पर खड़ा होकर राजकुमारी को बहुत ही गौर से देख रहा था. राजकुमारी ने जब उन इत्रों को सूंघते सूंघते तांत्रिक की रखी हुई बोतल को उठाया जिसमे राजकुमारी के वशीकरण के लिए काला जादू किया था उस इत्र की बोतल को उठाकर उसे वही पास के एक पत्थर पर पटक दिया क्योकि राजकुमारी को एक विश्वशनीय व्यक्ति ने इस राज के बारे में पहले से बता दिया था.
पत्थर पर पटकते ही वो बोतल टूट गई और सारा इत्र उस पत्थर पर बिखर गया. इसके बाद से ही वो पत्थर फिसलते हुए उस तांत्रिक सिंधु सेवड़ा के पीछे चल पड़ा और तांत्रिक को कुचल दिया जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई.
मरने से पहले उस तांत्रिक ने श्राप दिया कि इस किले में रहने वालें सभी लोग जल्दी ही मर जायेंगे, वो दोबारा जन्म नहीं ले सकेंगे, और उनकी आत्माएं इस किले में ही हमेशा भटकती रहेंगी।
उस तांत्रिक के मौत के कुछ दिनों बाद ही भानगढ़ और अजबगढ़ के बीच युद्ध हुआ जिसमें किले में रहने वाले सारे लोग मारे गये. यहां तक कि राजकुमारी रत्नावती भी उस शाप से नहीं बच सकी और उनकी भी मौत हो गयी.
एक ही किले में एक साथ इतने सारे लोगो की मौत की आवाज़ गूंज गई और कहा जाता है कि वह आवाज़ आज भी उस किले में सुनाई देती है.
किले के एक खँडहर से किसीके चलने की और घुंघरू बजने की आवाज़ आने की बात कही गई है.
भानगढ़ में मंगला देवी, केशव राय, गोपीनाथ और सोमेश्वर मंदिर बने हुए हैं जिनकी स्थिति पहले जैसी ही है लेकिन उस मंदिरों की मूर्तियाँ गायब हो चुकी है. सिर्फ सोमेश्वर मंदिर का शिवलिंग ही बचा हुआ है जिसकी पूजा उस तांत्रिक के वंशज कर रहे है .
तांत्रिक के वंशज का कहना है महल की सीढियों के पास भोमिया जी का स्थान है जो भूतों को महल के बहार नहीं आने देता. इसलिए सारे भूत महाल के अंदर ही रहते हैं. इसलिए महल के बहार कोई दिक्कत नहीं होती बस रात में महल के अंदर नहीं जाना चाहिए.
सूर्यास्ता के बाद इस इलाके में रूकने के लिए मनाही है.
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा खुदाई से इस बात के सबूत भी मिले हैं कि यह शहर एक प्राचीन ऐतिहासिक स्थल है.
फिलहाल इस किले की देख रेख भारत सरकार द्वारा की जाती है। किले के चारों तरफ आर्कियोंलाजिकल सर्वे आफ इंडिया (एएसआई) की टीम मौजूद रहती हैं.
पुरातत्त्व विभाग का आफिस भी भानगढ़ से दूर बवाया गया है.
अगर आप भानगढ़ का इतिहास सुनना चाहते है तो सोमेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी से जाकर सुन सकते हैं इस मंदिर के पुजारी सिर्फ सोमवार को पूरा दिन मंदिर में रहते हैं बाकी दिन सुबह ही पूजा करने के बाद वापस चले जाते हैं.