हाल ही में इंग्लैंड में चैंपियंस ट्रॉफी का आयोजन किया जा रहा है।
इस टूर्नामेंट में भारतीय टीम ने अपने चिर-प्रतिद्वंदी पाकिस्तान को हराकर एक जबरदस्त शुरुआत कर दी है। क्रिकेट के इसी माहौल में हम आपके सामने भारतीय क्रिकेट और क्रिकेटरों से जुड़े कुछ किस्सों और कहानियों को लेकर आए है।
आज हम आपके सामने भारतीय क्रिकेट के एक ऐसे सितारे की कहानी लेकर आये है जिनकी पूरी जिंदगी किसी इंस्पिरेशन से कम नहीं है।
क्रिकेट की दुनिया में बी.एस. चंद्रशेखर यानि भागवत सुब्रमण्यम चंद्रशेखर एक ऐसा नाम है जो अपनी खास तरह की बालिंग के लिए जाने जाते है। 17 मई 1945 में मैसूर में पैदा हुए बी. एस. चंद्रशेखर को बचपन में हाथों में पोलियो हो गया था।
जब भागवत सुब्रमण्यम चंद्रशेखर पांच साल के थे तब उन्हें कब पोलियो हो गया पता ही नहीं चला। उस समय उनका हाथ बिलकुल भी काम नहीं करता था। 10 साल की उम्र तक उनके हाथों में कुछ सुधार हुआ लेकिन पूरी तरह वे कभी ठीक नहीं हो पाए। विकलांगता जहाँ लोगों की जिंदगी को निराशा से भर देती है वहीं दूसरी तरफ भागवत सुब्रमण्यम चंद्रशेखर ने अपनी इसी कमजोरी को अपनी ताकत बना लिया।
10 साल की उम्र में भागवत सुब्रमण्यम चंद्रशेखर गली में क्रिकेट खेला करते थे और उन्होंने खुद भी कभी नहीं सोचा होगा कि एक दिन वे भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा बनेंगे।
पोलियो का प्रभाव उनकी कलाई पर अधिक था लेकिन इसी प्रभाव की वजह से भागवत सुब्रमण्यम चंद्रशेखर की कलाई गेंद फेंकते वक्त ज्यादा ट्विस्ट हो जाती थी, जो उन्हें बाकी स्पिनरों से काफी अलग करती थी। उनके इसी नायाब तरीके के लिए उन्हें न सिर्फ साथी खिलाड़ियों की भरपूर तारीफ मिली बल्कि चंद्रशेखर ने भारत को क्रिकेट के मैदान में कई जीत भी दिलाई।
भागवत सुब्रमण्यम चंद्रशेखर 1964 से 1979 तक भारतीय क्रिकेट का हिस्सा रहे और उनके रहते भारतीय क्रिकेट ने कई ऊँचाइयों को छुआ। आज बी.एस. चंद्रशेखर का जीवन उन लोगों के एक मिशाल है जो अपनी कमियों को ही अपनी ताकत बना लेते है।
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