भागवत गीता – गीता का ज्ञान हर समय प्रासंगिक रहा है, आज के दौर में जब हर इंसान स्वार्थ और बुराई में जकड़ा जा रहा है, ऐस में गीता का ज्ञान शायद आज की पीढ़ी को कुछ सदबुद्धि दे सके.
मगर अब तो गीता भी धर्म के बंधन में बंधी हुई है, गीता हिंदुआ का धर्मग्रंध है तो इस पढ़ने और पढ़ाने का मतलब है हिंदुत्व को बढ़ावा देना. हाल ही में महाराष्ट्र के कॉलेजों में सरकार ने गीता बांटने का निर्णय लिया, लेकिन अब इस पर बवाल मच गया है.
महाराष्ट्र की देवेंद्र फडणवीस सरकार के मुंबई के कॉलेजो में गीता बांटन के फैसले को विपक्ष हिंदुत्व को बढ़ावा देने की रणनीति के तौर पर देख रहा है और इसका आरोप है कि शिक्षा संस्थाओं में ऐसा करने से धर्पनिरेपेक्षता खतरे में पड़ जाएगी, क्योंकि यहां किसी एक धर्म के छात्र नहीं होते.
आपको बता दें कि उच्च शिक्षा निदेशालय ने इस संबंध में सर्कुलर जारि किया है, जिसके अनुसार मुंबई में नैक (एनएएसी) की ए और ए प्लस श्रेणी के गैर सरकारी सहायता प्राप्त 100 कॉलेजों में छात्रों को श्रीमद्भागवत गीता बांटी जाएगी.
उच्च शिक्षा निदेशालय की ओर से जारी सर्कुलर में छात्रों में श्रीमद्भागवत गीता वितरण संबंधी आदेश में यह भी कहा गया है कि कॉलेज के प्रींसिपल इसकी रसीद भी विभाग को भेजें. सरकार के इस कदम पर विपक्ष का कहना है कि सिर्फ गीता ही क्यों बांटी जाए. देश धर्मनिरपेक्ष है इसलिए शैक्षणिक संस्थानों में धर्मनिरपेक्ष वातावरण होना चाहिए. विधानसभा में एनसीपी के नेता जयंत पाटिल ने शिक्षामंत्री विनोद तावड़े के धार्मिक ज्ञान पर ही सवाल उठा दिया है. पाटिल ने आरोप लगाय कि शिक्षामंत्री ने यह आदेश मीडिया में सुर्खियां पाने के लिए दिया है.
वहीं, शिक्षामंत्री विनोद तावड़े ने विपक्ष के हमलों का जवाब देते हुए पूछा कि क्या गीता में श्रीकृष्ण ने गलत उपदेश दिया है? इसलिए छात्रों में इसे न बांटा जाए. साथ ही, उन्होंने सफाई दी कि सरकार की ओर से ऐसा कोई आदेश नहीं दिया गया है और न ही श्रीमद्भागवत गीता के लिए पैसे दिए गए हैं, बल्कि भक्ति वेदांत बुक ट्रस्ट ने कॉलेजो में श्रीमद्भागवत गीता के 18 खंड को मुफ्त में बांटने का निर्णय लिया है.
श्रीमद्भागवत गीता – यानी ये फैसला सरकार का नहीं है, सरकार ने बस कॉलेजों की सूची ट्रस्ट को दी है. मगर विपक्ष को तो मौका चाहिए सरकार पर हमला करने का तो बस कोई मुद्दा मिला नहीं कि शुरू हो जाते है. वैसे अगर कॉलेजो में गीता बांटी भी जाती है तो इसमें गलत क्या है, ज़रूरी तो नहीं कि सब इसे पढ़े हीं. जिसकी मर्जी होगी वो पढ़ेगा.