धार्मिक कथाओं में सुदर्शन चक्र के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। जिसे हमेशा भगवान विष्णु के तर्जनी अंगुली में अचूक अस्त्र के रूप में विराजित देखा गया है।
सुदर्शन को अचूक कहने के पीछे तथ्य यह है कि चक्र अपने लक्ष्य पर पहुंच कर ही वापस भगवान विष्णु के पास जाता था। मगर विष्णु के पास यह सुदर्शन चक्र कैसे आया, यह स्पष्ट नहीं है। क्योंकि इससे संबंधित कई कथाएं प्रचलित हैं।
पुराणों में जैसे धार्मिक कथाओं के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं मिल पायीं है वैसे ही सुदर्शन चक्र के बारे में अस्पष्टता बनी है।
अपितु इनके अलावा चलिए पढ़ते हैं भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र की प्राप्ति की कथाएं।
सुदर्शन चक्र और भगवान विष्णु
सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु का अमोघ अस्त्र है। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि इस चक्र ने देवताओं की रक्षा तथा राक्षसों के संहार में अतुलनीय भूमिका का निर्वाह किया था। यह एक ऐसा अस्त्र था जिसे छोड़ने के बाद यह लक्ष्य का पीछा करता था और अंत करने के बाद वापस अपने स्थान पर लौट आ जाता था। चक्र को विष्णु की तर्जनी अंगुली में हमेशा देखा गया है। यह चक्र सर्वप्रथम विष्णु को ही प्राप्त हुआ था।
भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र प्राप्ति की कई कथाएं :
ऐसा माना जाता है कि जब दैत्यों के अत्याचार बहुत बढ़ गए, तब सभी देवता श्रीहरि विष्णु के पास आए। विष्णु ने कैलाश पर्वत जाकर भगवान शिव की विधिपूर्वक आराधना की। विष्णु, शिव के स्तुति के दौरान एक कमल अर्पण करते। तब भगवान शिव ने विष्णु की परीक्षा लेने के लिए उनके द्वारा लाए कमल में से एक कमल छिपा लिया। विष्णु, शिव की यह माया नहीं समक्ष सकें । तब विष्णु ने एक कमल की पूर्ति के लिए अपना एक नेत्र निकालकर शिव को अर्पित कर दिया था।
विष्णु की यह अगाध भक्ति देखकर भगवान शिव प्रसन्न हुए और विष्णु को अजेय अस्त्र सुदर्शन चक्र प्रदान किया। साथ ही शिव ने यह भी कहा- देवेश ! यह सुदर्शन नाम का श्रेष्ठ आयुध बारह अरों, छह नाभियों एवं दो युगों से युक्त, तीव्र गतिशील और समस्त आयुधों का नाश करने वाला है। सज्जनों की रक्षा करने के लिए इसके अरों में देवता, राशियां, ऋतुएं, अग्नि, सोम, मित्र, वरुण, शचीपति इन्द्र, विश्वेदेव, प्रजापति, हनुमान, धन्वन्तरि, तप तथा चैत्र से लेकर फाल्गुन तक के बारह महिने प्रतिष्ठित हैं। आप इसे लेकर निर्भीक होकर शत्रुओं का संहार करें। तो ऐसे विष्णु ने दैत्यों का संहार किया।
सुदर्शन चक्र का निर्माण भगवान शिव ने किया था। जो बाद में विष्णु को सौंप दिया गया। जिसे विष्णु ने देवी पार्वती को प्रदान कर दिया था। सुदर्शन चक्र के संबंध में यह मान्यता है कि भगवान विष्णु के श्री कृष्ण अवतार के पास यह चक्र परशुराम से प्राप्त हुआ था।
सुदर्शन चक्र के अलावा अन्य चक्रों के नाम :
पुराणों में चक्र देवी-देवताओं को ही प्राप्त हुए थे। उन सभी के अलग-अलग नाम थे। शिव के चक्र का नाम भवरेन्दु, विष्णु के चक्र का नाम कांता चक्र और देवी का चक्रम मृत्यु मंजरी के नाम से जाना जाता था।
इस तरह भगवान विष्णु को असुरों के संहार करने हेतु भगवान शिव से सुदर्शन चक्र की प्राप्ति हुई थी। जो बाद में विष्णु के श्री कृष्ण अवतार के पास देखा गया था ।
इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) दुनिया में सबसे लोकप्रिय टी20 क्रिकेट लीग में से एक है,…
दुनिया मे सबसे ताकतवर चीज है हमारी सोच ! हम अपनी लाइफ में जैसा सोचते…
सूर्य ग्रहण 2020- सूर्य ग्रहण कब है, सूर्य ग्रहण कब लगेगा, आज सूर्य ग्रहण कितने…
कोरोना महामारी के कारण देश के देश बर्बाद हो रही हैं, इंडस्ट्रीज ठप पड़ी हुई…
दुनियाभर के 200 देश आज कोरोना संकट से जूंझ रहे हैं, इस बिमारी का असर…
वैसे तो गांधी परिवार पूरे विश्व मे प्रसिद्ध है और उस परिवार के हर सदस्य…