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इतिहास बताता है भगत सिंह की फांसी माफ़ हो गई थी ! फिर क्यों शहीद हो गये वो?

Bhagat Singh Execution Was Pardoned

इस सत्य को बहुत कम लोग जानते हैं कि भगत सिंह की फांसी को सरकार ने माफ़ कर दिया था.

लेकिन तब एक बड़ी चाल चली गयी और निश्चित तारीख से पहले ही भगत सिंह को फांसी दे दी गयी थी.

मार्च के महीने में हम शहीदी दिवस के रूप में भगत सिंह को याद तो करते हैं लेकिन यह भूल जाते हैं कि आज भी उनके वह गुनेहगार किसी ना किसी रूप में जिन्दा हैं जो भगत सिंह को बचा सकते थे.

फांसी से पहले पढ़ते हैं भगत सिंह का लिखा एक ख़त

सोलह साल के भगत सिंह ने लिखा था,

पूज्य पिता जी,

नमस्ते!

मेरी ज़िंदगी भारत की आज़ादी के महान संकल्प के लिए दान कर दी गई है. इसलिए मेरी ज़िंदगी में आराम और सांसारिक सुखों का कोई आकर्षण नहीं है. आपको याद होगा कि जब मैं बहुत छोटा था, तो बापू जी (दादाजी) ने मेरे जनेऊ संस्कार के समय ऐलान किया था कि मुझे वतन की सेवा के लिए वक़्फ़ (दान) कर दिया गया है. लिहाज़ा मैं उस समय की उनकी प्रतिज्ञा पूरी कर रहा हूँ. उम्मीद है आप मुझे माफ़ कर देंगे

आपका ताबेदार

भगतसिंह

एक सोलह साल का बच्चा अपने पिता से यह सब बातें कहता है.

वहीँ दूसरी तरफ अंग्रेज जो इस मुल्क से थे ही नहीं उन लोगों को ना जाने किसने यह हक़ दिया था कि वह इन बहादुर क्रांतिकारियों को फांसी दे देता है. लेकिन इतिहास का एक पन्ना यह भी कहता है कि भगत सिंह को वायसराय ने फांसी से माफ़ी दे दी थी.

वायसराय ने जब माफ़ कर दी थी फांसी

भगत सिंह के मित्र जितेन्द्र नाथ सान्याल ने अपनी किताब में इस बात का खुलासा किया था. सान्याल भगत सिंह के साथ लाहौर की एक घटना के सह आरोपी थे. अदालत ने उस मामले में उनको बरी कर दिया था. इसके बाद उन्होंने भगतसिंह पर एक पुस्तक लिखी जो प्रकाशन से पहले ही जब्त कर ली गई. इसी पुस्तक में इस बात का खुलासा किया गया था कि वायसराय लार्ड इर्विन ने भगत सिंह को फांसी की सजा को काला पानी में बदल दिया था, वायसराय ने इसके आदेश भी जारी कर दिए थे.

लेकिन तभी कुछ देशी लालची नेताओं की वजह से यह पत्र देरी से जेल पहुंचे इस बात के इंतजाम कर दिए गये थे. और बाद में जब तक यह पत्र सही हाथों में पहुँचता है तब तक भगत सिंह को फांसी दे दी गयी थी.

आज इस बात की जांच कोई नहीं कर रहा है कि आखिर वह लोग कौन थे जो भगत सिंह को जिन्दा नहीं देखना चाहते थे.

ऐसा लगता है कि देश के असली दुश्मन आज भी जिंदा है और शहीदों को बस ख़ास तारीखों पर याद किया जा रहा है.

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