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‘गायत्री मंत्र’ सही तरीके से जपा तो खत्म हो जायेंगे सभी कष्ट

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

अर्थात् ‘सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परमात्मा के प्रसिद्ध पवणीय तेज़ का (हम) ध्यान करते हैं,  वे परमात्मा हमारी बुद्धि को (सत् की ओर) प्रेरित करें. ( अर्थः- उस प्राण स्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंतःकरण में धारण करें. वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे.)

गायत्री मंत्र को हमारे शास्त्रों और वेदों में  सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वोत्तम मंत्र बताया गया है.

संसार का ऐसा भी दुःख या कष्ट नहीं है जो गायत्री मंत्र खत्म नहीं कर सकता है. यह मंत्र जितना आसान और सरल है उतना ही शक्तिशाली भी है. इस साधना में कोई भूल रहने पर भी किसी का अनिष्ट नहीं होता, इससे सरल, श्रम साध्य और शीघ्र फलदायिनी साधना दूसरी नहीं है.

अथर्ववेद में गायत्री को आयु, विद्या, संतान, कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाला बताया गया है. विश्वामित्र जी एक बात इस मंत्र कि महीमा बताते हुए लिखते हैं “गायत्री के समान चारों वेदों में कोई मंत्र नहीं है। संपूर्ण वेद, यज्ञ, दान, तप गायत्री की एक कला के समान भी नहीं हैं.”

तो यह तो हुई गायत्री मंत्र के महत्त्व की बात अब अगर बात करें गायत्री मंत्र के जप तरीके की तो ध्यान रखें कि इसके जप विधि का विशेष महत्त्व है. सही तरह से जप गया मंत्र सभी प्रकार के दुखों से निजात दिला सकता है.

विधि:-
सुबह ब्रहम मुहूर्त में अर्थात 2 से 4 बजे के बीच अगर मंत्र ध्यान किया जाये तो यह सर्वोतम है.

लेकिन अगर ऐसा नहीं हो सकता है तो  स्नान आदि से निर्वत्त होकर प्रात:काल पूर्व की ओर,  सायंकाल पश्चिम की ओर मुंह करके, साफ़ आसन पर बैठकर जप करना चाहिए. प्रारंभ  में गायत्री के चित्र का पूजन अभिवादन या ध्यान करना चाहिए.  जब जप किया जाये तो मुंह से आवाज नहीं आनी चाहिए. कोई और जप ना सुने इससे ध्यान रखा जाये. तर्जनी उंगली से माला का स्पर्श करना चाहिए। एक माला पूरी होने के बाद उसे उलट देना चाहिए। कम से कम 108 मंत्र नित्य जपने चाहिए। रविवार के दिन उपवास या हवन हो सके तो उत्तम है.

तो गायत्री मंत्र की महिमा को सही से बता पाना मुश्किल है.

इस मंत्र की महिमा को सिर्फ महसूस किया जा सकता है. एक माह तक अगर विश्वास के साथ मंत्र जप किया जाये तो बड़े से बड़े कार्य पूर्ण होते देखे गये हैं.

Chandra Kant S

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Chandra Kant S

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