सही तरह से समस्याओं को समझनेवाले और उन पर विचार-विमर्ष करके उन पर अमल करने वाले को ही इंसान कहते हैं. पर ऐसा लगता है यह इंसान आजकल अपने इस गुण को करीब-करीब भुला चुका है.
सुबह की करारी चाय, दोपहर की पेट गुडगुडा देनी वाली भूख को मिटाता मध्याहन-भोजन और रात की आरामदेह नींद, यह सब पाने की होड़ में इंसान काफी कुछ ऐसी ज़रूरतमंद चीज़ें भूल चुका है जो उसकी खातिर और समाज की खातिर बहुत ही लाभदायक हैं.
एक खूबसूरत और सुडौल शरीर वाली लड़की की चाल देखकर एक गुदगुदी मन में होती है. हमारे कुछ मित्र हैं जो इस अनैतिक लेकिन आदतन गुदगुदी को काबू नहीं कर पाते और अंत में कुछ ना कुछ अभद्र कर बैठते हैं. ऐसा होना तो नहीं चाहिए लेकिन क्या करें, आदत जो ठहरी! ऐसे भी कुछ लोग होते हैं जो टकटकी बांधे हर राह चलती औरत को उल्लू की तरह घूरते रहते हैं.
अच्छा! उल्लुओं की बातें तो हो गईं भगवान के बारे में कुछ कहा जाए. भगवान से भी इंसान के लेन-देन वाले रिश्ते हैं. इसे एक तरह की वास्तु-विनिमय (barter system) प्रणाली का नाम दिया जा सकता है. भगवान कहते हैं कि “तुम मुझे नारियल दो, मैं तुमको नौकरी दूंगा”. भगवान को नारियल से इतना लगाव क्यों है इसका पता शायद कोई लगा नहीं पाएगा. कितनी अच्छी बात है कि भगवान सामान्यतः नारियल ही मांगते हैं. वरना रोज़ कौन बकरे की या मुर्गी की बलि देता फिरेगा?
हमारा समाज एक अचार की तरह है. मिश्रित अचार. जिस तरह मिश्रित अचार को जुबान पर रखते ही स्वाद-कलिकाएं फूट पड़ती हैं ठीक उसी तरह इस भारतीय समाज की अलग-अलग संस्कृतियाँ जानने-पहचानने और देखने के बाद मन व्याकुल और आँखें सहसा चौंधिया जाती हैं. इसके अनेक उदाहरण शरद जोशी और आर.के.नारायण ने बहुत ही अच्छी तरह से अपने लेखों में दर्शाए हैं. लेकिन अफ़सोस यह अचार अब सड़ने लगा है, भ्रष्ट हो चला है. यह भ्रष्ट-अचार बन गया है.
भारत के लोगों को शिकायतें करने की बहुत ही बुरी आदत है. हमेशा, शिकायत करने से पहले उसका हल ढूँढना अकलमंदी कहलाती है. पडोसी के बच्चे की गेंद किसी शरारती लड़के ने छीन ली और हुआ यह कि पडोसी के बच्चे ने उस शरारती लड़के के गाल पर एक ज़ोरदार तमाचा जड दिया. उसके बाद वह गेंद छीन ली जाने की शिकायत लेकर अपनी माँ के पास आया. नहीं! मैं इस तरह के हल ढूँढने का सुझाव नहीं दे रहा हूँ. लेकिन कोई ऐसा हल जिससे दूध ना फटे और दही भी जम जाए. हाँ, लेकिन तमाचा जड़ना ज़रूरी है… इस अज्ञानी विचारधारा पर.
पप्पू का स्कूल में दाखिला, पैसे खिलाकर, कॉलेज में दाखिला, पैसे खिलाकर, नौकरी प्राप्ति, पैसे खिलाकर. इसे कहते हैं जादू. टेबल के नीचे से होने वाला जादू. यहाँ तक की शादियों में भी घूस खिलाई जाती है. ‘मैं तुम्हे पैसे दूंगा और बदले में तुम मेरी बेटी को नहीं सताओगे’. यह पैसे खिलाना और दहेज देना जब तक हम बंद नहीं करेंगे तब तक ऐसे कार्य होते रहेंगे. नेताओं के अनैतिकपन के आधार पर उनको सियासत से उतारकर सूली पर चढ़ाना के पहले एक बार खुद के गिरेबान में झाँक कर देखना ज़रूरी है. किसी को कल के बारे में पता नहीं चलेगा जब तक वह आज से अच्छी तरह वाकिफ नहीं होगा.
इस देश को आगे बढ़ने के लिए सारे समाज को साथ में और सही राह पर चलना ज़रूरी है वरना बदलाव की जगह ठहराव आ सकता है.
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