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नौकर को डांटा तो उसने जो किया उसे सोच कर ही पेट का खाना बाहर आने को होता है!

हमारी भागती-दौड़ती ज़िन्दगी में घर पर एक रसोईया जो घर के बाक़ी कामों में भी हमारी मदद कर सके, एक ज़रुरत बन गया है!

यूँ भी अब परिवार छोटे हैं और काम ज़्यादा| पहले संयुक्त परिवारों में काम संभालने वाले कई हाथ मिल जाते थे, लेकिन आज पैसे देकर वो मदद लेनी पड़ती है| लेकिन क्या ये हाथ बंटाने वाले हाथ सच में आपका भला चाहते हैं या आपकी पीठ में खंजर भोंकने को तैयार बैठे हैं?

मुंबई में पिछले दिनों एक ऐसा ही मामला सामने आया| नौकरों द्वारा अपने मालिक के घर चोरी और ख़ून की खबरें तो आये दिन आती हैं लेकिन जो इस नौकर ने किया, उसे पढ़ के आपका खाना हज़म नहीं होगा!

एक भरे-पूरे रईस परिवार के नौकर राजू (परिवर्तित नाम) को काम की बहुत ज़रुरत थी इस लिए उसने नौकर और रसोइये दोनों का काम संभालने की नौकरी पकड़ ली| काम में तो अच्छा था राजू लेकिन फिर भी आये दिन घर वालों की डाँट सुननी पड़ती, ताने खाने पड़ते और कभी-कभी उनके बुरे व्यवहार, गाली गलौज और मुक्का-लात का निशाना भी बनना पड़ता! था तो इंसान ही, एक दिन सब्र का बाँध टूट गया|

नौकरी छोड़ नहीं सकता था क्योंकि पैसों की सख्त ज़रुरत थी और ज़लालत भरी ज़िन्दगी जीना लम्हा दर लम्हा मुश्किल होता जा रहा था| इसीलिए राजू ने बदला लेने के लिए एक बहुत ही घिनौना काम करना शुरू किया!

उसने घर वालों को खाना देने से पहले उसमें थूकना शुरू कर दिया!!!!

जी हाँ, समझ सकता हूँ कि सिर्फ इतना पढ़ कर ही आपकी क्या हालत हो रही होगी लेकिन सोचिये अगर ऐसा आपके साथ होता तो?

राजू ऐसा इसलिए कर रहा था क्योंकि उसे ऐसा करने से बड़ी शान्ति मिलती थी, कि उस ने अपने साथ हुए दुर्व्यवहार का बदला ले लिया!

एक बार घर के एक सदस्य ने उसे ऐसा करते पकड़ लिया और इस तरह यह कहानी सामने आई| ज़ाहिर है काम से निकाल दिया गया उसे और सारे परिवार ने चैन की सांस ली|

ऐसा ही एक किस्सा अमरीका के न्यू यॉर्क में भी हुआ जहाँ एक रेस्टोरेंट के वेटर ने भी ऐसा ही कुछ किया था वहाँ के मेहमानों के साथ! वहाँ भी रेस्टोरेंट का मालिक उस वेटर के साथ बुरी तरह से पेश आता था और उसके खामियाज़ा भुगतते थे बेचारे ग्राहक!

ये हरकत निंदनीय है और इसकी सज़ा ज़रूर मिलनी चाहिए!

पर कोई ये भी तो सोचे की आख़िर एक अच्छे-ख़ासे आदमी को ऐसा घटिया क़दम उठाने के लिए मजबूर किसने किया होगा? क्या हालात रहे होंगे? क्यों हम अपने नौकरों को अपने कुत्तों से बदतर समझते हैं? क्यों उन्हें घर के कचरे की तरह रखा जाता है इस उम्मीद के साथ की वो हमारे घरों का कचरा साफ़ करेंगे?

माना की राजू ग़लत था, वो वेटर भी, लेकिन कहीं न कहीं हम भी ज़िम्मेदार हैं एक इंसान को उस हद तक ढकेलने के लिए कि उसे सही-गलत का भेद ही दिखना ख़त्म हो जाए!

एक बार फिर अपने घर में काम करने वाले नौकरों, रसोईयों, वॉचमन वगेरह की तरफ देखिएगा, आपकी-हमारी तरह इंसान ही हैं और इज़्ज़त की दो रोटी कमाना चाहते हैं, बिलकुल हमारी-आपकी तरह! उन्हें भी हक़ है!

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