हर्बर्ट स्पेंसर ने जीवन के दो आयामों की चर्चा की है- लंबाई और चौड़ाई. दीर्घजीवी होना जीवन की लंबाई है. यदि लंबा जीवन प्रमाद में बीत गया तो समझो व्यर्थ गया. ‘पद-संपदा’ के इर्द-गिर्द लंबे समय तक नाचते रहना जीवन की श्रेष्ठता नहीं है. संयम के साथ अपने भीतर सद्गुणों का विकास करते हुए जीना जीवन की चौड़ाई कहलाता है. ऐसा अल्पजीवी जीवन दीर्घजीवी जीवन से बेहतर है.
जीवन की सार्थकता इस बात में है कि भीतर सद्गुण जीते और दुर्गुण हारे. जब भीतर राम जीतते हैं और रावण हारता है तो जीवन की चौड़ाई बढ़ती है. फिर समझो कि आत्मत्याग ही आत्मपरिष्कार है, आत्मपरिष्कार ही आत्मविजय है और आत्मविजय ही विश्वविजय है. यानी जिसने अपने को जीत लिया उसने सारी दुनिया को जीत लिया. ये केवल आत्मबल से ही संभव है. ये आत्मबल योग-साधना से का उपहार है. अतः जीवन के हर पल को योग बनने दो.
इस संसार में हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम योगी की तरह जीवन को होश में जीएं. होश में जिया गया जीवन उत्सवी जीवन कहलाता है. वहीं, बेहोशी का लंबा जीवन एक तरह के सिर्फ बोझ की तरह ही होता है. एक क्षण भी योग से विरत होना मानवता की तौहीन समझी जाती है. ये शरीर तो मात्र एक कच्चे घड़े की तरह होता है. इसे ताप से तपाना होता है फिर तभी वो अनंत चेतना को धारण करने में समर्थ होगा.
ध्यान रहे कि चेतना ही शरीर में दिव्यता भरती है. इसी तरह दिव्य शरीर ही सत्कर्मों के सहारे लोककल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है. यही हमारे जीवन की चौड़ाई स्थापित करता है. इस भौतिकतावादी युग के चक्कर में पड़कर आज हमने अध्यात्म को छोड़ दिया है और ज़िंदगी को धन से संवारने में हम खंडहर हो गए हैं. नैतिक चौड़ाई घटती गई और इसी तरह लगातार हमारी भौतिक लंबाई बढ़ती गई. अब वैज्ञानिक बुद्धि का उपयोग सत्य, शिव और सुंदर की तलाश में करनी होगी. देखा जाए तो आज इस संसार को इसी ‘समग्र योग’ की मांग है. जब योग साधक के बीच जज़्ब होता है तो उसके भीतर छिपी प्रेम की खुशबू बाहर आ ही जाती है और सहज ही सत्कर्म होने लग जाते हैं.
वहीं, सर्वत्र ईश्वर की छवि निहारते रहना ‘ज्ञानयोग’ कहलाता है. इसी तरह निश्छल भाव से अपने को इश्वारार्पित कर देना ‘भक्तियोग’ कहलाता है. प्रभुभाव से सभी प्राणियों की सेवा करना ‘कर्मयोग’ कहलाता है. इस त्रिवेणी का संगम ‘समग्र योग’ कहलाता है. इन्हीं योग को समझकर हम अपने जीवन को खुशहाल बना सकते हैं. यही जीवन की समृद्धि है और चौड़ाई का मंतव्य भी यही है.
जीवन के आयाम को कुछ इस प्रकार भी समझा जा सकता है कि हमें लंबी ज़िंदगी नहीं बल्कि बड़ी ज़िंदगी जीने की इच्छा रखनी चाहिए. ऐसे हमारे कर्म गलत चीज़ों की ओर नहीं बढ़ेंगे और हम सदैव अच्छे व नेकी के कर्मों को करने की कोशिश करेंगे. अच्छे कार्यों को करने से दूसरे लोगों पर भी आपका प्रभाव पड़ेगा और वे भी ऐसे कार्यों की तरफ उन्मुख होंगे. इस तरह हम एक बेहतर समाज एवं बेहतर भारत का निर्माण कर पाएंगे.
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