ज़रा सोचिए आप किसी मंदिर में दर्शन करने के लिए पहुंचे हों और अचानक वहां भालू आ जाए तब क्या होगा ?
इसमें ज़रा भी संदेह नहीं है कि आप उस भालू से खुद को बचाने के लिए यहां-वहां भागने पर मजबूर हो जाएंगे, क्योंकि सभी को अपनी जान सबसे ज्यादा प्यारी होती है.
लेकिन एक पावन जगह ऐसी भी है जहां इंसान और भालु एक साथ पूजा करते हुए दिखाई देते हैं.
जी हां माता चंडी का मंदिर एक ऐसी जगह है जहां सिर्फ इंसानों पर ही नहीं बल्कि भालुओं पर भी भक्ति का रंग चढ़ा हुआ है.
भालुओं की वजह से सुर्खियों में है माता चंडी का मंदिर
दरअसल माता चंडी का मंदिर छत्तीसगढ़ के महासमुंद में घुंचापाली की पहाड़ी पर स्थित है. हालांकि यह माता चंडी का मंदिर पहले तंत्र साधना के लिए काफी मशहूर हुआ करता था.
लेकिन पिछले कुछ सालों से भालुओं की वजह से यह मंदिर सुर्खियों में है.
यहां हर शाम भालुओं की टोली माता के दर्शन के लिए पहुंचती है.
माता चंडी का मंदिर – पूजा में शामिल होते हैं भालू
कहा जाता है कि हर रोज़ भालुओं का पूरा परिवार शाम के वक्त मंदिर में आता है और यहां होनेवाली आरती में बाकी भक्तों के साथ शामिल होता है. ये सभी भालू हाथ जोड़कर माता की पूजा करते हैं. ये सभी भालू मंदिर के गर्भ गृह तक जाते हैं और माता का प्रसाद भी ग्रहण करते हैं.
इसे चमत्कार मानते हैं लोग
यहां के लोगों का मानना है कि इस क्षेत्र में पहले बहुत भालू हुआ करते थे लेकिन वो दिखाई नहीं देते थे, लेकिन कुछ सालों से अचानक भालुओं का पूरा परिवार आरती के समय मंदिर में आने लगा है. यहां के लोग मंदिर में भालुओं के आने को माता के चमत्कार से जोड़कर देख रहे हैं.
भालुओं से नहीं है किसी को खतरा
इस मंदिर में रोज़ भालुओं का झुंड आता है और इंसानों के बीच आकर मंदिर की आरती में शामिल होता है. यहां आनेवाले भालुओं ने अब तक किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है.
लोग यहां बिना किसी डर के भालुओं के साथ आरती में शामिल होते हैं इतना ही नहीं अपने इस दर्शन को यादगार बनाने के लिए लोग भालुओं के साथ सेल्फी भी लेते हैं.
खास है माता चंडी का मंदिर
पहाड़ी पर स्थित है माता चंडी का मंदिर, जिसका इतिहास करीब डेढ़ सौ साल पुराना है. कहा जाता है कि यहां स्थित मां चंडी की प्रतिमा स्वयं प्रकट हुई है. प्राकतिक रूप से साढ़े 23 फुट ऊंची दक्षिण मुखी इस प्रतिमा का शास्त्रीय रूप से अपना एक विशेष महत्व है.
पहले यह माता चंडी का मंदिर तंत्र साधना के लिए महत्वपूर्ण एंव गुप्त माना जाता था. लेकिन साल 1950-51 से यहां वैदिक रीति से पूजा पाठ किया जाने लगा.
बहरहाल भालुओं की माता चंडी के लिए ऐसी भक्ति क्या सच में माता का कोई चमत्कार है फिर कुछ महज़ एक छलावा.
ये आप ही तय कीजिए.
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