वैसे तो 18 दिनों तक चलने वाले महाभारत के किस्से हम बचपन से ही सुनते आए हैं.
लेकिन महाभारत युद्ध के कई अनछुए पहलू ऐसे भी हैं, जिसे हममे से कई लोग नहीं जानते.
उन्हीं में से एक थे गदाधारी भीमसेन का पोता और घटोत्कच के पुत्र बरबरीक. उनकी मां ने उसे यही सिखाया था कि वो हमेशा हारने वाले की तरफ से लड़ाई लड़ेंगे. कहते हैं बरबरीक को ऐसी सिद्धियां प्राप्त थी, जिनके बल पर वह पलक झपकते ही महाभारत के युद्ध में भाग लेने वाले समस्त वीरों को मार सकते थे.
मां से सीखी युद्ध कला –
बाल्यकाल से ही बहुत ही वीर इस महान योद्धा ने युद्ध की कला अपनी मां से सीखी थी. कहते हैं मां दुर्गा की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया, और तीन बाण प्राप्त किए. साथ हीं “तीन बान धारी” का प्रसिद्ध नाम प्राप्त किया. अग्निदेव ने प्रसन्न होकर उन्हें धनुष प्रदान किया, जो उन्हें तीनो लोकों में विजयी बनाने में समर्थ थे.
जब महाभारत युद्ध की शुरुआत होने वाली थी, तो वह भी उसमें शामिल होना चाहते थे. अपनी इसी इच्छा को लेकर वह अपनी मां से आशीर्वाद लेने गए. तभी उनकी मां ने उन्हें कमजोर पक्ष की तरफ से लड़ने का वचन लिया और बर्बरीक ने अपनी मां को वचन दिया कि वो कमजोर पक्ष की तरफ से लड़ाई लड़ेंगे. अपनी मां से मिलने के बाद वो युद्ध क्षेत्र की तरफ चल पड़े.
श्री कृष्ण ने किया छल –
बर्बरीक जब रणभूमि की ओर जा रहे थे, तब भगवान श्री कृष्ण ने ब्राह्मण का भेष धारण कर बर्बरीक से परिचित होने के लिए उन्हें रोका और यह जानकर उनकी हंसी भी उड़ाई की वो मात्र तीन बाण लेकर युद्ध में सम्मिलित होने जा रहा है. ऐसा सुनकर बरबरीक ने उत्तर दिया कि मेरे मात्र एक बाण हीं शत्रु को परास्त करने के लिए पर्याप्त है. उनके ये तीन बाण तीनो लोकों को तबाह कर सकते हैं.
तभी श्री कृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि पहले वह पीपल के पेड़ पर लगे सारे पत्तों को अपने बाण से छेद कर दिखाए. ऐसा सुन बर्बरीक ने अपना एक बाण निकाला और ईश्वर को याद कर, बाण चलाया जिसने पीपल के सारे पत्तों को छेद दिया और कृष्ण के पैर के पास घूमने लगा. क्योंकि भगवान कृष्ण ने पीपल के एक पत्ते को अपने पैर के नीचे दबा रखा था. बर्बरीक ने श्री कृष्ण से कहा कि आप अपने पैर हटा लीजिए, नहीं तो वो आपके पैर को चोट पहुंचा देगा.
कृष्ण ने दान में मांगा शीष –
श्री कृष्ण ने बर्बरीक से पूछा कि तुम किस ओर से युद्ध लड़ोगे?
तब उसने अपने मां को दिए बचन के बारे में बताया कि वो युद्ध में कमजोर पक्ष की ओर से लड़ेंगे. चुकी श्री कृष्ण यह जानते थे कि युद्ध में कौरवों की हार होनी है. और इस पर यदि बर्बरीक ने उनका साथ दिया तो परिणाम उनके पक्ष में होगा. इसलिए श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से छल करते हुए दान की इच्छा जाहिर की.
बर्बरीक ने उन्हें दान देने का वचन दे दिया और कृष्ण ने दान में उनका शीश मांग लिया.
ऐसे मे बरबरीक को श्री कृष्ण पर संदेह हुआ और ब्राह्मण के भेष में भगवान श्री कृष्ण से बरबरीक ने वास्तविक रुप में आने का अनुरोध किया, तब जाकर भगवान कृष्ण ने बर्बरीक को अपने विराट रुप का दर्शन दिया. और जैसा की आप सब जानते ही हैं कि भगवान कृष्ण कितने छलिया थे, सो बर्बरीक से कहा युद्ध शुरु होने से पहले रणभूमि की पूजा के लिए हमें किसी वीरवर के शीश की आवश्यकता है. अपना वचन निभाते हुए बर्बरीक कृष्ण को अपना शीश देने को तैयार हो गए. लेकिन बर्बरीक ने कृष्ण से अनुरोध किया कि वो महाभारत का पूरा युद्ध देखना चाहता है. जिसे भगवान कृष्ण ने स्वीकार कर लिया. फाल्गुन माह की द्वादशी को उन्होंने अपने शीश का दान किया. बरबरीक के शीष को युद्धभूमि के समीप ही एक पहाड़ी पर सुशोभित किया जहां से बर्बरीक संपूर्ण युद्ध देख सकते थे.
उसके साहस ने स्वयं भगवान कृष्ण को भी प्रभावित किया था.
कृष्ण ने उसे खाटू नामक स्थान पर स्थापित किया और बर्बरीक को “श्याम” नाम भी दिया.
आमतौर पर बर्बरीक को खाटू श्याम, बाबा खाटू के नाम से भी जाना जाता है। हजारों की संख्या में लोग इस मंदिर में आकर दर्शन करते हैं. रविवार और एकादशी के दिन भक्तों की भीड़ और ज्यादा होती है.
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