वफादार कुत्ता – इतिहास के पन्नों में भारत के वीर योद्धाओं के साथ ही साथ उनके घोड़ों का भी जिक्र किया गया है.
उन्होंने ने भी अपने मालिकों के साथ जंग के मैदान में कंधे से कंधा मिलाकर योगदान दिया और वीरगति को प्राप्त हुए.
इन घोड़ों ने उस वक्त अपनी बहादुरी दिखाई जब उनके मालिक को दुश्मनों ने चारों तरफ से घेर लिया तब इन्ही घोड़ों ने अपनी तेज चाल और फुर्तीलेपन की वजह से अपने मालिक को दुश्मनों के चंगुल से बचाकर सुरक्षित स्थान पर ले गये. जब भी घोड़ें की बात की जाती है तो जहन में सबसे पहले नाम आता है भारत के मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का. वहीं दूसरा नाम है झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के घोड़े बादल का. ये दोनों ही जंग के मैदान में अपने मालिक के लिये वीरगति को प्राप्त हुए थे.
वैसे तो आपने इन दोनों का नाम कई लोगों के मुंह से सुना होगा. लेकिन क्या आपने कभी किसी वफादार कुत्ते के बारे में सुना है जिसने औरंबगजेब की सेना के छक्के छुड़ा दिए थे. जिसने 28 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था. शायद नहीं सुना होगा.
तो चलिए आज हम आपको मुगल शासकों के वक्त एक ऐसे वफादार कुत्ते के बारे में बातएंगे जिसकी वीरगाथा को सुनकर आपको गर्व महसूस होगा और आप भी इन घोड़ों के साथ वो वफादार कुत्ता भी याद आता है.
मुगलों को धूल चटाने वाला वफादार कुत्ता
दरअसल, यह कुत्ता स्वामिभक्त सेवकों में से एक था. वो अपने मालिक के लिये जान दे भी सकता था और ले भी सकता था. उनके मालिक भी अपने कुत्ते को उतना ही चाहते थे. यह किस्सा है लोहारु रियासत के वफादरा मुलाजिम बख्तावर सिंह के कुत्ते का. जिसने जंग के मैदान में 28 सैनिकों को मौत की नींद सुला दिया. और कइयों को ऐसा काटा कि वह जंग हीं नहीं लड़ पाए. यह बात है सोलवीं सदी की जब भारत में मगुलों का साम्राज्य था. और उस वक्त मुगल शासक औरंगजेब भारत पर कब्जा किए था. उसने हिंदुस्तान की सभी रियासतों पर कब्जा कर लिया था.
औरंगजेब की सेना से लड़ने वाला वफादार कुत्ता
औरंगजेब ने राजस्थान और हरियाणा की सभी रियासतों पर कब्जा कर लिया था लेकिन अभी भी लोहारु रियासत बची थी जो थी ठाकुर मदन सिंह की. वैसे तो लोहारु रियासत में 15वीं सदी में शेखावत राजपूतों का राज था और शेखावटी का हिस्सा होता था. लोहारु किले जिसे पहले लोहारगढ़ का किला कहा जाता था उसका निर्माण 1570 में ठाकुर अर्जुन सिंह ने करवाया था. तत्कालीन लोहारू रियासत के अंतर्गत 52 गांव आते थे अत: इसे बावनी रियासत भी कहा जाता था.
28 मुगल सैनिकों को मार गिराया था
साल 1670-71 के बीच औरंगजेब ने जब उस पर कब्जा करने की ठानी इस वक्त वहां के राजा थे ठाकुर मदन सिंह. और उनके दो बेटे थे महासिंह और नौराबाजी. लेकिन ठाकुर मदन सिंह का एक वफादरा मुलाजिम भी था जिसका नाम था बख्तावर सिंह. जिसके पास एक कुत्ता था, जिसकी कद काठी किसी कटड़े जैसी थी और बाल बड़े-बड़े थे. वह ठाकुर मदन सिंह और बख्तावर सिंह का साथ एक पल के लिए भी नहीं छोड़ता था.
लोहारू रियासत को बचाने के लिये
सन् 1671 में लोहारू रियासत सबसे धनी था. मुगल शासक औरंगजेब इस धनी रियासत से राजस्व वसूल करना चाहता था. इस इच्छा से उसने ठाकुर के पास प्रस्ताव भेजा कि वह राजस्व का कुछ प्रतिशत उन्हे भी दे ताकि वह उनकी रियासत की सुरक्षा कर सकें. लेकिन ठाकुर स्वाभिमानी था उसे किसी की गुलामी स्वीकार करना बिल्कुल पसंद नहीं था. उन्होंने औरंगजेब के प्रस्ताव को ठुकरा दिया. और मुगल शासक को खत भिजवाया कि वह अपनी और अपने राज्य की सुरक्षा करने की ताकत रखते हैं. इस जवाब से नाराज होकर बादशाह औरंगजेब ने हिसार गवर्नर अलफू खान को लोहारू पर हमला करने के आदेश दिया.
अलूफ खान ने बिना किसी देरी के किले पर आक्रमण बोल दिया. जब गुप्तचरों के द्वारा राजा को पता चला तब तक मुगलों की सेना किले में प्रवेश कर चुकी थी. ठाकुर ने सेना को तत्काल जंग के लिये तैयार किया. उन्होने अपने दोनों बेटों और अपने वफादार बख्तावर को जंग के लिए भेजा. बख्तावर के साथ उसका वफादार कुत्ता भी गया. जिसको देखकर मुगल सैनिक उसका उपहास करने लगे. उन्हें लगा ठाकुर इतना कमजोर है कि उसने जंग के मैदान में एक कुत्ते को भेजा है.
अपने मालिक को बचाने के लिये
ठाकुर सेना और मुगल सेना के बीच जंग शुरु हुई. जंग के दौरान ठाकुर मदन सिंह के दोनों पुत्र शहीद हो गए. लेकिन बख्तावर पूरी बहादुरी से मैदान में डटे रहे. उनके साथ उनका वफादार कुत्ता भी युद्धभूमि में ही डटा रहा. जैसे ही कोई मुग़ल सैनिक बख्तावर कि तलवार से जख्मी होकर निचे गिरता, कुत्ता उसकी गर्दन दबोचकर मार देता. इस तरह उसने खुद 28 मुग़ल सैनिकों के प्राण लिए. इसके साथ ही कुत्ते ने दर्जनों सैनिकों को इस कदर घायल किया कि वे जंग न लड़ सके.
युद्ध के मैदान में वीरगति को प्राप्त हुआ वफादार कुत्ता
कुत्ते के साहस को देखकर मुगल सैनिकों ने कुत्ते पर हमला बोल दिया. जब बख्तावर ने उसे बचाने के प्रयास किया तो उस दौरान मुगल सैनिकों ने बख्तावर पर कई वार किये औऱ वह शहीद हो गए. अपने मालिक को मरते देख कुत्ता सैनिकों पर टूट पड़ा लेकिन एक सैनिक ने तलवार से कुत्ते के धड़ को अलग कर दिया. अंततः कई वार सहने के बाद कुत्ता वीरगति को प्राप्त हुआ. हालाकि तब तक औरंगजेब की सेना हार मान चुकी थी और अंततः ठाकुर मदन सिंह के सामने अलफू खान को मैदान छोड़कर भागना पडा.
जंग में जीतने के बाद ठाकुर मदन सिहं ने अपने मुलाजिम और उनके वफादार कुत्ते की बहादुरी को याद रखने के लिये उस जगह समाधी और गुंबद का निर्माण कराया. जहां कुत्ते की मौत हुई थी. बाद में इसी गुंबद से कुछ दूरी पर बख्तावर सिंह की पत्नी भी उनकी चिता पर सती हो गईं थी. वहां पर उनकी पत्नी की याद में रानी सती मंदिर बनवाया गया जो आज भी मौजूद है. कुत्ते की समाधी और सती मंदिर आज भी आकर्षण और श्रद्धा के केंद्र हैँ.
तो दोस्तों, इस तरह मुगलों को मुंहतोड़ जवाब देनेवाला वफादार कुत्ता तो अभी तक अज्ञात ही रहा है लेकिन इसे इतिहास के पन्नों में ‘बख्तावर सिहं के वफादार कुत्ते’ के रूप में ही याद किया जाता है. इस कुत्ते की वफादारी और वीरगाथा को सुनकर हम सभी को गर्व महसूस होता है.