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बद्रीनाथ के कपाट बंद होने से पहले विधि विधान के साथ बुलाया जाता है माँ लक्ष्मी को !

बद्रीनाथ के कपाट

चार धमों में से एक विश्व विख्यात बद्रीनाथ के कपाट को हाल ही में पूरे विधि विधान के साथ बंद कर दिया गया ।

इस साल 15 सालों ऐसा संयोग बना जब बद्रीनाथ के कपाट बंद शाम के वक्त बंद हुए और बद्रीनाथ के कपाट बंद होने से पहले ही मंदिर बर्फ से ढक गया ।

मंदिर के कपाट करने से पहले बद्रीनाथ के मुख्य पुजारी ने माता लक्ष्मी के मंदिर में जाकर पूजा पाठ की ओर उन्हें भगवान बद्रीनाथ यानि नारायण के साथ विराजने का निमंत्रण दिया । जिसके बाद माता लक्ष्मी को भगवान नारायण के बगल में स्थापित किया गया। वही भगवान नारायण के साथ मौजूद उनके मित्र भगवान उद्धव और भगवान कुबेर को वहाँ से दूसरी जगह स्थापित किया गया। मंदिर के कपाट बंद होने के बाद अगले 6 महीनों तक माता लक्ष्मी भगवान नारायण के साथ विराजमान रहेंगी । माना जाता है इस दौरान देव ऋषि नारद मुनि भगवान बद्रीनाथ की पूजा करते हैं।

लेकिन आप भी मेरी तरह सोच रहे होंगे कि माता लक्ष्मी को पुजारी भगवान नारायण के साथ विराजने का निमंत्रण क्यों देते हैं। और फिर विधि विधान के साथ उन्हे 6 महीने के लिए नारायण के साथ स्थापित क्यों किया जाता है।

भगवान बद्रीनाथ का मंदिर अलकनंदा के किनारे बसा है ।

अलकनंदा गंगा का एक स्वरुप है। माना जाता है कि यहाँ पर पहले भगवान शिव केदारनाथ के रुप में विराजमान थे । जब भगवान विष्णु ने इस जगह को देखा तो उनका दिल अलकनंदा नदी के किनारे बस गया । उन्होंने बाल रुप धारण कर रोना शुरु कर दिया । उनके रोने की आवाज सुन भगवान शिव और माता पार्वती वहाँ आए । उन्होंने बालक से रोने की वजह पूछी तो बालक ने अलकनंदा नदी के किनारे की यह जगह ध्यान के लिए मांग ली । भगवान शिव और माता पार्वती ने उन्हें ये जगह दे दी।

इसके बाद भगवान विष्णु घोर तप में लीन हो गए इस बीच मौसम बदला ओर हिमपात शुरु हो गया ।

भगवान विष्णु हिमपात में ढकने लगे । ये देख उनकी पत्नी लक्ष्मी से रहा नही गया । माता लक्ष्मी ने एक बेर के पेङ का रुप धारण कर भगवान विष्णु की रक्षा की ओर सारा हिमपात अपने ऊपर ले लिया। जब 6 महीने बाद भगवान विष्णु का तप खत्म हुआ तो उन्होंने देखा कि माता लक्ष्मी ने सारा हिमपात अपने ऊपर ले लिया था। ये देख भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी से कहा कि वो आज से भगवान विष्णु के साथ यहां पर विराजमान होंगी । और बेर के पेङ में रुप में रक्षा करने के कारण उन्हें यहां बद्रीनाथ के नाम से जाने जाएंगे । इसी वजह से माता लक्ष्मी को हिमपात में भगवान विष्णु के साथ विराजा जाता है।

ये मंदिर तीन भागों में विभाजित है गर्भगृह, दर्शनमण्डप और सभामण्डप । भगवान बद्रीनाथ को आदि गुरु शंकराचार्य ने बनवाया था। शंकराचार्य के आदेश अनुसार भगवान बद्रीनाथ के मंदिर का पुजारी दक्षिण भारत के केरल राज्य से ही होता है। और जिस जगह भगवान विष्णु ने तप किया था उसे तपकुंड के नाम से जाना जाता है। जहां आज भी गर्म पानी निकलता है। भगवान विष्णु यहां बद्रीनाथ के पांच रुपो में विराजमान है। इनके दर्शन के लिए अब कपाट अप्रैल में खोले जाएंगे।