जिस दिन से इजराइल अस्तित्व में आया है उस दिन से ही अरब देश इजराइल को तबाह करने पर तुले हुए हैं.
इसके लिए कई बार इजराइल पर हमले किए गए.
लेकिन इजराइल पर हमला ऐसा था कि यदि समय रहते इजराइल सतर्क नहीं होता तो वह तबाह हो जाता.
बात 1973 की है.
कहते हैं कि उस वक्त इजराइल की खुफिया एजेंसी के एजेंट ने फोन कर पहले ही बता दिया कि मिस्र के नेतृत्व में उस पर 6 देश एक साथ मिलकर हमला करने वाले हैं.
आपको जानकर हैरानी होगी कि इस हमले की सूचना देने वाला कोई ओर नहीं बल्कि इजराइल का यह एजेंट मिस्र के राष्ट्रपति नासिर का दामाद अशरफ मारवान था.
5 अक्तूबर, 1973 की रात को लंदन में मौजूद मोसाद के एजेंट दूबी के पास पेरिस से एक फोन आता है. जैसे ही दूबी फोन सुनता है तो उसके होश उड़ जाते हैं, क्योंकि फोन मोसाद के सबसे बड़े और गुप्त एजेंट का था.
फोन पर एजेंट के मुंह से एक शब्द सुनकर ने दूबी हिल जाता है. वो शब्द था केमिकल. केमिकल का अर्थ था कि इजराइल पर हमला होने वाला है. दरअसल, इजराइल के जासूसी करने वाला अशरफ मारवान केमेस्ट्री का विद्यार्धी रहा था, इसलिए युद्ध की सूचना देने के लिए उसने कोडवर्ड रखा गया था केमिकल.
जब मारवान ने अपने हैंडलर दूबी के पास फोन किया तो उसने केमिकल शब्द तो कहा ही, साथ ही ये मांग भी की कि उसकी मोसाद प्रमुख से लंदन में बैठक तय की जाए.
मारवान के दूबी फोन के तुरंत बाद ये खबर इजराइल पहुंच गई. मोसाद के प्रमुख मेजर जनरल जमीर ने लंदन के लिए जाने वाली सुबह की पहली फ्लाइट पकड़ी.
लंदन में एक गोपनीय स्थान पर मोसाद प्रमुख और मारवान की रात 11 बजे एक बैठक हुई. बैठक खत्म होने के तुरंत बाद मोसाद के प्रमुख ने सुबह के 3 बजे तेलअवीव फोन मिलाया.
मोसाद प्रमुख के फोन के बाद प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर समेत इजराइल का पूरा सैन्य और प्रशासनिक नेतृत्व जाग गया. आनन फानन में गोपनीय बैठक हुई जिसमें तय हुआ कि हमले का करारा जवाब देने के आदेश दे दिए गए.
इजराइली सैनिक जोकि यौम किप्पूर त्यौहार की छुट्टी पर घर गए हुए थे, उनके घरों की फोन की घंटिया घन घनाने लगी. फोन पर बस एक ही बात कही जा रही थी कि छुट्टी बीच में ही छोड़ कर तुरंत मोर्चे पर पहुंचें.
दोपहर होते होते इजराइल में आपातकाल के सायरन बज उठे. मारवान की खबर सही थी. इजराइल पर हमला हो चुका था और इजराइल पर हमला इतना भयानक था कि मिस्र के सैनिकों नें नावों के सहारे स्वेज नहर को पार कर इजराइली क्षेत्र में बिना किसी अवरोध के प्रवेश कर कब्जा जमा लिया था.
लेकिन शुरूआत में नुकसान उठाने के बाद इजराल ने मिस्र और उसके सहयोगी देशों की फौज को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया. बाद में अमेरिका और रूस के सहयोग से युद्धविराम हुआ.