विशेष

नास्तिक या आस्तिक, किसकी जिंदगी सबसे पहले बचाते है भगवान

नास्तिक या आस्तिक – हम भारत के मूलनिवासी है -हमारा एक ही धर्म है -‘इंसानियत’, हमारा एक ही मंदिर है ‘संसद’, हमारा एक ही भगवान है -‘न्याय’ ,हमारी एक ही धार्मिक किताब है – ‘अम्बेडकर संविधान’ , ‘शिक्षा’ ही हमारी हथियार है , ‘संगठन’ ही हमारा सत्संग है , और ‘संघर्ष’ हो हमारी पूजा है और इसे कभी नहीं भूलना चाहिए।

नास्तिक या आस्तिक 

नास्तिक का अर्थ है—जो नहीं को जीवन का आधार बना ले, जो नकार को जीवन की शैली बना ले। नास्तिक का अर्थ वैसा नहीं है जैसा साधारणत: समझा जाता है। साधारणत: समझा जाता है जो ईश्वर को इनकार करे वह नास्तिक।

आस्तिक का अर्थ है—जो भगवान पर भरोसा करें। मूर्ति पूजा करता है और भगवान है हमारे आपके बीच जो ऐसा समझता है या ऐसी सोज रखने वाले को हम आस्तिक कहते है।
कौन है असली नास्तिक?
किसे वास्तव में नास्तिक माना जाए, ये सवाल बहुत पेंचीदा है क्योंकि पक्का नास्तिक मिलना लगभग नामुमकिन है। इस शब्द का अगर संधि विच्छेद करें तो नास्ति यानि न और अस्ति का अर्थ होगा नहीं है, मतलब भगवान या परम सत्ता नहीं है। सामान्य शब्दों में कहा जाए तो नास्तिक का संबंध ईश्वर के अस्तित्व को नकारने से है।
अमेरिका में एक अध्ययन में ये बात सामने आई है कि नास्तिक लोगों के तुलना में धार्मिक प्रवृत्ति के लोग औसतन चार साल अधिक  जीते हैं।अमेरिका में मृतकों के लिंग और वैवाहिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए एक हजार से अधिक लोगों के विश्लेषण में ये बात सामने आई है। अमेरिका के ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी की डाक्टरेट की छात्रा लौरा वालेस ने कहा कि धार्मिक जुड़ाव का लिंग की तरह ही दीर्घायु से सीधा संबंध है।  धार्मिक प्रवृत्ति  रखनेवालों का जीवनकाल अधिक होता है।
यहां दोनों चीजों को अलग कर दिया। धर्म और तर्क अलग नहीं हैं। धर्म ही कहता है कि तर्क करो। धर्म और आस्था ने जैसा इंसान चाहा है असल में वह वैसा ही इंसान है जैसा तर्क ने चाहा है। आप दोनों को अलग कैसे कर सकते हैं। तर्क भी ईश्वर का दिया (जीवन जीने का) हथियार है और आस्था भी। फर्क सिर्फ यह है कि (जो कि झगडे की मूल जड़ है ) कि अक्सर थक हार कर लोग खोखली उम्मीद को आगे रख देते हैं। तर्क को पलंग के नीचे सरका देते हैं, झूठी थाली सा।
जबकि, तर्क के बाद जो आस्था पैदा होती है, वह ही स्थाई होती है। जिन दो रास्तों की  बात होती हैं वे वाकई में एक ही रास्ते हैं। इंसानियत के साथ जीना धर्म के साथ जीना ही है। और, धर्म के साथ जीना यानी ईश्वर के साथ जीना है। इंसानियत जो मेरे आपके अंदर है। यानी, ईश्वर जो मेरे आपके अंदर है…।
इसलिए नास्तिक या आस्तिक गलत है या सही ये नहीं कहा जा सकता लेकिन शोध की माने तो नास्तिक से ज्यादा आस्तिक कि जिंदगी सबसे पहले भगवान बचाते है। यानी आस्तिक पॉजिटिव सोचता है। इसलिए उसका जीवनकाल बड़ा हो जाता है। नास्तिक का जीवनकाल छोटा होता है।
वैसे ये तो शोध है वरना नास्तिक या आस्तिक में कौन अच्छा या बुरा ये आज तक बहुत बड़ा मुद्दा है जो कभी हल नहीं हो सकता।
Seema Yadav

Share
Published by
Seema Yadav

Recent Posts

इंडियन प्रीमियर लीग 2023 में आरसीबी के जीतने की संभावनाएं

इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) दुनिया में सबसे लोकप्रिय टी20 क्रिकेट लीग में से एक है,…

2 months ago

छोटी सोच व पैरो की मोच कभी आगे बढ़ने नही देती।

दुनिया मे सबसे ताकतवर चीज है हमारी सोच ! हम अपनी लाइफ में जैसा सोचते…

3 years ago

Solar Eclipse- Surya Grahan 2020, सूर्य ग्रहण 2020- Youngisthan

सूर्य ग्रहण 2020- सूर्य ग्रहण कब है, सूर्य ग्रहण कब लगेगा, आज सूर्य ग्रहण कितने…

3 years ago

कोरोना के लॉक डाउन में क्या है शराबियों का हाल?

कोरोना महामारी के कारण देश के देश बर्बाद हो रही हैं, इंडस्ट्रीज ठप पड़ी हुई…

3 years ago

क्या कोरोना की वजह से घट जाएगी आपकी सैलरी

दुनियाभर के 200 देश आज कोरोना संकट से जूंझ रहे हैं, इस बिमारी का असर…

3 years ago

संजय गांधी की मौत के पीछे की सच्चाई जानकर पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक जाएगी आपकी…

वैसे तो गांधी परिवार पूरे विश्व मे प्रसिद्ध है और उस परिवार के हर सदस्य…

3 years ago