आज से करीब 5000 साल पहले हुए महाभारत की लड़ाई का एक योद्धा आज भी अमर है और वो धरती पर दर-दर भटक रहा है.
वैसे तो महाभारत की लड़ाई को जीतने के लिए हर किसी ने बड़े-बड़े छल का सहारा लिया.
इस युद्ध में छल-कपट करनेवालों को शायद ही कोई सज़ा मिली हो लेकिन सवाल यह है कि आखिर इस योद्धा ने ऐसा कौन सा गुनाह किया था जिसके चलते आज भी वो धरती पर दर-दर भटकने को मजबूर हैं.
महाभारत की लड़ाई के जिस योद्धा की हम बात कर रहे हैं, वो हैं कौरवों और पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा.
इस योद्धा ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से युद्ध किया था. लेकिन महज़ एक गलती के लिए अश्वत्थामा को दुनिया खत्म होने तक जीवित रहने और धरती पर भटकने का श्राप मिल गया.
श्रीकृष्ण ने दिया था भटकने का श्राप
पौराणिक कहानियों के मुताबिक पिता द्रोणाचार्य की मृत्यु का बदला लेने के लिए अश्वत्थामा ने अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया था, लेकिन तब भगवान श्रीकृष्ण ने परीक्षित की रक्षा की.
जिसके बाद अर्जुन ने अपनी तलवार से अश्वत्थामा के सिर के केश काट डाले और मस्तक से मनी निकाल ली. और इस गलती से क्रोधित होकर भगवान श्रीकृष्ण ने द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा को दुनिया खत्म होने तक धरती पर भटकने का श्राप दे दिया.
असीरगढ़ के किले में भटक रहे हैं अश्वत्थामा
मध्यप्रदेश का एक छोटा सा शहर है बुरहानपुर.
इस शहर के किनारे ऊंची पहाड़ी पर मौजूद है असीरगढ़ का किला. कहा जाता है कि ये वही किला है जहां पिछले 5000 सालों से द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा भटक रहे हैं.
इस किले के आसपास रिहायशी इलाका तो नहीं लेकिन इस किले के पास से होकर गुज़रनेवाले कई लोगों का सामना अश्वत्थामा से हो चुका है.
जिनका सामना द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा से हो चुका है उनका कहना है कि अश्वत्थामा के माथे से खून निकलता है. वो कोई परछाई, कोई साया, कोई भूत-प्रेत नहीं है बल्कि वो एक जीता-जागता इंसान है, जो लोगों से बातें करता है.
किले में रोज़ करते हैं शिव की पूजा
असीरगढ़ के इसी किले में एक प्राचीन शिव मंदिर है. भगवान शिव के इस मंदिर में हर दिन कौन गुलाल और फूल अर्पित करके चला जाता है. आज भी यह एक रहस्य बना हुआ है.
ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर तक आने का एक गुप्त रास्ता है जिससे अश्वत्थामा आकर यहां शिव जी की पूजा करते हैं.
अलग-अलग जगहों पर भटक रहे हैं
कहा जाता है कि श्रीकृष्ण से श्राप मिलने के बाद द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा को व्यास मुनि ने शरण दी थी. मध्यप्रदेश, उड़ीसा और उत्तराखंड के जंगलों में आज भी अश्वत्थामा को देखे जाने की खबरें आती रहती है.
मध्यप्रदेश में महू से करीब 12 किलोमीटर दूर स्थित विंध्यांचल की पहाड़ियों पर खोदरा महादेव विराजमान हैं. माना जाता है कि यह द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा की तपस्थली है और ऐसी मान्यता है कि आज भी अश्वत्थामा यहां आते हैं.
गौरतलब है कि भविष्य पुराण के मुताबिक ऐसा कहा जाता है कि कलयुग के अंत में भगवान विष्णु का ‘कल्कि’ अवतार धरती पर आएगा.
उस वक्त कल्कि अवतार की सेना में द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा भी मौजूद रहेंगे. जो अधर्म के खिलाफ लडेंगे. लेकिन सवाल यह है कि क्या तब तक ऐसे ही धरती पर भटकते रहेंगे द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा.
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